नियमितीकरण के लिए मान्य होगा दिहाड़ी का सेवाकाल
प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक मामले में यह व्यवस्था दी कि तृतीय श्रेणी की दिह
विधि संवाददाता, शिमला : प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक मामले में यह व्यवस्था दी कि तृतीय श्रेणी की दिहाड़ीदार सेवा चाहे वह चतुर्थ श्रेणी से पूर्व दी गई हो, को तृतीय श्रेणी पर नियमितीकरण दिए जाने के लिए गिना जाएगा। चतुर्थ श्रेणी की सेवा का लाभ सेवा में नियमित बने रहने के लिए दिया जाए। अशोक कुमार की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने स्पष्ट किया कि बेलदार से पूर्व पहली जनवरी, 1984 से 30 जून, 1987 तक सर्वेयर के पद पर दिहाड़ी के तौर पर दी गई सेवा को नियमितीकरण के लिए गिना जाए।
याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी को पहली जनवरी, 1984 को दिहाड़ीदार के तौर पर सर्वेयर के पद पर लगाया गया था। पहली जनवरी, 1984 से 30 जून, 1987 तक उससे सर्वेयर के मस्टररोल पर काम करवाया गया, लेकिन पहली जुलाई, 1987 से 28 फरवरी, 1988 तक उससे बेलदार के मस्टररोल पर कार्य करवाया गया। पहली मार्च, 1988 से 31 अक्टूबर, 1989 तक उसे फीटर का मस्टररोल दिया गया। इसके बाद वह सर्वेयर के मस्टररोल पर कार्य करता रहा। उसके प्रतिवेदन पर निर्णय पारित करने के हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसकी फिटर की सेवा को पहली मार्च 1988 से सर्वेयर की सेवा के साथ गिनते हुए पहली जनवरी 1998 से बतौर सर्वेयर नियमित करने के आदेश पारित किए गए थे, लेकिन पहली जनवरी 1984 से 28 फरवरी 1988 तक दिहाड़ी पर दी सेवा को नियमितीकरण के लिए गिनने से मना कर दिया। चार साल की सेवा के नुकसान से बचने के लिए प्रार्थी ने दोबारा हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल की थी। प्रार्थी ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई थी कि उसकी दिहाड़ीदार के तौर पर दी गई सेवा को अन्य कुछ दिहाड़ीदारों की तरह एक जनवरी 1984 से गिनते हुए सर्वेयर के पद पर नियमितीकरण दिया जाए। न्यायालय ने हालांकि बेलदार के पद पर दी गई सेवा को सर्वेयर के पद पर नियमितीकरण लिए आंकने से मना किया, मगर बेलदार से पूर्व दी गई सेवा को सर्वेयर के पद पर नियमितीकरण के लिए आंकने के आदेश पारित कर दिए।