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देवताओं की विदाई ने भक्तों को किया भावविभोर

देवमहाकुंभ के अंतिम दिन जिलेभर से आए देवी-देवता एक वर्ष बाद फिर मिलने का वादा करके अपने-अपने देवालयों को लौट गए।

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 04:15 PM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 06:17 AM (IST)
देवताओं की विदाई ने भक्तों को किया भावविभोर
देवताओं की विदाई ने भक्तों को किया भावविभोर

संवाद सहयोगी, कुल्लू : देवमहाकुंभ के अंतिम दिन जिलेभर से आए देवी-देवता एक वर्ष बाद फिर मिलने का वादा करके अपने-अपने देवालयों को लौट गए। लंका दहन के साथ ही देवी-देवताओं ने अपने देवालयों की ओर रुख किया और इसी के साथ इस देवसमागम का समापन भी हुआ। सात दिनों तक जहां अठारह करडू की सौह ढालपुर मैदान सहित पूरी रघुनाथ नगरी रामरास से सराबोर रही, वहीं देव व मानस के इस महामिलन के बाद देवी-देवताओं की विदाई के मंजर ने सभी लोगों को भावविभोर कर दिया।

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देवताओं की रवानगी के साथ ही ढालपुर मैदान फिर सूना पड़ गया। लंका दहन के बाद रघुनाथजी के मंदिर में भव्य आयोजन हुआ जिसमें हजारों देशी-विदेशी रामभक्तों ने भाग लिया। परंपरानुसार लंका दहन के बाद विजय की खुशी में कुल्लू में रामरास हुआ, जिसमें रघुनाथ जी के दरबार में प्रसिद्ध देवी हडिबा, त्रिपुरा सुंदरी व देवता पांचवीर कोट कंढी की घंटियां व अठारह करडू देवी-देवताओं के धड़च्छ के रूप में अपनी-अपनी हाजिरी भरी। इसके अलावा पंचवीर कोट कंढी का वाद्ययंत्र बाजा यहां रामराम में मौजूद रहा। वाद्ययंत्र की धुन पर देव पूजा के बाद रामरास में रघुनाथजी के भक्त जमकर थिरके।

सदियों से चली आ रही इस परंपरा में हर साल दशहरा के समापन के बाद सुल्तानपुर स्थित भगवान रघुनाथजी के मंदिर में रामरास का आयोजन होता है। इसके अलावा कुल्लू स्थित रघुनाथजी के मंदिर में अयोध्या की तर्ज पर सालभर रघुनाथजी के सभी आयोजन होते हैं और जिले के सैकड़ों भक्त इन आयोजनों में शामिल होते हैं।


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