शाह, नड्डा के घर सजेंगे देवता के मोहरे व रणसिंघे
हिमाचल इस साल पूर्ण राज्यत्व स्वर्ण जयंती समारोह मना है। 25 जनवरी 1971 को हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था। राज्यस्तरीय समारोह शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर होगा। इसमें गृहमंत्री अमित शाह व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को राज्य सरकार की तरफ से देव संस्कृति से जुड़े स्मृति चिह्न भेंट किए जाएंगे।
हंसराज सैनी, मंडी
हिमाचल इस साल पूर्ण राज्यत्व स्वर्ण जयंती समारोह मना है। 25 जनवरी 1971 को हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था। राज्यस्तरीय समारोह शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर होगा। इसमें गृहमंत्री अमित शाह व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को राज्य सरकार की तरफ से देव संस्कृति से जुड़े स्मृति चिह्न भेंट किए जाएंगे। स्मृति चिह्नों में दो रणसिघे लगाए गए हैं। दोनों रणसिघों के बीच देवता का मोहरा लगाया है। देव संस्कृति से जुड़े पारंपरिक स्मृति चिह्न तैयार करने का काम वीर सिंह को सौंपा गया था। वीर सिंह व उनके पिता घीमर राम को पारंपरिक वाद्ययंत्र बनाने की महारत हासिल है। धर्मशाला में आयोजित इन्वेस्टर्स मीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व देश विदेश से आए मेहमानों को प्रदेश सरकार की तरफ से देवरथ भेंट किए गए थे। 100 से अधिक देवरथ वीर सिंह ने तैयार किए थे।
गृह मंत्री अमित शाह को भेंट करने के लिए जो स्मृति चिह्न बनाया गया है, उसकी ऊंचाई पांच फीट व चौड़ाई चार फुट है। इसमें लगाए गए रणसिंघे व देवता के मोहरे बनाने में एक कारीगर को 12 दिन का समय लगा है। इसमें करीब पांच किलो तांबा व पीतल इस्तेमाल किया गया है। फ्रेम के बाहर कुल्लवी पट्टी लगाई गई है। अंदर भी पूरी तरह से पारंपरिक तरीके से साज सज्जा की गई है। दूसरा स्मृति चिह्न जेपी नड्डा को भेंट किया जाएगा। इसकी ऊंचाई तीन फीट व चौड़ाई ढाई फीट है। तीसरा स्मृति चिह्न इससे थोड़ा कम आकार का है। यह राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को भेंट किया जाएगा। इन दोनों स्मृति चिह्नों को तैयार करने में 16 दिन का समय लगा है। इनमें करीब सात किलो तांबा व पीतल का इस्तेमाल कर रणसिघे व देवता का मोहरा बनाया है। पंडोह में रणसिघे व देवता का मोहरा तैयार करने के बाद फ्रेम बनाने में दो दिन का समय लगा है। तीनों स्मृति चिह्नों के फ्रेम व साज सज्जा पर करीब 25,000 रुपये खर्च आया है।
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देव संस्कृति से जुड़े तीन स्मृति चिह्न बनाने का आर्डर आया था। इन्हें तैयार करने में करीब एक माह का समय लगाया है। स्मृति चिह्न तैयार कर आर्डर देने वालों को शुक्रवार को सौंप दिए हैं।
-वीर सिंह, पारंपरिक वाद्य यंत्र निर्माता।
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क्या है रणसिंघा
मान्यता है कि देवताओं ने राक्षसों पर लड़ाई जीत ली तो रणसिघा को जीत के जश्न के लिए बजाया गया था। रणसिंघा की उत्पत्ति युद्ध के मैदान में हुई है। रणसिघा पीतल से देव वाद्ययंत्र होता है जो प्राकृतिक तुरही के जैसी होती है। इसमें बहुत पतली धातु के चार पाइप होते हैं जो एक के भीतर एक करके लगाए गए होते हैं। यह देवताओं का प्रमुख वाद्ययंत्र भी है। इसे देवता के ढोल-नगाड़े से पहले बजाया जाता है। इसे देवताओं की पूजा-अर्चना के दौरान पहले बजाया जाता है।