चौतरफा दबाव के बीच 'सरकार'
धारां री धार ---------------------- शिथिल सत्तादल को कड़ेदम विपक्ष की मिलेंगी चुनौतियां
धारां री धार
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शिथिल सत्तादल को कड़ेदम विपक्ष की मिलेंगी चुनौतियां
डॉ. रचना गुप्ता
सदन के तीन दिन के सत्र में तपोवन में नई सरकार की भूमिका विपक्ष को सरल-सुगम राह दिखाती प्रतीत हो रही है। यद्यपि भाजपा का विधानसभा में बहुमत है लेकिन जिस शिथिल भूमिका में भाजपा विधायक हैं, वह कांग्रेस के तजुर्बेकार विधायकों के आगे बरबस ही ध्यान खींचते हैं। चूंकि जनता ने दिग्गजों का सफाया करके भाजपा को सत्ता में भेजा व भाजपा ने जयराम के सिर ताज सजाया, लिहाजा जिस प्रकार के तात्कालिक नतीजों की अपेक्षा इनसे की जा रही है, वह देना मुख्यमंत्री की चुनौती रहेगा। चिंतन मंथन के दौर से निकल कर मजबूत व कड़ेदम सरकार चलाना भी सरल नहीं। हालांकि भाजपा अभी तक ऐसा कोई काम नहीं कर सकी है, जिसका ताल्लुक सीधे जनता से जुड़ा हो।
कांग्रेस सरकार ने जिस दमखम व ताल ठोंक कर पांच बरस सरकार चलाई, उसके साथ भाजपा का 'फ्रेंडली मैच' तभी शुरू हो गया था जब बतौर मुख्यमंत्री जयराम, कांग्रेसी दिग्गजों से भी हाथ मिलाने लगे। हालांकि नए मुख्यमंत्री व मंत्रियों को अभी काफी कुछ समझने में वक्त लगेगा, परंतु संघ की छाया से लेकर विद्यार्थी परिषद व संगठन की घेरेबंदी से सरकार को बाहर निकालना होगा। जिस मुख्यमंत्री को सरकार चलानी है उसकी टीम में मुख्य सचिव विनीत चौधरी के तौर पर जेपी नड्डा की छाया है। पदों पर बैठे अफसरों में प्रेम कुमार धूमल का प्रभाव है वहीं अस्थायी टीम में 'विचारधारा' की छाया है। इसमें वह भी कई लोग शामिल हैं, जिन्हें संगठन चलाने का तजुर्बा तो है परंतु शासनिक कार्यो में अनुभव नहीं है। वीरभद्र सिंह शासन में खुड्डे लाइन लगे अफसरान के हौसले बुलंद हैं। पूरे पांच बरस कुर्सी के लिए तरसे नौकरशाह ही नहीं बल्कि पीए व पीएस को भी अपने मार्फत फाइलें सरकाने का सुनहरा मौका हाथ लगा है। हालांकि बतौर सरकार जयराम ने पूर्व सरकार के खिलाफ कड़े फैसलों का रुख किया है परंतु विकास की दरकार भी जनता कर रही है।
मंडी में जिस गर्मजोशी से मुख्यमंत्री का स्वागत हुआ, वह इस बात का द्योतक था कि लोगों को नई सरकार से बहुत अपेक्षाएं हैं। लेकिन मुख्यमंत्री का जो जुनून मंडी में दिखा वह कांगड़ा में फीका रहा। इसी लिए कांगड़ा के रोड शो सिकुड़ गए।
नए पुलिस कप्तान को भी इसीलिए बदला गया क्योंकि सरकार बदले जाने का एक संदेश भाजपा को देना था। लेकिन नीचे की व्यवस्थाएं जस की तस है। विधानसभा सत्र के दौरान तपोवन में अव्यवस्था का आलम यह भी बता रहा था कि लगाम खींचने वाला कोई नहीं। यह भी विडंबना रही कि मंत्रिमंडल 15 मिनट तक सदन से गायब रहा और संसदीय कार्यमंत्री कुछ न कर सके।
दरअसल सदन के भीतरी परिदृश्य पर गौर करें तो भाजपा विधायकों में या तो शांता समर्थकों का दल है या फिर धूमल खेमे का।। इसीलिए विपक्ष की घेरेबंदी जैसी नौबत की स्थिति में सरकार की ओर से बोलने वाले हैं ही नहीं; अथवा नए विधायक हैं। यही बड़ी मजबूती विपक्ष को देती है। चूंकि सीएलपी का नेता मुकेश सरीखा है जो दिमाग व जुबान दोनों से तेजतर्रार व मौके की नजाकत भांपने वाला है। उस कद का व्यक्ति सत्ता पक्ष में कम से कम दिखता नहीं है। वह अकेले सदन में सत्ता पक्ष को घेरने के लिए काफी है। जयराम की मंत्रिमंडल टीम में परफारमेंस के नाम पर 'विजन 100 डेज़' भी नहीं है। ऐसे में सारा दारोमदार नौकरशाहों पर है। जो प्रेजेंटेशन वह दे भी रहे हैं, उसमें विजन नाम की चीज नहीं है। अत: वह भी आदतन 'वक्त गुजारा' की भूमिका में है।
सदन में जिस तरह से संगठन के अधिकारियों ने मॉनिटरिंग दर्ज की उससे यह तो साफ है कि संगठन पूरी तरह से विधायकों पर आंख गढ़ाए हुए है। बुधवार को सीएलपी लीडर की स्वीकार्यता पर जिस प्रकार प्रश्न किया उसके डिफेंस में भाजपा के पास ठोस उत्तर नहीं था। जयराम स्पीकर स्वागत भाषण में संगठन के गुणगान के अलावा ठोस नहीं बोल पाए। राज्यपाल के अभिभाषण में न तो सरकार का विजन झलका न ही आगामी कार्ययोजना। ऐसी भूमिका निश्चित तौर पर जनता को निराश करने वाली है।