कोरोना संकट ने रोका साल से बिछड़े देवताओं का मिलन
देवमहाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का जिस तरह आम जनता जश्न मनाती
कमलेश वर्मा, कुल्लू
देवमहाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का जिस तरह आम जनता जश्न मनाती है, उसी तरह देवी-देवता भी इस कारज का बेसब्री से इंतजार करते हैं। वह आपस में मिलकर रिश्तेदारी निभाते हैं। एक साल पहले दशहरा उत्सव से फिर मिलने का वादा कर बिछड़े देवी-देवताओं का इस बार कोरोना महामारी के कारण मिलन होना संभव नहीं है। अब उन्हें भी मिलने के लिए एक साल और इंतजार करना पड़ेगा।
देव और मानुष के मिलन के अनूठे उत्सव देवमहाकुंभ में इस बार सालों की परंपराएं टूटेंगी। हालांकि कुछ देवी-देवता दशहरा उत्सव के बाद भी कहीं न कहीं किसी देवकारज में मिलते हैं, लेकिन कोरोना संकट के बीच ऐसा नहीं हो पाया है। मानव की तरह देवताओं को दशहरा उत्सव में मिलने की उम्मीद थी, लेकिन इस वैश्विक महामारी के कारण इसे सूक्ष्म रूप से मनाने का निर्णय लिया गया है।
दशहरा उत्सव में हर साल शिव भगवान का पूरा परिवार भी मिलता था और सात दिन तक साथ मौजूद रहता था। इस दफा सिर्फ भगवान शिव (बिजली महादेव) के ही उत्सव में आने पर सहमति बनी है। उत्सव में खराहल घाटी के आराध्य देव बिजली महादेव, चौंग की माता पार्वती, ऊझी घाटी के घुड़दौड़ के गणेश व उनके भाई मनाली से कार्तिक स्वामी के रथ साथ रहते थे। देवी-देवताओं की भी आपस में रिश्तों की डोर बंधी होती है, जिसका उदाहरण हर साल अंतरराष्ट्रीय दशहरा में देखने को मिलता है। देवताओं के दादू कहे जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण कतरूसी नारायण इस उत्सव में कभी शामिल नहीं होते हैं, लेकिन उनके स्थान पर पोते क्षेत्रपाल थान हाजिरी भरते हैं। परिवार की दादी माता हिडिंबा का इस उत्सव में महत्वपूर्ण स्थान है। उनके आने से देवपरंपराओं का आगाज होता है। इस साल देवता आपस में मिलेंगे या नहीं, इस बारे में मंगलवार को होने वाली बैठक में निर्णय होगा। जिला कारदार संघ के अध्यक्ष जय चंद ने बताया कि मंगलवार को दशहरा कमेटी की बैठक होगी। उसमें देवी-देवताओं के रथ या निशानियां आने के बारे में फैसला लिया जाएगा।
मंगलवार को दशहरा उत्सव कमेटी की बैठक कमेटी के अध्यक्ष एवं शिक्षा मंत्री गोविद सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में होगी। उसमें चर्चा के बाद ही निर्णय लिया जाएगा कि उत्सव में देवी-देवता आएंगे या उनकी निशानियां।
महेश्वर सिंह, मुख्य छड़ीबरदार भगवान रघुनाथ जी।