सरकार को मानवाधिकार की कद्र है या नहीं : हाईकोर्ट
15 सालों में तीन बार सरकारी बदल चुकी है जिस से लोगों के अधिकारों का हनन होने की स्थिति में उनको तुरंत न्याय दिलवाने के लिए कोई उपयुक्त फोरम नहीं है। याचिका में ऐसे कई उदाहरण दिये गए है कि ह्यूमन राइट कमीशन का
विधि संवाददाता, शिमला : हिमाचल में मानवाधिकार आयोग व लोकायुक्त का गठन न करने पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश एल नारायण स्वामी और न्यायाधीश धर्मचंद चौधरी की खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या उसे मानवाधिकार की कद्र है या नहीं?
अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह मामले की आगामी सुनवाई तक मानवाधिकार कमीशन के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति के संबंध में विभिन्न हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को सूचित करें और इसकी जानकारी अदालत को सौंपें। राज्य सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता ने अदालत को बताया कि मानवाधिकार कमीशन के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति का मामला विचाराधीन है। हाईकोर्ट ने हैरानी जताते हुए पूछा कि क्या पांच साल तक मानवाधिकार कमीशन के चेयरमैन व सदस्यों की नियुक्ति का मामला विचाराधीन है?
मामले पर पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि एक सप्ताह के भीतर अदालत को बताएं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य में मानवाधिकार आयोग की स्थापना क्यों नहीं की गई है। मामले पर सुनवाई 13 नवंबर को होगी। न्यायालय के समक्ष दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य मानवाधिकार आयोग वर्ष 2005 से कार्य नहीं कर रहा है। राज्य सरकार की ओर से लोकायुक्त का भी गठन नहीं किया गया है। इस कारण लोकायुक्त के अधीन आने वाले मामलों में कार्रवाई नहीं हो रही है।