गैरकानूनी कारोबार में खाकी भी दागदार
नारकोटिक्स क्राइम के मामलों में खाकी का दामन भी दागदार रहा है। तस्करों पर कार्रवाई करने के नाम पर कई पुलिस कर्मियों का आचरण भी संदिग्ध रहा है। सूत्रों के अनुसार आज तक सौ से अधिक मामलों में पुलिस कर्मी विभागीय जांच झेल चुके हैं। इन पर कई तरह के आरोप लगे। अब तक जांच कहती है कि इनकी तस्करों के साथ मिलीभगत रहती है। इस गठजोड़ के कई तौर- तरीके हैं। पहला कि तस्करों को पकड़ने से ही बचाया जाए। ऐसे में खुफिया सूचना लीक कर दी जाती है। इससे छापेमारी होगी भी तो पकड़ में कुछ नहीं आएगा। दूसरा मादक द्रव्य पदार्थ ज्यादा पकड़ा और केस में कम दर्शाया। तीसरा केस प्रोपर्टी को मालखाने में बदल दिया। मसलन चिट्टे की जगह दूसरा पदार्थ रख दिया। चौथा प्रोसीजरल लैप्स रखे जाते हैं। इससे कोर्ट में केस कमजोर पड़ जाता है।
राज्य ब्यूरो, शिमला : नारकोटिक्स क्राइम के मामलों में खाकी का दामन भी दागदार रहा है। तस्करों पर कार्रवाई करने के नाम पर कई पुलिस कर्मियों का आचरण भी संदिग्ध रहा है। सूत्रों के अनुसार आज तक सौ से अधिक मामलों में पुलिस कर्मी विभागीय जांच झेल चुके हैं। इन पर कई तरह के आरोप लगे हैं।
अब तक की जांच के अनुसार पुलिस कर्मियों की तस्करों के साथ मिलीभगत रहती है। इस गठजोड़ के कई तरीके हैं जिनमें पहला यह है कि तस्करों को पकड़ने से बचाया जाए। ऐसे में खुफिया सूचना लीक कर दी जाती है। इससे छापामारी होने पर भी पकड़ में कोई नहीं आएगा। दूसरा तरीका यह है कि मादक द्रव्य पदार्थ ज्यादा बरामद किया मगर केस में कम दर्शाया। तीसरा तरीका केस प्रॉपर्टी को मालखाने में बदलना है, जैसे कि चिट्टे की जगह दूसरा पदार्थ रख देना। चौथा तरीका प्रोसीजरल लैप्स रखा जाना है। इससे कोर्ट में केस कमजोर पड़ जाता है। बेनेफिट ऑफ डाउट आरोपित के पक्ष में आता है। इस खामी की वजह से पुलिस केस कोर्ट में ठहर नहीं पाते हैं। इसका लाभ कहीं न कहीं आरोपितों को मिलता है। यही वजह है कि वर्ष 2008 से वर्ष 2017 तक 1762 मामलों में आरोपित दोषमुक्त हो गए। इससे सजा की दर पर भी विपरीत असर पड़ता है। उन पुलिस अधिकारियों व कर्मियों का मनोबल भी टूटता है जो अपनी ड्यूटी निष्ठापूर्वक करते हैं। अभियोजक रख रहे मजबूत पक्ष
प्रदेश का अभियोजक निदेशालय अब एनडीपीएस मामलों को और गंभीरता से ले रहा है। पिछले कई महीने से निदेशालय के पास जिलों में कार्यरत लोक अभियोजक की नियमित रिपोर्ट्स आ रही हैं। इसके तहत अभियोजकों को केसों की कोर्ट में पैरवी करते समय लिखित तर्क देने पड़ रहे हैं। यह व्यवस्था पहली बार हुई है। इससे पूर्व वे मौखिक तर्क देते थे। लिखित तर्क आरोपित के खिलाफ ऊपरी अदालत में भी काम आएंगे। ऐसा सजा की दर बढ़ाने के मद्देनजर किया गया है। यह है प्रावधान
एनडीपीएस एक्ट के मामलों में कोई पुलिस कर्मी मिस कंडक्ट करता है अथवा उस पर तस्करों से मिलीभगत के आरोप लगते हैं तो संबंधित पुलिस कर्मी व अधिकारी को विभागीय जांच से गुजरना पड़ता है। दोषी पाए जाने पर आरोपित को नौकरी से हाथ धोने पड़ते हैं। सस्पेंशन का भी प्रावधान है। छोटी सजा में इंक्रीमेंट रोक दी जाती है। जांच में पाउडर निकला चिट्टा
वर्ष 2017 में शिमला पुलिस ने हिमाचल पथ परिवहन निगम के तत्कालीन क्षेत्रीय प्रबंधक (आरएम) महेंद्र राणा समेत चार लोगों को चार किलो चिट्टे के साथ गिरफ्तार किया था। पुलिस ने दावा किया था चिट्टे की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करोड़ों में है। आरोप था कि यह मादक द्रव्य पदार्थ जम्मू-कश्मीर से लाया गया। इसमें सरकारी गाड़ी प्रयुक्त हुई। लेकिन बाद में प्रयोगशाला की जांच में यह चिट्टा नहीं मामूली पाउडर निकला। इससे चिट्टे के काले चिट्ठे की पोल खुल गई। आरोपितों से मिलीभगत के आरोप
शिमला में गत शनिवार जिला परिषद की बैठक हुई थी। इसमें कई सदस्यों ने पुलिस पर चिट्टे के आरोपितों के साथ मिलीभगत के आरोप लगाए थे। उन्होंने पुलिस की नशा निवारण कमेटी पर भी सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि पुलिस को तस्करों के संबंध में जो गोपनीय सूचना दी जाती है, उस पर कार्रवाई नहीं होती है।
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तस्करों के साथ मिलीभगत के कई मामले सामने आए थे। हमने पूरी रिपोर्ट कार्रवाई के लिए सरकार को भेज दी थी। इसमें कुछ अधिकारियों का आचरण भी संदिग्ध रहा था। पुलिस कर्मियों को विभागीय जांच झेलनी पड़ी। नशीले पदार्थो के खात्मे के लिए जरूरी है कि पुलिस कर्मी ईमानदार हों। बेईमान लोग विभाग की विश्वसनीयता भी खराब करते हैं। ऐसे लोगों पर सरकार व विभाग को लगातार नजर रखनी चाहिए।
डॉ. जगतराम, पूर्व एसपी (नारकोटिक्स)
-------- नई व्यवस्था से तस्करों को अधिक सजा हो सकेगी। पुलिस को कड़े निर्देश जारी किए गए हैं कि वे आरोपितों के खिलाफ प्रोसीजरल लैप्स न रखें। मामलों में कोताही बरतने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
एसआर मरडी, डीजीपी