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ऐतिहासिक विरासत कालका-शिमला रेलखंड के नायक 'बाबा भलकू' को भुला दिया गया

कालका-शिमला ऐतिहासिक रेल खंड बाबा भलकू की ही देन है। कालका शिमला रेल खंड के निर्माण के समय सुरंग संख्या 33 बनाते वक्त अंग्रेजी इंजीनियर सुरंग के छोर मिलाने में असफल हो गए थे।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Fri, 29 Apr 2016 12:59 AM (IST)Updated: Fri, 29 Apr 2016 01:17 AM (IST)
ऐतिहासिक विरासत कालका-शिमला रेलखंड के नायक 'बाबा भलकू' को भुला दिया गया

दीपक बहल, शिमला । कालका-शिमला ऐतिहासिक रेल खंड बाबा भलकू की ही देन है। कालका शिमला रेल खंड के निर्माण के समय सुरंग संख्या 33 बनाते वक्त अंग्रेजी इंजीनियर सुरंग के छोर मिलाने में असफल हो गए थे। जिसके चलते अंग्रेजी हकूमत ने उस पर एक रुपया जुर्माना लगाया था। जिसकी शर्मिंदगी के चलते इंजीनियर बरोग ने खुदकुशी कर ली थी। इसी बीच गांव झाजा के बाबा भलकू ने अपनी छड़ी के साथ अंग्रेजी इंजीनियर को राह दिखाई जिसके चलते सुरंग के दो छोर मिले और कालका-शिमला रेलमार्ग का निर्माण पूरा हो सका।

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अंग्रेजी हकूमत ने अपने इंजीनियर के नाम से बरोग स्टेशन का नाम तो रख दिया, लेकिन देश आजाद होने के बाद भी रेल मंत्रालय ने कालका-शिमला खंड में अहम योगदान करने वाले बाबा भलकू के काम को तवज्जो नहीं दी।

कालका से शिमला के बीच 18 स्टेशन हैं, लेकिन बाबा भलकू के नाम से कोई स्टेशन नहीं है। हालांकि, बाबा भलकू के योगदान से वाकिफ होने पर रेल मंत्रालय ने 13 जुलाई 2011 को भलकू रेल म्यूजियम शिमला में बनाया। भले ही रेल म्यूजियम भलकू की याद में बना दिया, लेकिन आज भी उनकी प्रतिमा के अलावा न तो उसमें फोटो हैं और न अंग्रेज हुकूमत द्वारा उनकी तारीफ में लिखे दस्तावेज। सोलन में गांव झाजा में रह रही बाबा भलकू की सातवीं पीढ़ी से भी कोई संपर्क साध दस्तावेज हासिल नहीं किए गए। सातवीं पीढ़ी परपौत्री पूनम व परिवार के अन्य सदस्यों ने रेलवे और हिमाचल सरकार द्वारा अनदेखी की दास्तां दैनिक जागरण को बताई। मांग की कि कालका-शिमला रेल खंड में 18 स्टेशनों में से किसी एक स्टेशन का नाम तो बाबा भलकू के नाम से होना चाहिए था। बाबा भलकू द्वारा बनाया लकड़ी का मकान आज भी ऐतिहासिक है। जिसमें कई पीढिय़ां रह चुकी हैं। उन्होंने इस मकान को भी हेरीटेज घोषित करने की मांग उठाई।

स्पेशल रेल चलाकर स्टेशनों से सामान जुटाकर बनाया संग्रहालय

कालका-शिमला रेल खंड का निर्माण 1898 में शुरू हुआ जो कि 9 नवंबर 1903 को पूर्ण हो गया था। 2008 में कालका शिमला रेल ट्रैक को यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में डाला। लंबे समय के बाद रेल मंत्रालय को बाबा भलकू के योगदान के बारे में पता चला जिसके बाद सन 2011 में एक स्पेशल ट्रेन चलाकर कालका से शिमला के बीच स्टेशनों से एतिहासिक सामान को जुटाया गया। संग्रहालय का नाम बाबा भलकू रखा गया।

भलकू की मृत्यु पर आज भी रहस्य

भलकू की याद में उनके गांव में मेला लगाया जाता है। बकायदा मार्केट में बाबा भलकू की प्रतिमा लगी हुई है जिसका शिलान्यास नवंबर 2003 में मुख्यमंत्री वीरभद्र ने किया था। इसी प्रतिमा के नीचे दर्शाया गया है कि वह 19वीं सदी के महान संत एवं कुशल इंजीनियर थे। जिन्होंने दुर्गम पर्वत श्रृंखलाओं को चीरते हुए सड़क निर्माण कर अद्भुत कीर्तिमान स्थापित किया था। कालका-शिमला रेलवे मार्ग के अलावा हिंदुस्तान-तिब्बत के निर्माण में भी उनकी अहम भूमिका रही थी। बकायदा इसकी पुष्टि अंग्रेजी हकूमत के दौरान लिखे गए दस्तावेजों में मौजूद है। अंग्रेज अधिकारी सी बैचलर और जेजी क्लार्सन ने भी अपनी किताबों में बाबा भलकू के योगदान
संबंधी किस्से लिखे हैं। जो कि परिवार के पास मौजूद हैं।


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