अनदेखी के घी ने बिगाड़ा खिचड़ी का स्वाद
सुनील राणा देहरा राज्यस्तरीय लोहड़ी मेले का दर्जा प्राप्त परागपुर की लोहड़ी अब मनाई तो जरूर जाती है लेकिन पहले जैसी बात नहीं है। न ही तो पहले की तरह अब प्रदर्शनियां लगती हैं और न ही लोगों में पहले की तरह उत्साह है। दो साल से कोरोना की वजह से भी यह आयोजन फीका होकर रह गया है। अनदेखी की वजह से यहां पकने वाली लोहड़ी की खिचड़ी में अब पहले जैसे स्वाद नहीं रहा है।
सुनील राणा, देहरा
राज्यस्तरीय लोहड़ी मेले का दर्जा प्राप्त परागपुर की लोहड़ी अब मनाई तो जरूर जाती है, लेकिन पहले जैसी बात नहीं है। न ही तो पहले की तरह अब प्रदर्शनियां लगती हैं और न ही लोगों में पहले की तरह उत्साह है। दो साल से कोरोना की वजह से भी यह आयोजन फीका होकर रह गया है। अनदेखी की वजह से यहां पकने वाली लोहड़ी की खिचड़ी में अब पहले जैसे स्वाद नहीं रहा है।
नौ दिसंबर, 1997 में परागपुर को देश के पहले धरोहर गांव का दर्जा मिला था। 2002 में साथ लगते गरली को भी धरोहर गांव घोषित किया था। 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने यहां लगने वाले लोहड़ी मेले को राज्यस्तरीय दर्जा दिया। सबसे ज्यादा आकर्षण यहां स्थित करीब 300 साल पुराने भवन, रास्ते और अंग्रेजों के समय में तैयार किए गए नौण और तालाब हैं। साथ ही स्थानीय लोग भी पारंपरिक पहनावे, खानपान, पुराने सिक्कों, बर्तनों, अंगीठियों, चूल्हे व पुराने आभूषणों को प्रदर्शनी में प्रदर्शित करते थे और इस पर बकायदा इनाम भी मिलता था। इसके बाद कृषि विभाग व खादी बोर्ड समेत कई विभाग भी स्टाल लगाने लगे। कुल मिलाकर प्राचीन संस्कृत का सम्मान करने वाले लोगों के लिए यह आयोजन तीर्थ बन गया। लेकिन इस बीच इसके आयोजन पर दो गुट बन गए। एक आयोजन के पक्ष में था और दूसरा विरोध में। बाद में तो नौबत ऐसी आई कि स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी ही इस राज्यस्तरीय मेले का उद्घाटन करने लगे। आयोजन शुरू होने के कुछ साल बाद यहां इस खास दिन पर पकने वाली लोहड़ी की खिचड़ी भी अपने आप में आकर्षण का केंद्र थी, लेकिन धीरे-धीरे यह प्रथा खत्म हो गई। यहां के लोगों के समृद्ध जीवन स्तर का पता इस बात से चलता हे कि परागपुर और गरली 1960 में ही खुले में शौचमुक्त हो गए थे। इस आयोजन में लंबे समय तक मंच संचालन करते रहे स्थानीय निवासी श्याम शर्मा का कहना है कि 2020 में यहां के लोहड़ी मेले में पंजाबी गायक शैरी मान को बुलाया था। 2021 में कोरोना की वजह से आयोजन नहीं हो पाया। इस बार पंजाबी गायक गुरदास मान को बुलाया था, लेकिन कोरोना प्रोटोकोल की वजह से अब उस स्तर पर आयोजन नहीं हो रहा है।
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200 साल पुराना है तालाब
परागपुर बाजार के बीचोंबीच स्थित प्राचीन तालाब 200 साल पुराना है। यहां पानी की समस्या को दूर करने के लिए करीब चार किलोमीटर दूर लग नाम की जगह पर स्थित कुएं से पानी पहुंचाया गया था। पहले इसमें बांस का इस्तेमाल हुआ और बाद में इंग्लैंड से मंगवाई लोहे की पाइपें लगाई गईं। ईस्ट इंडिया कंपनी की मुहर लगी कई पाइपें अब भी संभालकर रखी गई हैं। यहां तालाब आज भी इलाके में पानी की जरूरत को पूरा कर रहा है।