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ब्यास की सफाई के लिए लड़ता एक योद्धा, कानून का भी लिया सहारा

beas river. अभिषेक ने हिमालयन पर्यावरण संरक्षण संगठन बनाया और नदी की सफाई में जुट गए।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 10 Feb 2019 01:59 PM (IST)Updated: Sun, 10 Feb 2019 01:59 PM (IST)
ब्यास की सफाई के लिए लड़ता एक योद्धा, कानून का भी लिया सहारा
ब्यास की सफाई के लिए लड़ता एक योद्धा, कानून का भी लिया सहारा

कुल्लू, मुकेश मेहरा। कुल्लू घाटी की जीवनदायिनी ब्यास नदी में अब विषैले तत्वों, टोटल कोलीफॉर्म का स्तर 2400 से कम होकर 400 तक पहुंच गया है। नदी की सेहत में यह सुधार एक दशक की मेहनत के बाद आया है। स्थानीय युवक अभिषेक शर्मा ने हिमालयन पर्यावरण संरक्षण संगठन बना 2007 में नदी को बचाने के लिए बीड़ा उठाया था, जो सफल होते दिख रहा है।

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कुल्लू निवासी अभिषेक की इस संस्था से अन्य लोग जुड़ते गए, जो नदी की सफाई के लिए सतत अभियान चलाते आए हैं। ये लोग नदी के किनारे रहने वाले लोगों को जागरूक करने का भी काम करते हैं। नदी को बचाने की लड़ाई 2007 में ब्यास के किनारे बनाई पिरड़ी डंपिंग साइट से शुरू हुई थी। यहां पर बड़ी मात्रा में कचरा सीधे नदी में फेंका जा रहा था। अभिषेक ने अपनी संस्था की ओर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) में याचिका दायर की। उन्हें इस प्रयास में सफलता मिली और एनजीटी ने दीवार खड़ी कर नदी में गंदगी जाने से रोकने के आदेश दिए।

अभिषेक बताते हैं, वर्ष 2006 में परिवार सहित हरिद्वार गए थे। वहां मुलाकात फ्रांस के शोधार्थी एंड्रयू से हुई। एंड्रयू नदियों पर शोध कर रहे थे। एंड्रयू बाद में कुल्लू आए और ब्यास नदी के विषैले पानी को देखकर हैरान हो गए। उन्होंने अभिषेक को इसके बारे में बताया। इसके बाद अभिषेक ने ब्यास को साफ करने की ठानी।

दरअसल, अभिषेक ने पर्यावरण विज्ञान में एमएससी की है। लिहाजा वह ब्यास में घुल रहे जहर से होने वाले नुकसान को समझ पाए। इसे रोकने के बड़े उद्देश्य से उन्होंने हिमालयन पर्यावरण संरक्षण संगठन बनाया और नदी की सफाई में जुट गए। बकौल अभिषेक, ब्यास नदी में टोटल कोलीफॉर्म का स्तर भले ही 2400 से 400 तक आ गया है, लेकिन अब भी इसकी मात्रा खतरे के निशान से ऊपर है। कुल्लू के सरवरी क्षेत्र में पानी के सैंपल में ई-कोलाई बैक्टीरिया पाया गया था। इसका कारण नदी में मलमूत्र का जाना है। रोहतांग के ब्यास कुंड से निकलने वाली ब्यास नदी पर कई जगह पेयजल योजनाएं बनी हैं। अकेले मनाली शहर से खुले में 15 से 20 टन कचरा नदी में जाता है। कुल्लू में हालात इससे ज्यादा खराब हैं। कुल्लू में ब्यास की सहयोगी नदी सरवरी में भी गंदगी डाली जाती है।

कानून का भी लिया सहारा

कुल्लू में कई जगह ब्यास में कचरा फेंका जा रहा था। इसके खिलाफ अभिषेक ने शिमला हाई कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने नदी में कचरा फेंकने पर जुर्माने का प्रावधान किया। अब नदी में कचरा फेंकने पर 500 से 3000 रुपये तक जुर्माना किया जाता है। बड़ी बात यह कि नियम पूरे हिमाचल की नदियों के लिए लागू हुआ।

ब्यास नदी का सांस्कृति और धार्मिक महत्व भी है। हमारा प्रयास है कि इसके पानी को पहले की तरह निर्मल बनाया जाए और बिपाशा यानी ब्यास नदी की जो पुरातन पहचान है, वह कायम रहे।

-अभिषेक, अध्यक्ष, हिमालयन पर्यावरण संरक्षण संगठन, कुल्लू।


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