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चुनौतियों को नई सरकार का इंतजार

डॉ. रचना गुप्ता हिमाचल में 13वीं विधानसभा चुनाव के मतगणना में महज पांच दिन का समय शेष है। मतदान स

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Dec 2017 05:30 PM (IST)Updated: Wed, 13 Dec 2017 05:30 PM (IST)
चुनौतियों को नई सरकार का इंतजार
चुनौतियों को नई सरकार का इंतजार

डॉ. रचना गुप्ता

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हिमाचल में 13वीं विधानसभा चुनाव के मतगणना में महज पांच दिन का समय शेष है। मतदान से लेकर मतगणना तक के 39 दिन के लंबे इंतजार के बाद नई सरकार बनेगी। चाहे जो भी राजनीतिक दल सत्ता में आए परंतु छोटे और पहाड़ी राज्य का विकास करना इस सरकार के लिए बहुत ज्यादा चुनौती पूर्ण रहेगा। सुनहरे भविष्य के जिन वादों व ख्वाबों के साथ राजनेता सत्तासीन होंगे, उन्हें जनता मूर्त रूप में देखना चाहेगी। लेकिन वह सब कैसे संभव होगा, यह नई सरकार की कुशल कार्यप्रणाली एवं दक्षता पर निर्भर करेगा। साथ ही यह चुनौतियां भी रहेगी कि खराब वित्तीय हालात से उबरते हुए, पहाड़ कैसे पंख फैला सकेगा? पंजाब पुनर्गठन और हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के बाद से 'ऊपर और नीचे' के क्षेत्र में बंटा प्रदेश छह दशक में कितना आगे बढ़ पाया है, यह तब सहज महसूस किया जा सकता है जब यहां रेल सरकी भर नहीं। सड़कों में हादसों की रफ्तार में हजारों घर-आंगन सूने होते हों। एक अदद डॉक्टर व अच्छे अस्पताल की कमी से पूरा प्रदेश जूझ रहा हो। मशरूम की तरह उगे निजी शिक्षण संस्थानों में हजारों युवा पढ़ें परंतु बेरोजगार हों। केंद्रीय स्कीमों को यदि छोड़ दें तो प्रदेश अपने पैरों पर कितना खड़ा हो पा रहा है, इसे तब सहज महसूस किया जा सकता है, जब पर्यटक प्रदेश से छिटक रहे हों और बिजली पैदा करने वाला प्रदेश आर्थिक अंधेरे में डूब रहा हो। सेब राज्य को बागवान अब नकार रहे हों और कर्ज लेकर वेतन दिया जा रहा है।

मतगणना से पहले दैनिक जागरण आपको ऐसे मुद्दों के जरिए हकीकत का आईना दिखा रहा है, जिससे सत्ता संभालने जा रहे नेताओं को उबारना होगा। सबसे पहले तो प्रदेश के खजाने का हाल बता देते हैं कि इसे सुधारने के लिए किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने काई प्रयास नहीं किए। राज्य आत्मनिर्भर बने, इसके लिए ठोस योजनाएं बनी हों। सुशिक्षित राज्य में बेरोजगारों की लंबी फौज के सामने कमाई के विकल्प दिए हों!

विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस के नेताओं ने मंच पर वादों के कसीदे पढ़े हैं। कोई पर्यटन के रूप में स्विट्जरलैंड की बात करता है तो काई रासायनिक खाद में लाल सेब की खो चुकी मिठास वापस दिलाना चाहता है। कोई यह भी कहता है कि जहां गांवों में बिजली व सड़क नहीं पहुंची, वहां देश का बेहतरीन एम्स अस्पताल भी होगा तो वहीं ट्रेन व जहाज भी आएंगे।

राज्य पर 45 हजार करोड़ का कर्ज है। आय के नाम पर आमदनी के नाम पर जगह-जगह नशे की दुकानों पर आबकारी व कराधान महकमा मेहरबान है। दो राजधानियां भी बन चुकी है। अब 18 दिसंबर को बनने जा रही नई सरकार इस सब पर किस तरह सोचेगी और काम करेगी, इस पर जनता की निगाहें पांच बरस रहेगी। यह भी महसूस करेगी कि 'माननीय' अपनी तनख्वाहों व सुविधाओं को बढ़ाने व फिजूलखर्ची कम करने से इतर क्या रास्ते प्रगति के निकालते हैं।


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