हिमाचल: अटल सुरंग ने बचाए जीवन
छह माह तक बर्फ की कैद में रहने वाले लाहुल के लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने जो सपना देखा था, आपदा में फंसे सैकड़ों लोगों के लिए वह वरदान साबित हुआ।
जेएनएन, कुल्लू: छह माह तक बर्फ की कैद में रहने वाले लाहुल-स्पीति के लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जो सपना देखा था, आपदा में फंसे सैकड़ों लोगों के लिए वह वरदान साबित हुआ। दुनिया के सबसे ऊंचे एवं दुर्गम दर्राें में शुमार रोहतांग पास को बाईपास कर बनाई गई सुरंग सैकड़ों लोगों के लिए जीवनदायिनी साबित हुई। रोहतांग दर्रे के बर्फबारी से बंद होने के बाद सुरंग एक बेहतर विकल्प रहा।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2000 में लाहुल-स्पीति दौरे के बाद रोहतांग से सुरंग निर्माण का सपना देखा था। 2002 तक कई बार घाटी के लोग पूर्व पीएम से मिले व इसी दौरान सुरंग निर्माण को लेकर रूपरेखा तैयार की गई। हालांकि सरकार टूटने के कारण अटल सरकार इस सपने की नींव नहीं रख सकी। 2010 में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अटल के सपने की नींव रखी व आज यह सुरंग सैकड़ों लोगों के लिए जीवनदायिनी साबित हुई है। बीते सप्ताह से कुल्लू व लाहुल में मौसम के कहर से बर्फ की कैद में फंसे साढ़े आठ सौ से अधिक लोगों को इस सुरंग से रेस्क्यू किया गया है।
लाहुल घाटी में 20 सितंबर से बर्फ गिरनी शुरू हो गई थी, जो 21-22 सितंबर तक तीन-चार फीट हो गई। ऐसे में सैकड़ों लोग जो मनाली से होते हुए लाहुल के विभिन्न क्षेत्र और लेह की तरफ निकले थे व कुछ लोग जो लेह की ओर से मनाली की तरफ आ रहे थे, सभी बीच में ही फंस गए। यह सैकड़ों लोग चार-पांच दिन तक बर्फ की कैद में फंसे रहे और 25 सितंबर के बाद जब मौसम साफ हुआ तो इन्हें रेस्क्यू करने के प्रयास शुरू हुए। इनमें से गंभीर हालत में पहुंच चुके 75 से अधिक लोगों को तो वायुसेना के हेलीकॉप्टर से एयरलिफ्ट किया गया, लेकिन अन्य सैकड़ों लोगों को चौपर से निकालना असंभव था।
यहीं पर रोहतांग सुरंग की अहमियत सामने आई, जहां से अभी तक तीन दिन में सैकड़ों लोगों को बसों व बीआरओ के वाहनों में मनाली पहुंचाया गया। हालांकि अभी भी लाहुल घाटी में सैकड़ों लोग फंसे हैं, जिन्हें रोहतांग टनल से ही सुरक्षित रेस्क्यू करने के प्रयास चल रहे हैं।
टनल बनी वरदान
अमित रोहतांग टनल न होती तो शायद हम बर्फ की कैद से बाहर न निकल पाते। यह कहना था दिल्ली से केलंग में एक शादी समारोह में शामिल होने आए अमित ग्रोवर का, जिनके साथ पांच और लोग भी थे। अमित ने बताया वापस आते वक्त बर्फबारी शुरू हो गई थी, इसके बाद भी वह लोग अपनी गाड़ी में रोहतांग की चढ़ाई पर आ गए, लेकिन आगे वाहनों का जाम लग गया था और कई अन्य वाहनों के साथ वह भी कोकसर लौट आए। चार दिन बाद बीआरओ ने उन्हें एक टिप्पर में रोहतांग टनल से मनाली पहुंचाया। अमित बताते हैं रोहतांग सुरंग से बाहर निकलते ही उन्हें महसूस हुआ कि वह दुनिया में वापस आ गए हैं।
रोहतांग सुरंग निर्माण :
-1983-84 में रोहतांग सुरंग बनाने पर चर्चा शुरू हुई थी।
-2000 में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के समय सुरंग निर्माण को लेकर गंभीरता से विचार हुआ। उन्होंने यहां का दौरा भी किया था।
-जून 2010 में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने किया शिलान्यास।
-08 किलोमीटर 800 मीटर रोहतांग टनल की लंबाई।
-13,300 फीट समुद्र तल से ऊपर बनने वाली पहली सुरंग।
-46 किलोमीटर दूरी रोहतांग सुरंग बनने मनाली से लाहुल की कम हुई है।
-04 घंटे की कटौती होगी लेह के सफर में।
-केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 तक सुरंग को तैयार करने का किया था दावा।
-पानी के अधिक रिसाव व लूज डाटा निकलने से निर्माण में हुई देरी।
-निर्माण में देरी के कारण ही 1500 करोड़ की लागत का अनुमान पहुंचा चार हजार करोड़ के पार।
-टनल के बनने से रोहतांग दर्रे को नहीं पड़ेगा लांघना।
-सुरंग से रोजाना करीब 1500 भारी वाहन और 3000 हलके वाहन, 80 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गुजर सकेंगे।
-मनाली से धुंधी और धुंधी से सुरंग द्वारा सीधे पहुंचा जा सकेगा लाहुल घाटी के सिस्सु में।
-बीआरओ की इस परियोजना में सुरंग का डिजाइन स्मैक कंपनी ने, जबकि निर्माण कार्य स्ट्रॉबेग एफकॉन कंपनी ने किया है।
-केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की उपस्थिति में 24 अक्टूबर 2017 को बीआरओ ने रोहतांग सुरंग के दोनों छोर जोड़े।