त्रिगर्त प्रसंग: यहां कॉकरोच रोकने के लिए लग रहे लोहे के जाले, अफसर बोले- नेताजी की चांदी
टांडा मेडिकल कॉलेज जब देखो तब हल्ले की वजह ही रहता है। इन दिनों टांडा में जगह-जगह लोहे के जाले लग रहे हैं।
धर्मशाला, दिनेश कटोच। टांडा मेडिकल कॉलेज जब देखो तब हल्ले की वजह ही रहता है। इन दिनों टांडा में जगह-जगह लोहे के जाले लग रहे हैं। इंजीनियर को तो छोड़ो आम आदमी भी परेशान है कि टांडा में पहले ही जी का जंजाल क्या कम हैं जो अब लोहे के जाले भी लगाने शुरू कर दिए। जनता में हल्ला हुआ तो टांडा के अफसरों ने बताया कि पेशेंट के साथ आए लोगों की भीड़ को रोकने के लिए जाले लगाए जा रहे हैं। अब इन अफसरों को कौन समझाए कि टांडा में पेशेंट कंट्रोल नहीं पेस्ट कंट्रोल की जरूरत है। कॉकरोच हर बेड और आइसीयू में दौड़ते रहते हैं लेकिन इन पर कोई कंट्रोल नहीं है। एक अफसर तो यहां तक कह रहे हैं कि लोहे के जाले लगाने का यह काम एक नेता जी के लिए स्पेशली चांदी कूटने का धंधा बना हुआ है पर इस तरफ नजर किसी की नहीं है।
कांगड़ी दाल में कोड़कु
कांगडिय़े भाई आजकल बड़े खज्जल हैं। वे दो साल से मंत्रिमंडल की खिचड़ी में अपना शुद्ध देसी घी तलाश रहे हैं पर क्या मजाल की रिफाइंड तेल भी मिल जाए। बस कड़वे तेल का घूंट पीकर बैठ जा रहे हैं। मंडी के तत्तापानी में खिचड़ी का वल्र्ड रिकॉर्ड बना तो हिमाचल में महक बिखरी और कांगड़ा में तो भंगड़ा डल गया। हल्ला मच गया कि सरकार की खिचड़ी तो पक गई लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल की दाल तक नहीं गल पा रही है। कांगड़ा तो दाल में कोड़कु (पत्थर) बनकर रह गया है। दांत के नीचे आने का खतरा सबको है पर दिख किसी को नहीं रहा है। अब भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद राह मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भी खुलेगी। लेकिन इस राह में कई रोड़े एक-दूसरे के आगे हैं। तलबगार तो कई हैं पर झंडी किसे मिलती है इसी के इंतजार में कई जनाब भी हैं।
कांगड़ा का एक अफसर जासूस भी
कांगड़ा में एक आला अफसर अफसरी कम और जासूसी ज्यादा कर रहे हैं। सारे भाजपाई विधायकों की रेल बनी हुई है। सुनने में आया है कि कोई भी विधायक जितना सीएम से नहीं डरता है जितना कांगड़ा नरेश से डरता है। दावा किया जा रहा है कि यह अफसर सीएम को यह रिपोर्ट करता है कि जनाब फलाना-ढमकाना विधायक-मंत्री काम के लायक नहीं है। सब विधायक खज्जल बताए जा रहे हैं। डर सता रहा है कि कहीं उनकी एसीआर खराब न हो जाए। तीन साल बाद विधानसभा चुनाव में उनकी टिकट को इस साहब की रिपोर्ट न निगल जाए। अब इस साहब को कौन समझाए कि सुनारों वाली ठुक-ठुक सियासत में नहीं चलती है। यहां ठचाका ही होता है। अब तो इनसे तंग आकर एक नेता जी ने कह ही दिया है कि अफसर जी, अफसरी करो मुखबरी बिल्कुल नहीं लेकिन यह बात तो इस अफसर को ही सोचनी होगी।
शीतकालीन प्रवास से है आस
आस भी बुरी चीज है। सीएम साहब शीतकालीन प्रवास पर आएंगे। जनता की आशाओं का तो पता नहीं पर कांगड़ा-चंबा के नेताओं में खूब उहापोह मची हुई है। जिनको मंत्री बनना है वे भी उम्मीदों के हार लेकर तैयार बैठे हैं और जिनको मंत्री पद बचाना है वे भी फूलों के गुलदस्ते गूंथ रहे हैं। मुकाबला जबरदस्त होगा। एक विधायक साहब तो पहले से ही जबरदस्त इस्तकबाल के लिए मशहूर हैं। इस बार उनकी भीड़ जुटाओ क्षमता से बाकी नेता घबराए हुए हैं। उन्हें यही डर सता रहा है कि अकेले लडऩे वाले राजा की जात का यह सिपाही कहीं उस फौज की पात पर भारी न पड़ जाए जो फ्रंट फुट पर भीड़ को लेकर हमेशा बैक फुट पर नजर आती है। सियासत है, इसमें सुख-दुख अपने-अपने होते हैं, साझे नहीं। अब यह देखना है कि राजनीति के इस खेल में ऊंट किस करवट बैठता है।