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किन्नौर में छरमा की खेती के लिए राज्यपाल की पहल

औषधीय गुणों से भरपूर छरमा (सीबकथोर्न) की हिमाचल में वन भूमि व खाली जमीन पर खेती की उम्मीद बंधी है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 03 Nov 2018 05:15 PM (IST)Updated: Sat, 03 Nov 2018 05:15 PM (IST)
किन्नौर में छरमा की खेती
के लिए राज्यपाल की पहल
किन्नौर में छरमा की खेती के लिए राज्यपाल की पहल

राज्य ब्यूरो, शिमला : औषधीय गुणों से भरपूर छरमा (सीबकथोर्न) की हिमाचल में वन भूमि व खाली जमीन पर खेती के लिए उम्मीद बंधी है। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने इस संबंध में जनजातीय जिला किन्नौर के उपायुक्त गोपाल चंद को पत्र लिखा है। उन्होंने उपायुक्त से पूछा है कि क्या पूरे जिला की वन भूमि पर छरमा की खेती की जा सकती है? किस तरह शीत मरुस्थल की खाली जमीन पर हरियाली लाई जा सकती है? इस जमीन का उपयोग कैसे किया जा सकता है?

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हिमाचल के दो जनजातीय जिले लाहुल स्पीति व किन्नौर शीत मरुस्थल के रूप में पहचान रखते हैं। प्रदेश की समूची खाली जमीन को भारत सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम-1980 के तहत वन भूमि घोषित किया है, चाहे उस जमीन पर पेड़-पौधे हैं या नहीं। ऐसे में इस जमीन पर बिना इजाजत कोई कार्य नहीं किया जा सकता है। वहीं, राजभवन खाली जमीन का उपयोग सुनिश्चित करना चाहता है। राज्यपाल के पत्र पर किन्नौर के उपायुक्त का जवाब अहम रहेगा। उसके बाद यह मामला केंद्र सरकार से उठाया जा सकेगा। छरमा उत्पादन में चीन अव्वल

छरमा औषधीय पौधा है। इसका उपयोग कई औषधियों में किया जाता है। छरमा उत्पादन के मामले में चीन दुनिया का अग्रणी देश है। भारत में छरमा के लिए हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त उत्तर पूर्वी राज्यों की जलवायु भी अनुकूल है। खाली जमीन में हरियाली से सुधरेगी आर्थिकी

राज्यपाल आचार्य देवव्रत का विचार है कि खाली जमीन में हरियाली लाना जरूरी है। ऐसा करने से यहां के किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। भारत सरकार वर्ष 2020 तक दस लाख हेक्टेयर भूमि पर छरमा की खेती को बढ़ावा देना चाहती है। चीन में 11 लाख हेक्टेयर भूमि पर जबकि भारत में 11,500 हेक्टेयर पर छरमा की खेती हो रही है। तनाव दूर करने में छरमा मददगार

छरमा के फल बहुत पौष्टिक होते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के विशेषज्ञ आर एस स्वाहनेय ने अपने शोध में कहा है कि छरमा में ऑक्सीजन की कमी से होने वाले तनाव से लड़ने की अद्भुत क्षमता है। ऑक्सीजन की कमी से होने वाले तनाव से प्रोटीन, वसा व डीएनए को नुकसान पहुंचता है। इससे शरीर में बीमारिया बढ़ जाती हैं। इंदिरा गांधी ने दिलाई थी सेब बगीचे लगाने की इजाजत

वर्ष 1984 में निधन से कुछ समय पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी लाह़ुल स्पीति के दौरे पर आई थीं। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से पूछा कि वहां पहाड़ों पर किसी प्रकार के बगीचे क्यों नहीं हैं? वह स्थान किन्नौर जिला के समीप था। जिला प्रशासन ने उन्हें बताया कि यह वन भूमि है और इस पर कोई कार्य नहीं किया जा सकता है। इंदिरा गांधी ने लाहुल स्पीति व किन्नौर के उन क्षेत्रों में सेब के बगीचे लगाने की अनुमति दिलवाई थी।


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