17 साल बाद सेरी मंच पर नहीं हुआ रंगोत्सव
छोटी काशी के रूप में विख्यात प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी मंडी में रंगोत्सव यानी होली पर कोरोना वायरस का खौफ साफ दिखा। इससे आपसी भाईचारे व बुराई पर अच्छाई का प्रतीक रंगों का त्योहार होली का जश्न फीका रहा। 17 साल बाद ऐतिहासिक सेरी मंच पर रंगोत्सव का आयोजन नहीं हुआ। युवाओं की कुछ टोलियां अबीर गुलाल उड़ाती सेरी मंच जरूर आई लेकिन यहां सुनापन देख मायूस होकर लौट गई। हालांकि कुछ युवाओं ने अपने स्तर पर ढोल आदि की व्यवस्था की लेकिन रंग नहीं जम पाया। शहरवासियों ने भी
जागरण संवाददाता, मंडी : प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी छोटी काशी मंडी में रंगोत्सव यानी होली पर कोरोना वायरस का खौफ दिखा। इससे भाईचारे के प्रतीक रंगों के त्योहार होली का जश्न फीका रहा। 17 साल बाद ऐतिहासिक सेरी मंच पर रंगोत्सव का आयोजन नहीं हुआ। युवाओं की कुछ टोलियां अबीर गुलाल उड़ाती सेरी मंच जरूर आई, लेकिन यहां सूनापन देख मायूस होकर लौट गई। हालांकि कुछ युवाओं ने अपने स्तर पर ढोल आदि की व्यवस्था की, लेकिन रंग नहीं जम पाया।
शहरवासियों ने भी सेरी मंच से दूरी बनाए रखी। लोग घरों से नहीं निकले। छिटपुट जो निकले अपने परिचितों व रिश्तेदारों के घर में जाकर एक-दूसरों को होली की बधाई देते नजर आए। कुछ लोगों ने राजदेवता माधोराय के मंदिर में हाजिरी भर देवता के साथ होली खेली। लोगों ने माधोराय की मूर्ति को गुलाल लगाया।
होली पर सेरी मंच पर लोग एक ही जगह शांति से नाचते और एक-दूसरे को गुलाल लगाते थे। इसके लिए सेरी मंच पर डीजे की व्यवस्था होती थी। दोपहर बाद दो बजे तक हजारों लोग डीजे की धुनों पर थिरकते थे। रंगोत्सव में भाग लेने दूर दूर से युवाओं की टोलियां यहां पहुंची थी। शहरवासी भी यहीं पर होली का जश्न मनाते थे। कोरोना वायरस को लेकर जारी एडवाइजरी के बाद आयोजकों ने इस बार रंगोत्सव से हाथ खींच लिए थे। सेरी मंच पर कार्यक्रम का आयोजन न होने से खफा युवाओं की एक टोली ने कोरोना वायरस मुर्दाबाद के नारे भी लगाए।
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2003 से सेरी मंच पर होता है आयोजन
सेरी मंच पर रंगोत्सव 2003 से मनाया जाता है। समाजसेवी एवं एनआइआइटी संस्थान के प्रबंध निदेशक धमेंद्र राणा ने यह परंपरा शुरू की। रंगोत्सव शुरू करने का उद्देश्य था कि युवा स्वजनों की मौजूदगी में एक स्थान पर होली मनाएं। सेरी मंच पर डीजे लगाया जाता है। दिन में 11 से दोपहर बाद दो बजे तक कार्यक्रम चलता है। कुछ ही साल में रंगोत्सव प्रदेश भर में प्रसिद्ध हो गया। हर साल भीड़ का आंकड़ा बढ़ने लगा। लोग तीन घंटे तक जमकर नाचते गाते अबीर गुलाल उड़ाते हैं। 17 साल में यहां कभी जबरदस्ती रंग लगाने या हुड़दंग मचाने का कोई वाकया नहीं हुआ। न ही कभी किसी ने गैर को रंग लगाने की कोशिश की। इससे पहले लोग शहर के अलग-अलग हिस्सों में टोलियों में निकल कर होली मनाते थे।