विदेश की तर्ज पर हिमाचल में भी भांग की खेती!
विदेश की तर्ज पर अब हिमाचल में भी भांग की खेती की जाएगी इससे चरस तस्करी से भी छुटकारा मिलेगा। हिमाचल के कई हिस्सों में चोरी छिपे भांग की खेती की जाती है।
शिमला, राज्य ब्यूरो। हिमाचल में भी फ्रांस, चीन व अमेरिका की तरह भांग की खेती करना संभव हो सकता है। ऐसा हुआ तो चरस तस्करी की समस्या से छुटकारा मिलेगा और भांग लोगों की आर्थिकी का हिस्सा बन पाएगी। इसके लिए प्रदेश सरकार ने विधि विशेषज्ञों से राय मांगी है। यदि विधि विभाग की राय के बाद कानूनी समाधान निकलता है तो मामला आबकारी एवं कराधान विभाग को भेजा जाएगा।
उसके बाद मौजूदा नियमों का परिवर्तन संभव होगा। प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्रों में भांग नष्ट करने के लिए पुलिस व प्रशासन को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। प्रदेश के कई जिलों में चोरी-छिपे भांग की खेती होती है। उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के तहत आने वाले सतपुली क्षेत्र में भांग की खेती हो रही है। इसके लिए सरकार ने इंडियन इंडस्ट्रियल हेंप एसोसिएशन को भांग की खेती करने के लिए लाइसेंस दिया है। इसकी खेती शुरू होने से भांग के रेशे से वस्त्र भी बनाए जा रहे हैं। उत्तराखंड में भांग ने वस्त्र उद्योग का रूप ले लिया है। यही नहीं बेंगलुरु की एक स्टार्टअप कंपनी भांग के रेशे से पर्स, कपड़े, चप्पल व कई अन्य चीजें बना रही है। भांग में औषधीय गुण भी हैं, जिसे दवा के रूप में भी प्रयोग किए जाने की संभावनाएं हैं।
भांग में सोयाबीन से ज्यादा प्रोटीन भांग के बीज में प्रोटीन की मात्रा सोयाबीन से ज्यादा है। इंडस्ट्रियल हेंप प्रजाति के भांग के बीज को चटनी व मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। वहीं, रेशे का इस्तेमाल कार की बॉडी, पेपर, टेक्सटाइल, तने से बॉयोफ्यूल, पेंट, ल्यूब्रिकेंट ऑयल आदि उत्पाद बनाए जाते हैं। फूल व पत्तियों का आयुर्वेदिक दवाओं व सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों में किया जाता है।
मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुंडू ने कहा कि भांग का अवैध कारोबार रोकने के सरकार विकल्प तलाश रही है। यह मामला सरकार के विचाराधीन है कि क्या इसे उद्योग का दर्जा दिया जा सकता है या नहीं। इस बारे में विधि विभाग से राय भी मांग गई है।
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