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पेट के बल सोएं, सांस लेना होगा आसान

हंसराज सैनी मंडी मंडी जिले के लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल नेरचौक के ि

By JagranEdited By: Published: Wed, 05 May 2021 08:44 PM (IST)Updated: Wed, 05 May 2021 08:44 PM (IST)
पेट के बल सोएं, सांस लेना होगा आसान
पेट के बल सोएं, सांस लेना होगा आसान

हंसराज सैनी, मंडी

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मंडी जिले के लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल नेरचौक के चिकित्सक कोरोना संक्रमितों को पेट के बल सुलाकर उनके शरीर में आक्सीजन का स्तर सुधार रहे हैं। पहल के सार्थक परिणाम भी सामने आए हैं। दिन में तीन से चार बार पेट के बल सोना मरीज की दिनचर्चा में शामिल किया गया है।

छाती के नीचे तकिया रखकर मरीज को पेट के बल 30 से 45 मिनट के लिए सुलाया जा रहा है। वार्ड ब्वॉय या तीमारदार मरीज की छाती पर हाथ से हल्का दबाव डालते हैं। इससे फेफड़े दोबारा सामान्य स्थिति में आ रहे हैं और मरीजों को कृत्रिम आक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ रही। मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डा. राजेश भवानी व उनकी टीम डेढ़ साल में 1200 कोरोना संक्रमितों की जिदगी दे चुके हैं। इनमें ज्यादातर ऐसे लोग हैं, जो कोरोना के अलावा अन्य गंभीर बीमारियों से भी पीड़ित थे। कोरोना की पहली लहर के दौरान यहां के चिकित्सकों ने करीब 40 कोरोना संक्रमित गर्भवती महिलाओं के सीजेरियन व सामान्य प्रसव करवा नई उम्मीद जगाई थी।

बकौल डा. राजेश भवानी, पीठ के बल सोने से फेफड़ों पर लिवर व पेट का दबाव बना रहता है। डायाफ्राम भी ठीक से काम नहीं कर पाता है। इससे फेफड़े सांस लेने व छोड़ने के दौरान पूरी तरह से फैल व सिकुड़ नहीं पाते हैं। पेट के बल सोने से लिवर, पेट व डायाफ्राम नीचे की तरफ सरक जाता है। इससे फेफड़ों को पूरी तरह फैलने व सिकुड़ने में मदद मिलती है। दबाव डालने से फेफड़ों की झिल्ली में बनी परत हटने से मरीज को सांस लेने व छोड़ने में आसानी होती है।

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क्या है डायाफ्राम

डायाफ्राम मांसपेशी की पतली झिल्ली है, जो श्वास तंत्र के अंगों को पाचन तंत्र के अंगों से अलग करती है। यह झिल्ली छाती में अस्थि पिजर के निचले हिस्से से जुड़ी होती है व फेफड़ों को अलग देती है। जब श्वास अंदर लेते हैं, यह झिल्ली सिकुड़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप छाती में ज्यादा जगह बन जाती है। फेफड़ों मे हवा जाती है व श्वास अंदर लेने की प्रक्रिया पूरी होती है। श्वास बाहर छोड़ने के वक्त यह झिल्ली फैलती है और फेफड़ों को ऊपर की तरफ जोर देती है, ताकि बिना किसी दुविधा के श्वास बाहर को निकाल सके।

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विकट हालात में नहीं हारा हौसला

विकट हालात में भी यहां के चिकित्सकों ने हौसला नहीं हारा। कई कोरोना की चपेट में आए। स्वस्थ होने के बाद फिर मोर्चे पर डट गए। प्रदेश सरकार ने लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज को 23 मार्च, 2020 को समर्पित कोविड अस्पताल का दर्जा दिया था। इसके बाद यहां प्रदेश के आठ जिलों मंडी, कुल्लू, लाहुल स्पीति, बिलासपुर, कांगड़ा, चंबा, ऊना व बिलासपुर के कोरोना संक्रमितों का उपचार हो रहा है। पहली लहर के दौरान यहां 1251 संक्रमित दाखिल हुए थे। डाक्टरों व अन्य स्टाफ ने 18 से 20 घंटे तक लगातार ड्यूटी दी। इस बार 200 मरीज भर्ती हो चुके हैं। इनमें 50 स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं।

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केस स्टडी

पेट के बल लेटने से मिला लाभ

कोरोना संक्रमित होने के बाद 23 अप्रैल को नेरचौक मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुआ था। सांस लेने में दिक्कत थी। शुगर का स्तर भी बढ़ा हुआ था। आक्सीजन लगाने के बाद चिकित्सकों ने उपचार शुरू किया। अगले दिन से रोजाना 30 से 35 मिनट तक पेट के बल सोने को कहा गया। पहले तो घबराहट हुई, मगर वार्ड में भर्ती अन्य मरीजों को पेट के बल लेटे देखा तो कोशिश की। चिकित्सकों के प्रयास रंग लाए और सात दिन के अंदर कृत्रिम आक्सीजन से निजात मिल गई।

-पूर्ण चंद, निवासी कोहाल (मंडी)।

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जिन संक्रमितों को सांस लेने में दिक्कत है उन्हें पेट के बल सुलाकर आक्सीजन का स्तर सुधारा जा रहा है। इसके अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं।

-डा. राजेश भवानी, मेडिसिन विभागाध्यक्ष लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक (मंडी)


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