एक डॉक्टर व चार कर्मियों के हवाले मरीज
जागरण संवाददाता शिमला कोरोना समर्पित दीन दयाल उपाध्याय (रिपन) अस्पताल शिमला में दाखिले मरी
जागरण संवाददाता, शिमला : कोरोना समर्पित दीन दयाल उपाध्याय (रिपन) अस्पताल शिमला में दाखिले मरीजों की सुरक्षा पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। रात के समय अस्पताल में दाखिल 80 से अधिक मरीजों की सुरक्षा का जिम्मा एक डॉक्टर व चार कर्मचारियों के हवाले है। इनमें एक सुरक्षा कर्मचारी, एक नर्स और एक सफाई कर्मचारी शामिल है। मंगलवार रात को चौपाल निवासी कोरोना संक्रमित महिला के फंदा लगाकर जान देने के मामले की जांच के बाद साफ होगा कि अस्पताल प्रशासन की कहां कोताही रही है। लोगों का कहना है कि महिला से किसी ने फोन पर बात की होती तो उसे हौसला मिल सकता था। हालांकि मरीजों को डॉक्टर से लेकर अन्य कर्मचारियों के फोन नंबर दे रखे हैं। इसके बावजूद मरीजों को समय पर सामान पहुंचाने से लेकर फोन सुनने में हो रही देरी पर सवाल उठ रहे हैं।
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मां ने कहा था, मुझे फोन मत करना
नरेंद्र ने बताया कि उसे मां ने कहा था कि मुझे फोन मत करना, क्योंकि मैं बहुत परेशान हूं। यह बात कहते हुए उसकी आंखें छलक उठीं। उसने बताया कि मंगलवार रात करीब सवा दस बजे मां से अंतिम बार बात हुई थी। इसके बाद मां ने मोबाइल फोन बंद कर दिया था। आरोप लगाया कि दवाएं न मिलने के कारण मां का बीपी बढ़ गया था, साथ ही उन्हें सिरदर्द भी हो रही थी। अगर उन्हें समय पर दवा उपलब्ध करवा दी गई होती तो जान बच सकती थी। महिला के देवर का कहना है कि मंगलवार रात करीब साढ़े दस बजे भाभी से बात हुई तो उन्होंने दवा न मिलने की बात कही थी। भाभी ने कहा था कि वार्ड में कोई नजदीक नहीं आता है। जो दवाएं उन्हें आइजीमएसी से लिखी गईं थीं वे मंगलवार सुबह अस्पताल कर्मियों को दी थी जोकि रात नौ बजे उनके पास पहुंची थीं। रात को करीब साढ़े दस बजे महिला ने डॉक्टर को गैस्ट्रिक की शिकायत बताई। डॉक्टर ने गैस्ट्रिक की दवा भिजवाने की बात कही। बताया जा रहा है कि महिला बीपी हाई होने के कारण अकसर जमीन पर लेट जाती थी। महिला के पति की 15 साल पहले मौत हो चुकी है। उसके परिवार में एक बेटा, देवर, देवरानी, भतीजा व भतीजे के दो बच्चे हैं। भतीजे की पत्नी व दोनों बच्चे 18 सितंबर को महिला के कोरोना संक्रमित आने के बाद से होम क्वारंटाइन हैं।
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एक डॉक्टर के जिम्मे 80 मरीज
डॉक्टरों का कहना है कि रिपन में काफी समय से स्टाफ की दिक्कत है। विभिन्न विभागों में करीब 30 डॉक्टर हैं। इनमें से करीब 20 डॉक्टर छह महीने से कोरोना मरीजों के इलाज में डटे हैं। हफ्ते में चार डॉक्टर बारी-बारी ड्यूटी देते हैं। इसके बाद अन्य डॉक्टर ड्यूटी देते हैं। एक हफ्ते की ड्यूटी के बाद डॉक्टरों सहित अन्य स्टाफ को क्वारंटाइन किया जाता है। आठ घंटे की ड्यूटी में एक डॉक्टर और एक स्टाफ नर्स के जिम्मे 80 मरीज होते हैं। स्टाफ की कमी के बारे में सरकार को कई बार अवगत करवाया गया, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया। इसके अलावा अस्पताल में न हृदयरोगियों के लिए कार्डियोलॉजिस्ट है, न ही न्यूरोलॉजिस्ट, न किडनी रोग के लिए नेफ्रोलॉजिस्ट।
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आत्महत्या मामले ने व्यवस्थाओं को कटघरे में किया खड़ा : सुधीर
जागरण संवाददाता शिमला : पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा ने कहा कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों व मौतों से लोगों में भय का मौहाल व्याप्त होने लगा है। उन्होंने कहा कि डीडीयू में कोरोना संक्रमित महिला द्वारा आत्महत्या करना सरकारी तंत्र की व्यवस्थाओं को कटघरे में खड़ा करता है। कोरोना काल को शुरू हुए छह माह से अधिक की अवधि का समय हो चुका है इसके बावजूद सरकार कोरोना से लड़ने के लिए कुछ भी नहीं कर पाई है।
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कोरोना मरीजों के प्रति ठीक नहीं सरकार की सोच : सुक्खू
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं कांग्रेस विधायक सुखविदर सिंह सुक्खू ने कहा कि कोरोना मरीजों को लेकर सरकार की सोच ठीक नहीं है। इसी का नतीजा है कि संक्रमित उचित इलाज न मिलने पर आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। अस्पतालों में मरीजों को उचित उपचार नहीं मिल रहा है। प्रदेश सरकार ने जनता को उसी के हाल पर छोड़ दिया है। सुक्खू ने सुझाव दिया कि अस्पतालों में दाखिल कोरोना संक्रमितों की काउंसिलिंग की जानी चाहिए। दिन ब दिन प्रदेश में मामले बढ़ते जा रहे हैं, इसलिए सरकार को ज्यादा एहतियात बरतने की जरूरत है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि कोरोना मरीजों को उचित उपचार मुहैया कराने के लिए उचित देखभाल का प्रबंध किया जाए।