जिंक सप्लीमेंट दिलाएगा फैटी लिवर से मुक्त्ति, इंसुलिन संवेदनशीलता भी बढ़ेगी
आइआइटी मंडी के शोधकर्ताओं ने जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल तकनीक ईजाद की है इस तकनीक से फैटी लीवर की समस्या दूर हो जाएगी।
मंडी, जेएनएन। अब देश में लोगों को फैटी लिवर की बीमारी से नहीं जूझना पड़ेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के विशेषज्ञों ने इस समस्या का हल खोज निकाला है। सहायक प्रोफेसर स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज आइआइटी मंडी डॉ. प्रोसेनजीत मोंडल और सीएसआइआर एवं भारतीय विष विज्ञान शोध संस्थान लखनऊ के डॉ. देवब्रत घोष ने जिंक ऑक्साइड के नैनोपार्टिकल से लिवर में चर्बी जमा होने से रोकने की तकनीक ईजाद की है। यह तकनीक मद्यपान न करने वालों में लिवर की चर्बी की बीमारियों (एनएएफएलडी) की रोकथाम में सक्षम होगी। जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल से इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ेगी। इससे लिवर की चर्बी कम करने में मदद मिलेगी।
लिवर (यकृत) शरीर के अंदर का सबसे बड़ा अंग है। यह पित्त का स्नाव करता है। ग्लाइकोजेन के रूप में ग्लूकोज जमा करता है। विटामिन, मिनरल्स और एमीनो एसिड को जैव वैज्ञानिक रूप में अवशोषण योग्य बनाता है। पहलेलिवर की बीमारियां मुख्यत: हेपेटाइटिस वायरस के संक्रमण और मद्यपान की वजह से होती थी। आज रहन-सहन में बदलाव और खानपान की गलत आदतों की वजह से मद्यपान नहीं करने वालों में भी लीवर की बीमारियां (एनएएफएलडी) तेजी से बढ़ रही हैं। एनएएफएलडी में शरीर में बहुत ज्यादा चर्बी पैदा होती है जो सीधे लीवर की कोशिकाओं में जमा होती है। इसे स्टेटोसिस कहते हैं। इससे घाव या सिरॉसिस हो सकता है। अंत में लीवर बेकार हो जाता है।
डॉ. प्रसोनजीत मोंडल का कहना है कि एनएएफएलडी के लक्षणों में एक इंसुलिन रेसिस्टेंस (असर नहीं होना) है। इंसुलिन ग्लूकोज को स्टोर करने योग्य ग्लाइकोजेन में बदलने के साथ गैर चर्बी स्नोत से लिपिड पैदा करने में भी मदद करता है। इस प्रक्रिया को लाइपोजेनेसिस कहते हैं। कोशिका संबंधी कई कारकों की जटिल श्रृंखला और इंजाइम लाइपोजेनेसिस पर नियंत्रण रखते हैं। जीवनशैली खराब होने या आनुवांशिक कारणों से संकेत की प्रक्रिया खराब होने से इंसुलिन के काम में बाधा आती है। ज्यादा लाइपोजेनेसिस शुरू हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप लीवर में चर्बी जमने लगती है।
120 मिलियन भारतीय एनएएफएलडी से पीड़ित
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट 2017 में भारत में 259749 लोगों की लिवर की बीमारी से मौत हुई थी। लगभग 120 मिलियन भारतीयों के नॉन एल्कोहलिक फैटी लीवर रोग (एनएएफएलडी) से पीड़ित होने का अनुमान है। मोटापा और डायबिटीज के मरीजों में यह समस्या अधिक हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने चूहों पर किया शोध
शोध करने वाली टीम ने कोशिका और चूहा मॉडल का प्रयोग कर प्रदर्शित किया कि जिंक सप्लीमेंट (नैनोपार्टिकल या बतौर नमक) लिवर में चर्बी जमा होने से रोकता है। इसके आसपास इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ाता है। शोधकर्ताओं ने सबसे पहले मनुष्य के हेपेटोसेल्युलर कार्सिनोम सेल का जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स से उपचार किया। उपचार नहीं किए गए सेल की तुलना में इन सेल में लिपिड जमने का परीक्षण किया। चर्बी युक्त आहार पर पले चूहे के शरीर में नैनोपार्टिकल की सुई लगाई और सेल के संकेत, जीन के एक्सप्रेशन पर नजर रखी और कोशिका की ऊर्जा स्तर का भी आकलन किया।
इंसुलिन के कार्य का आकलन के लिए चूहे का ग्लूकोज़ टॉलरेंस टेस्ट भी किया गया और इसकी तुलना सामान्य आहार वाले चूहों और साथ ही, ऐसे चूहों से की गई जिनका नैनोपार्टिकल से उपचार नहीं किया गया। कोशिका परीक्षण जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल से उनमें चर्बी का जमना रुक गया। चूहों के मॉडल में देखा गया कि जिंक सप्लीमेंट ने चर्बी युक्त आहार पर पले चूहों के लिवर में चर्बी के जमने को बढ़ाने वाले सेल्युलर फैक्टर की रोकथाम कर दी। इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ाने और टाइप 2 डायबिटीज से जुड़े लीवर स्टीयोसिस में सुधार की उपचार रणनीतियां विकसित की जा सकती हैं।
जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स से मोटापा की अवस्था में शारीरिक होमियोस्टेसिस और इससे जुड़ी मेटॉबॉलिज्म की अनियमितताएं सुधार सकते हैं। इस अध्ययन के सह परीक्षकों में रिसर्च स्कॉलर सुश्री सुरभि डोगरा, सुश्री ख्याति गिरधर, पी विनीत डेनियल, स्वरूप चटर्जी, अभिनव चौबे और प्राध्यापकों में आइआइटी मंडी डॉ. सुब्रत घोष और सीएसआइआर, आइआइटीआर के डॉ. सत्यकाम पटनायक व आदित्य भी शामिल थे।