चौतरफा दबाव के बीच 'सरकार'
डॉ. रचना गुप्ता सदन के दो दिन के सत्र में तपोवन में नई सरकार की भूमिका विपक्ष को सरल सु
डॉ. रचना गुप्ता
सदन के दो दिन के सत्र में तपोवन में नई सरकार की भूमिका विपक्ष को सरल सुगम राह दिखाती प्रतीत हो रही है। यद्यपि भाजपा का विधानसभा में बहुमत है लेकिन जिस शिथिल भूमिका में पार्टी के विधायक हैं, वह कांग्रेस के तजुर्बेकार विधायकों के आगे बरबस ही ध्यान खींचते हैं। चूंकि जनता ने दिग्गजों का सफाया करके भाजपा को सत्ता में भेजा और भाजपा ने जयराम के सिर ताज सजाया, लिहाजा जिस प्रकार के नतीजों की अपेक्षा इनसे की जा रही है वह फिलहाल निकलते नहीं दिख रहे। चिंतन मंथन के दौर से निकल कर मजबूत और कड़ेदम सरकार न चलाई तो भाजपा से जनता की अपेक्षाओं पर पानी फिरने में देर नहीं होगी। भाजपा अभी तक ऐसा कोई काम नहीं कर सकी है जिससे जनता गदगद हो।
कांग्रेस सरकार ने जिस दमखम व ताल ठोंक कर पांच साल सरकार चलाई उसके साथ भाजपा का 'फ्रैंडली मैच' तभी शुरू हो गया था, जब बतौर मुख्यमंत्री जयराम कांग्रेसी दिग्गजों से भी हाथ मिलाने लगे। हालांकि नए मुख्यमंत्री व मंत्रियों को अभी काफी कुछ समझने में वक्त लगेगा परंतु संघ की छाया से लेकर विद्यार्थी परिषद व संगठन की घेरेबंदी से टीम बाहर नहीं निकल पाई है। जिस मुख्यमंत्री को सरकार चलानी है, उसकी टीम में मुख्य सचिव विनीत चौधरी के तौर पर जेपी नड्डा की छाया है। मुख्य पदों पर बैठे अफसरों में प्रेम कुमार धूमल का प्रभाव दिखता है वहीं अस्थायी टीम में आरएसएस का पूरा प्रभाव है। इसमें वह भी कई लोग शामिल हैं, जिन्हें संगठन चलाने का तजुर्बा तो है परंतु सरकार चलाने के नाम पर कुछ नहीं आता। वीरभद्र सिंह शासन में खुड्डे लाइन लगे अफसरान 'टीम जयराम' के हौसले बुलंद हैं। पूरे पांच बरस कुर्सी के लिए तरसे यह नौकरशाह ही नहीं बल्कि पीए व पीएस को भी अपने मार्फत फाइलें सरकाने का सुनहरा मौका हाथ लगा है।
मंडी में जिस गर्मजोशी से मुख्यमंत्री का स्वागत हुआ, वह इस बात का द्योतक था कि लोगों को नई सरकार से बहुत अपेक्षाएं हैं। लेकिन जयराम का जो जुनून मंडी में दिखा वह कांगड़ा में बिलकुल फीका रहा। संभवत: इसीलिए ज्यादातर हवाई मार्ग से मुख्यमंत्री ने रास्ता नापा ताकि मंडी का चमचमाता असर कांगड़ा में फीका न लगे।
नए पुलिस कप्तान को भी इसीलिए बदला गया क्योंकि सरकार बदले जाने का एक संदेश भाजपा को देना था। लेकिन नीचे की व्यवस्थाएं जस की तस है। विधानसभा सत्र के दौरान तपोवन में अव्यवस्था का आलम यह भी बता रहा था कि लगाम खींचने वाला कोई नहीं। दरअसल सदन के भीतरी परिदृश्य पर गौर करें तो भाजपा विधायकों में या तो शांता समर्थकों का दल है या फिर धूमल खेमे का। इसीलिए विपक्ष की घेरेबंदी जैसी नौबत की स्थिति में सरकार की ओर से बोलने वाले हैं ही नहीं अथवा नए विधायक हैं। यही विपक्ष को बड़ा बल देती है। चूंकि कांग्रेस विधायक दल का नेता मुकेश अग्निहोत्री दिमाग व जुबान दोनों से तेजतर्रार व मौके की नजाकत भांपने वाला है। उस कद का व्यक्ति सत्ता पक्ष में कम से कम दिखता नहीं है। जयराम की मंत्रिमंडल टीम में आरएसएस का अक्स दिखता है तो परफारमेंस के नाम पर 'विजन 100 डेज' भी नहीं है। ऐसे में सारा दारोमदार नौकरशाहों पर है। लेकिन वह भी आदतन 'वक्त गुजारा' की भूमिका में है।
सदन में जिस तरह से पवन राणा ने मॉनिटरिंग दर्ज की उससे यह तो साफ है कि संगठन पूरी तरह से विधायकों पर आंख गढ़ाए हुए है। लेकिन बुनियादी तौर पर बहुमत के बावजूद सरकार की सशक्त भूमिका नहीं दिखती। बुधवार को सीएलपी लीडर की स्वीकार्यता पर जिस प्रकार प्रश्न किया उसके डिफेंस में भाजपा के पास ठोस उत्तर नहीं था। वहीं जयराम स्पीकर स्वागत भाषण में संगठन के गुणगान के अलावा ठोस नहीं बोल पाए। राज्यपाल के अभिभाषण में न तो सरकार का विजन झलका न ही आगामी कार्ययोजना। ऐसी भूमिका निश्चित तौर पर जनता को निराश करने वाली है।