यहां 35 सदस्यों का संयुक्त परिवार, मुखिया बोले- पिता जी ने कहा था; कभी अलग न होना
घुमारवीं कस्बे की आइपीएच कॉलोनी में रह रहे चंदेल परिवार की तीन पीढिय़ां एक ही छत के नीचे और एक ही चूल्हे में खाना बनाकर समाज को एक उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं।
घुमारवीं (बिलासपुर), मनीष गर्ग। हां संस्कार की ईंटें हैं...समझ का फर्श है...आदर की टाइलें हैं और मूल्यों का गारा है...इसलिए घुमारवीं का चंदेल परिवार कहता है, 'यह घर हमारा है।Ó यही अंतर होता है घर और मकान में। घुमारवीं कस्बे की आइपीएच कॉलोनी में रह रहे चंदेल परिवार की तीन पीढिय़ां एक ही छत के नीचे और एक ही चूल्हे में खाना बनाकर समाज को एक उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं। जाहिर है, परस्पर आदर और पारिवारिक मूल्यों ने इन्हें एकता के सूत्र में बांधा नहीं.... सलीके के साथ सहेजा है।
परिवार के मुखिया 67 वर्षीय कर्मचंद चंदेल बतौर अध्यापक सेवानिवृत्त हुए हैं। ये छह भाई हैं। इनके दूसरे भाई एमएस चंदेल बतौर आइटीओ तथा तीसरे भाई किशोर चंद चंदेल कैंटीन डिपार्टमेंट स्टोर्स से सेवानिवृत्त हुए हैं। चौथे भाई विजय कुमार चंदेल व पांचवें सुभाष चंद चंदेल दोनों पूर्व सैनिक हैं। सबसे छोटा भाई हरीश चंदेल व्यवसायी है।
एमएस चंदेल अपनी पत्नी और दो बच्चों सहित दिल्ली में रहते हैं और उनके बच्चों की भी शादियां हो गई हैं और उनके भी आगे दो बच्चे हैं परंतु यहां आने पर उनका घर जब घर आते हैं तो यहीं आते हैं। इसके अलावा बाकी पांचों भाई और उनके परिवार बच्चे सभी हम एक ही छत के नीचे रहते हैं।
बकौल चंदेल, 'हमारे पिता स्व. शेर ङ्क्षसह चंदेल व माता शेहरू चंदेल ने हमें संस्कार दिए थे कि मिलजुल कर रहना है। एक ही चूल्हे में सबका खाना बने। हम उन्हीं का कहा मान रहे हैं।Ó कर्म चंद चंदेल जोर देकर कहते हैं, 'जब भी कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना हो तो उसमें पूरा परिवार साथ बैठता है और महिलाओं की भी उसमें राय ली जाती है। मेरे परिवार की खूबी सहनशीलता है। महिलाओं में परस्पर समझ है। अगर एक महिला किसी कार्य में लगी होगी तो दूसरी अपने आप दूसरे कार्य में लग जाएगी।Ó
खेल-खेल में खिली भावना
किशोर चंद्र चंदेल बताते हैं, 'हम सभी भाई वालीबॉल के खिलाड़ी रहे हैं और खेलों से जुड़े रहे हैं। बच्चे भी किसी न किसी खेल से जुड़े हैं। खेलने से भी इक_े रहने की भावना आती है तो एक यह भी कारण है कि हमारा परिवार संयुक्त परिवार है।Ó
पैसे का हिसाब किताब मुखिया के पास
सभी भाई घर के मुखिया के पास पैसे जमा करवाते हैं जिससे माहभर का राशन लाया जाता है। इसमें दो क्विंटल चावल, दो क्विंटल आटा, 50 किलो दालें 300 लीटर दूध और सब्जियां, फल और पांच एलपीजी सिलेंडर माह में लगते हैं। माहभर का करीब 35 हजार रुपये खर्चा आता है।
रोज बनती हैं 200 रोटियां
घर की महिलाएं बताती हैं कि करीब दो सौ रोटियां, तीन किलोग्राम चावल, 100 कप चाय और बच्चों को दूध देने का काम उनका है। सप्ताह में दो दिन मांसाहार बनता है। दोनों दिन रसोई का जिम्मा पुरुषों का होता है। सप्ताह में दस किलो मांस भी लग जाता है। दिन के तीनों समय के खाने में छह से सात किलो चावल, दो किलो दाल, आलू-प्याज 50-50 किलो, लहुसन पांच किलो, हल्दी हर रोज करीब दो सौ ग्राम, रिफाइंड तेल लगभग तीस लीटर माह का, चाय पत्ती महीने की तीन किलो, चीनी 35 किलो, चार किलो सब्जी, मसाला लगभग दो किलो लगता है। गैस सिलेंडर महीने में पांच लगते हैं।
22 लीटर का पतीला भी
घर में छह-छह लीटर के तीन कुकर, 22 लीटर का एक, दस-दस किलो के तीन पतीले, पांच लीटर के तीन कुकर हैं, जिनमें खाना पकता है। हां, परिवार में कपड़े सभी अपने-अपने बच्चों को अलग-अलग से उनकी पसंद के मुताबिक लेकर देते हैं।