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आह त्रिगर्त गिनो तो कितने गर्त

पौंग बांध बनाने के लिए जब व्‍यास का पानी रोका गया तो 331 गांवों के 20722 लोगों का विस्थापन हुआ।

By BabitaEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 09:24 AM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 09:24 AM (IST)
आह त्रिगर्त गिनो तो कितने गर्त
आह त्रिगर्त गिनो तो कितने गर्त

शिमला, नवनीत शर्मा। खूब मिर्च वाली चटनी के साथ राजस्थान का दाल बाटी चूरमा उतना ही लजीज होता है जितनी स्वादिष्ट कभी पौंग क्षेत्र में उगने वाली मक्की होती थी...हरी पत्तियों वाला साग होता था ...या यहां के पशुओं के दूध से बनी छाछ होती थी। हिमाचल और राजस्थान के बीच के संबंध आज के नहीं हैं। नूरपुर के स्वामी ब्रजराज मंदिर में मीरा की मूर्ति चित्तौड़गढ़ से राजा जगत सिंह लाए थे। और जब अपनत्व की धूल से सनी कोई पुकार

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‘केसरिया बालम पधारो म्हारे देस...’  गाती है तो जाने अनजाने ही राग पहाड़ी भी याद आता है। राजघरानों के संबंध भी पहाड़ से लेकर राजस्थान तक हैं।

चंद्रेश कुमारी जोधपुर से आकर त्रिगर्त यानी कांगड़ा में लंबागांव रियासत की बहू बन गईं और अब बुशहर रियासत का उदयपुर के राजपरिवार के साथ बंधन बंधने जा रहा है। कुछ राजनीतिक घटनाओं के स्तर पर भी संयोग ने अपनी स्याही से यह तथ्य लिखा है कि 1992 में राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत की सरकार और हिमाचल प्रदेश में शांता कुमार की सरकार मध्य प्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार के साथ ही बर्खास्त हुई थीं....। इसके बावजूद अरावली और धौलाधार में सूखे और हरियाली का फर्क साफ दिखता है। रेगिस्तान को सींचने वाला पहाड़ अब भी

अकेला खड़ा है, ठगा सा।

आजाद भारत का एक बड़ा विस्थापन पौंग बांध बनने के कारण हुआ था। बेहद उपजाऊ मानी जाती इस घाटी में ब्यास का पानी जब रोका गया। उसके लिए 331 गांवों के 20722 लोगों का विस्थापन हुआ। छत का गिरना ही बहुत बड़ी घटना होती है तो समझा जा सकता है कि घर छिनना कितना बड़ा और क्रूर मुहावरा होता है। प्रभावितों में से 16352 को राहत नहीं मिली है। और अब राजस्थान सरकार ने 5442 प्रभावितों के आवेदन रद कर

दिए हैं। 1975 से अब तक ये वे लोग हैं जिनके हिस्से में जैसलमेर की रेत भी नहीं आई। जब दोनों राज्यों में सरकारें एक दल की रहीं, तब भी पानी के बदले राहत की बयार नहीं बही, बस...इन्कार की रेतीली हकीकत प्रभावितों की आंखों को खून रुलाती रही। कंगाली में आटा इस तरह भी गीला हुआ कि राजस्थान के शाही फरमान

में ऐसा कोई जिक्र नहीं है कि प्रभावितों के आवेदन किस आधार पर रद किए जा रहे हैं।

 

दिवाली से एक दिन पहले केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सचिव व पौंग बांध विस्थापितों को राहत दिलवाने के लिए बनी हाई पावर कमेटी के बीच बैठक में राजस्थान सरकार ने साफ इन्कार किया है। हुआ यह था कि जब पौंग बांध के निर्माण के समय हिमाचल और राजस्थान सरकार में समझौता हुआ था कि विस्थापितों को मूलभूत सुविधाओं से लैस जमीन श्रीगंगानगर में दी जाएगी। उस समय श्रीगंगानगर में 2.20 लाख एकड़ जमीन सुरक्षित रखी गई थी। लेकिन उस जमीन पर विस्थापितों की जगह राजस्थान के लोगों को ही अवैध रूप से बसा दिया

गया। जिन्होंने उपजाऊ जमीनें दी, जिन्होंने अपना होना जीना इस समझौते के नाम कर दिया, वे आज भी बेघरबार हैं। 

हिमाचल की हल्दूनघाटी जैसी कई घाटियां खो चुके लोगों के हिस्से हर दिन एक नई हल्दीघाटी को लेकर आता है लेकिन शाम के बाद अगर गले कुछ लगता है तो वही लगातार मिलने वाली शिकस्त। देहरा के आजाद विधायक होशियार सिंह ने इस मामले को उठाया और सिर के बाल तक कटवा लिए। अब बैठकों का दौर तो शुरू हुआ है। लेकिन त्रिगर्त की छाती का यह बड़ा जख्म अभी भरा नहीं है। अब हाई पावर कमेटी दिसंबर में राजस्थान का दौरा करेगी। हालांकि संयोग से हिमाचल की राजस्व सचिव मनीषा नंदा का संबंध भी राजस्थान से है और वह इस समिति की सदस्य हैं। यूं तो मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीकांत बाल्दी भी राजस्थान से हैं। इतने

वर्षों बाद बैठकों का यह दौर इसलिए भी जोर पकड़ रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री का भी राजस्थान के साथ रिश्ता है। सहज ही समझा जा सकता है कि अगर इनके प्रयास रंग ले आएं तो यह जयराम ठाकुर सरकार के लिए बड़ा तोहफा और प्रभावितों के लिए राहत होगी।

त्रिगर्त शुरू से लेकर अब तक अपने साथ कई विरोधाभास लिए हुए है। यहां से देश को अगर पहले परमवीर चक्र विजेता शहीद मेजर सोमनाथ शर्मा मिले, तो यहीं शांति के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाले दलाई लामा भी हैं। यहां से अधिकतम 15 विधायक हैं लेकिन दो अधूरे कार्यकाल वाले शांता कुमार के अलावा कोई मुख्यमंत्री नहीं हुआ। सरकार बनाने में अहम योगदान लेकिन राजनीतिक मनमुटाव इतने कि एक हाथ को दूसरे पर यकीन नहीं। पठानकोट से जोगेंद्रनगर तक जाने वाली खिलौना रेलगाड़ी की पटरी ब्रॉडगेज के लिए सर्वेक्षण का झुनझुना

बजाते हुए अब धरोहर बन जाएगी और फिर इसे कोई हाथ लगा कर बताए!

कहने को त्रिगर्त उत्सव भी चल रहा है। महीने भर के लिए। कहने को धर्मशाला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल भी हुआ लेकिन उस सबमें एक दो कवि सम्मेलनों को छोड़ कर त्रिगर्त के लिए क्या था। त्रिगर्त कभी जालंधर से लेकर

कुल्लू तक था। आज जितना और जो भी त्रिगर्त बच गया है, हैरानी है कि उसके माहिर चंद अधिकारी हैं, त्रिगर्त की भागीदारी कम है। यह गरीब राज्य की उदारहृदयता ही है कि संसाधन खुशवंत लिटफेस्ट से लेकर धर्मशाला फेस्टिवल तक उड़ेले गए जबकि उनमें हिमाचल गायब था, धर्मशाला गायब था। वैसे तो शिमला फेस्टिवल भी शिमला नहीं था। बहरहाल, पौंग झील से मिले आंसू सूखें और त्रिगर्त के गर्त भरें, यही प्रार्थना है।


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