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दादी बोलीं, दोषियों को फांसी से मिलेगी युग की आत्मा को शांति

आज ही नहीं बल्कि पिछले पांच सालों से युग का परिवार रोजाना रो रहा है। उनका एक ही दर्द है कि आखिर उनके बच्चे की गलती क्या थी कि उसे इतनी बेदर्दी से मारा। छोटा सा चार साल का बच्चा तो ये भी नहीं जानता था कि उसे उठा कर ले जाने वाले उसे मार देंगे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Sep 2019 06:16 PM (IST)Updated: Sun, 29 Sep 2019 06:35 AM (IST)
दादी बोलीं, दोषियों को फांसी से
मिलेगी युग की आत्मा को शांति
दादी बोलीं, दोषियों को फांसी से मिलेगी युग की आत्मा को शांति

जागरण संवाददाता, शिमला : युग के परिजन करीब पांच साल से रोजाना रो रहे थे। उनका एक ही दर्द है कि आखिर उनके बच्चे की क्या गलती थी कि उसे इतनी बेदर्दी से मार दिया। चार साल का युग रोजाना की तरह खेलने गया था जहां से उसका अपहरण कर हत्या कर दी गई थी।

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युग की दादी चंद्रलेखा ने रोते हुए कहा कि उनके पोते की आत्मा को शांति तीनों दोषियों को फांसी मिलने पर मिलेगी। कोर्ट ने उन्हें सजा दी है। दोषियों के परिजनों ने हाईकोर्ट में अपील की है। मुझे व परिवार को पूरी उम्मीद है कि देश का कोई भी कोर्ट ऐसे दरिदों की सजा को माफ नहीं करेगा। प्रदेश सरकार, न्यायपालिका, प्रशासन व जनता ने मेरे परिवार का पूरा साथ दिया है। हमें तीनों दोषियों के अलावा किसी से शिकायत नहीं है। हर रात परिवार का कोई न कोई सदस्य युग को पुकारता हुआ नींद से जागता है।

-------- पूरे घर में चहकता था युग : रेखा

युग की ताई रेखा ने कहा कि सुबह से शाम तक युग पूरे घर में चहकता था। आज भी उसकी आवाज सुबह उठने से लेकर खाना बनाते व रात को सोते समय महसूस होती है। युग कभी खाना बनाते समय खुद काम करने की जिद करता था तो कभी रात में दादी या ताया के पास सोने के लिए जिद पर अड़़ जाता था। रेखा ने रोते हुए कहा कि हमारा पूरा परिवार युग की यादों में हर पल खोया रहता है।

-------- सुबह 11:30 बजे तक भूखा रहा परिवार

युग की अस्थियां विसर्जित करने हरिद्वार गए परिवार के सदस्यों के अलावा घर के अन्य सदस्य भी शनिवार सुबह 11:30 बजे तक भूखे रहे। दैनिक जागरण की टीम शनिवार सुबह युग के घर पहुंची तो परिजनों ने बताया कि आज उनके युग की अंतिम विदाई है। दादी चंद्रलेखा ने कहा कि पूरे विधि विधान के साथ अंतिम विदाई हुई है। सिर्फ यही संस्कार करना रह गया था। अकसर यह बात खलती थी कि अपने परिवार का एक हिस्सा हमसे दूर हो गया और हम उसे अंतिम विदाई भी न दे सके। कोर्ट ने अस्थियां सौंपी तो कुछ तसल्ली हुई कि कम से कम यह अधिकार तो परिवार को मिल सका। बांके बिहारी लाल ने हमें न्याय दिलाया है और उसी की कृपा से यह संभव हो पाया है।


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