शिल्पी नीरतू के माध्यम से बताया जात-पात का दर्द
संवाद सहयोगी कुल्लू मोहरा नाटक की कहानी एक ऐसे शिल्पकार के दर्द को बयां करती है ि
संवाद सहयोगी, कुल्लू : मोहरा नाटक की कहानी एक ऐसे शिल्पकार के दर्द को बयां करती है, जिसमें अनुसूचित जाति का शिल्पकार नीरतू देवता के मोहरों को सालभर पूरे नियम के साथ भूखे पेट बनाता है। उनमें कला शक्ति भरता है, लेकिन जब देवरथ बनकर तैयार होता है तो उसे अपने ही हाथों से सुसज्जित उस देवरथ को भी छूने की अनुमति नहीं दी जाती। यह कहानी समाज में जात-पात की खाई पर आधारित है। यह कहानी संस्कृति के शोधार्थियों के समक्ष शोध का विषय रखती है कि यह देवता की मर्जी है या हम लोगों ने खुद ही इसे जन्म देकर सदियों से इसका पालन पोषण किया है।
लालचंद प्रार्थी कलाकेंद्र में 13 दिवसीय हिमाचल नाट्य महोत्सव के तीसरे दिन रंगकर्मी केहर सिंह ठाकुर के निर्देशन में एकल अभिनय के माध्यम से एक्टिव मोनाल क्लचरल एसोसिएशन के कलाकार रेवत राम विक्की ने मोहरा नाटक का मंचन किया। शिल्पकार नीरतू देवता का खानदानी देवरथ और मोहरा बनाने वाले परिवार से है। वह सालभर पूरी निष्ठा और मेहनत से मोहरा तैयार करता है, लेकिन देवरथ तैयार होने पर उसे ही उस देवरथ को हाथ लगाने की इजाजत नहीं दी जाती। नीरतू का छोटा सा बच्चा जब अपने पिता से इस बारे में सवाल करता है तो वह जवाब देने के बजाय कुछ माह बाद उसी तरह का देवरथ तैयार करता है और बेटे से कहता है कि अब इस देवरथ को छूने से तुम्हें कोई नहीं रोकेगा, देवता सभी जगह विराजमान होते हैं, उनके लिए कोई जात-पात, छोटा-बड़ा मायने नहीं रखता।
मोहरा कहानी शिल्पकार नीरतू की भावदशाओं और स्थितियों को जीवंत करते हुए समाज के एक धड़े द्वारा इस व्यवस्था का प्रतिवाद न करके अपनी एक अलग व्यवस्था स्थापित करने की ओर कदम बढ़ाने का भी एक इशारा है। नाटक में मीनाक्षी ने सहयोग किया जबकि साहित्यकार यतिन पंडित, शिक्षिक एवं साहित्यकार इशिता, आर गिरीश विशेष रूप से मौजूद रहे।