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आतंकवाद से ज्यादा पर्यावरण के दुश्मनों से खतरा

आतंकवाद से देश और विश्व को इतना खतरा नहीं जितना पर्यावरण के दुश्मनों से है। वर्तमान में मानव और पर्यावरण के बीच में तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका है। विश्व में होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण जलवायु और लाइफस्टाइल में बदलाव होना है।

By Neeraj Kumar AzadEdited By: Published: Sat, 18 Dec 2021 11:55 PM (IST)Updated: Sat, 18 Dec 2021 11:55 PM (IST)
आतंकवाद से ज्यादा पर्यावरण के दुश्मनों से खतरा
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मध्य भारत में जर्मनी के राजदूत वाल्टर जे ङ्क्षलडर को स्मृतिचिन्ह भेंट कर सम्मानित करते हुए। जागरण

शिमला, राज्य ब्यूरो। आतंकवाद से देश और विश्व को इतना खतरा नहीं जितना पर्यावरण के दुश्मनों से है। वर्तमान में मानव और पर्यावरण के बीच में तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका है। विश्व में होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण जलवायु और लाइफस्टाइल में बदलाव होना है। इससे हर साल 70 लाख लोग मर रहे हैं। आतंकवाद या ङ्क्षहसा से होने वाली मौतों का 26वां स्थान है। इसलिए पर्यावरण को बचाने और शिक्षा प्रणाली में पर्यावरण और प्रकृति को शामिल करने की जरूरत है।

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यह बात पर्यावरणविद् एवं विज्ञानी सोनम वांगचुक, निदेशक स्टूडेंट््स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट आफ लद्दाख ने शिमला स्थित पीटर हाफ में 'सुदृढ़ हिमालय, सुरक्षित भारतÓ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन-2021 के दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान कही। शनिवार को दो दिवसीय सम्मेलन का पहला दिन था। वांगचुक ने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली बच्चों के 10 से 15 वर्ष बेकार कर रही हैं। उन्हें जीवन, पर्यावरण और संस्कृति के बारे में नहीं बताया बताया जा रहा। अब भी देर की तो इसके आने वाले समय में गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। वांगचुक पर ही 'थ्री इडियटÓ फिल्म बनी थी। उन्होंने कहा कि लोगों को शिक्षित करने के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति जागरूक भी किया जाए। इस क्षेत्र में सभी धर्म अङ्क्षहसा की बात करते हैं और सभी धार्मिक संस्थाओं को पर्यावरण से होने वाली ङ्क्षहसा को रोकने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। उद्योग, वाहन, हवाई जहाज पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। ये प्रदूषण फैला रहे हैं।

हिमाचल के प्रयासों की सराहना

हिमाचल प्रदेश की ओर से पर्यावरण को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की वांगचुक ने सराहना की। उन्होंने बताया कि लद्दाख में भी अपने स्तर पर पर्यावरण के बेहतर उपयोग पर कार्य कर रहे हैं।

ज्यादा नहीं, कम बारिश और हिमपात है घातक

ज्यादा नहीं, कम बारिश और हिमपात ज्यादा खतरनाक है। वांगचुक ने चेताया कि कम बारिश और हिमपात से पीने को पानी नहीं मिलेगा और पृथ्वी पर जीवन समाप्त भी हो सकता है यदि जल्द न संभले। अधिक बारिश के पानी को काबू करने की जरूरत है, इसके लिए जूनिफर और वाइल्ड गुलाब जैसे स्वयं उगने वाले पौधों को पहाडों पर रोपा जा सकता है। इससे बाढ़ नहीं आएगी। बच्चों को स्कूल से ही शोध और प्राकृतिक प्रेम और उसे बचाने के लिए तैयार करने की जरूरत है।


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