पीढि़यों को प्रेरणा देती रहेगी श्याम सिंह की शौर्य गाथा
कारगिल युद्ध में मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने वाले शहीद श्याम सिंह क
क्षितिज सूद, नेरवा
कारगिल युद्ध में मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने वाले शहीद श्याम सिंह की शौर्य गाथा युवाओं को देशसेवा के लिए प्रेरित करती रहेगी। शिमला जिला के तहत नेरवा के गांव कलारा में 26 जनवरी 1974 को नंद राम व देवकू देवी के घर जन्मे श्याम सिंह को स्कूल के समय से ही सेना में भर्ती होने का जुनून था। देशसेवा के इसी जुनून के कारण 29 दिसंबर 1994 को वह 13 जैक राइफल में भर्ती हो गए।
वर्ष 1999 पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ कर डाली। घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया। श्याम सिंह भी ऑपरेशन विजय की चार्ली कंपनी कमांडर असॉल्ट टीम का हिस्सा बने व कंपनी के साथ पांच जुलाई को कारगिल में टाइगर हिल की मसको घाटी सेक्टर के प्वाइंट 4875 की ओर दुश्मनों से लोहा लेने के लिए निकल पड़े। सेना की यह टुकड़ी बेहद खराब मौसम व विपरीत परिस्थितियों के बीच आगे बढ़ रही थी, जहां भारी तादाद में दुश्मन छिपे थे, जिसका भारतीय सेना को अंदाजा नहीं था। इस दौरान घात लगाकर बैठे दुश्मनों ने भारतीय जवानों पर हमला कर दिया। अदम्य साहस का परिचय देते हुए श्याम सिंह ने एक घुसपैठिये को वहीं ढेर कर दिया, जबकि एक को बुरी तरह घायल कर दिया। श्याम सिंह के साहस को देख अन्य जवान भी दोगुने जोश के साथ लक्ष्य की तरफ बढ़ते गए व दुश्मन को मारते व खदेड़ते हुए प्वाइंट 4875 को खाली करवा लिया, लेकिन इस बीच श्याम सिंह दुश्मन की एक स्नाइपर राइफल से चली गोली से शहीद हो गए।
शहीद श्याम सिंह को मरणोपरांत विशेष सेना मेडल वीर चक्र प्रदान किया गया। प्रदेश सरकार ने श्याम सिंह की शहादत को श्रद्धांजलि देते हुए उनके भाई को राजस्व विभाग में नौकरी दी, वहीं राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल नेरवा का नाम वीर चक्र शहीद श्याम सिंह के नाम पर रखा गया। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने शहीद के परिवार के लिए हरियाणा के पंचकूला के तहत माजरी चौक के समीप एक पेट्रोल पंप स्वीकृत किया।
अब पंचकूला में रहता है परिवार
श्याम सिंह के भाई रमेश भिख्टा ने निजी कारणों से राजस्व विभाग की नौकरी छोड़ दी है व वह अब पेट्रोल पंप का कामकाज संभाल रहे हैं। वह परिवार सहित हरियाणा में ही रहते हैं। शहीद के स्वजनों का कहना है कि कारगिल शौर्य दिवस को एक विशेष दर्जा देकर इसे पूरे देश में मनाया जाना चाहिए एवं इस दिन शहीद हुए जवानों की याद में उनके क्षेत्र में विशेष कार्यक्रम होने चाहिए। इसके अलावा स्कूलों में भी इन शहीदों की वीरगाथाएं प्रचारित की जानी चाहिए, ताकि युवा इनसे प्रेरित हो सकें।