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द्वितीय विश्‍व युद्ध में युद्धबंदी कैंप रहे टांडा को एक सोच ने बना दिया टीबी सेनिटोरियम, 1952 में रखी थी आधारशिला

Tanda Hospital द्वितीय विश्व युद्ध में युद्धबंदी कैंप रहे टांडा को एक सोच ने टीबी सेनिटोरियम बना दिया। इसके लिए 650 कनाल भूमि दान ही नहीं दी बल्कि 200 बिस्तर के टीबी सेनिटोरियम में महिला व पुरुष वार्ड के साथ-साथ प्रशासनिक ब्लॉक सराय व क्लब का भी निर्माण करवाया।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Wed, 24 Mar 2021 11:48 AM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 12:14 PM (IST)
द्वितीय विश्‍व युद्ध में युद्धबंदी कैंप रहे टांडा को एक सोच ने बना दिया टीबी सेनिटोरियम, 1952 में रखी थी आधारशिला
द्वितीय विश्व युद्ध में युद्धबंदी कैंप रहे टांडा को एक सोच ने टीबी सेनिटोरियम बना दिया।

टांडा, तरसेम सैनी। द्वितीय विश्व युद्ध में युद्धबंदी कैंप रहे टांडा को एक सोच ने टीबी सेनिटोरियम बना दिया। इसके लिए 650 कनाल भूमि दान ही नहीं दी, बल्कि 200 बिस्तर के टीबी सेनिटोरियम में महिला व पुरुष वार्ड के साथ-साथ प्रशासनिक ब्लॉक, सराय व क्लब का भी निर्माण करवाया। इसका श्रेय जाता है ऊना जिले के हरोली निवासी राय बहादुर जोधामल कुठियाला को। कांगड़ा जिले की सदरपुर पंचायत में इस जगह अब डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा संचालित हो रहा है।

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चीड़ व सिल्वर ओक के गगनचुंबी पेड़ों से घिरे सदरपुर पंचायत के इस क्षेत्र को राय बहादुर जोधामल कुठियाला ने क्षय रोगियों के उपचार के लिए अनुकूल पाया। उस समय वह पंजाब सरकार के करीबी थे। उन्होंने 28 अक्टूबर 1952 को पंजाब के गवर्नर चंदूलाल त्रिवेदी से टांडा में टीबी सेनिटोरियम का शिलान्यास करवाया। यहां महिला व पुरुष वार्ड, प्रशासनिक ब्लॉक, सराय व जोधामल क्लब का निर्माण भी अपने पैसों से करवाया। 21 मई 1958 को 200 बिस्तर के इस टीबी सेनिटोरियम का उद्घाटन भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। यह प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा टीबी सेनिटोरियम था। प्रदेश में सबसे पहले सोलन के धर्मपुर में टीबी अस्पताल खोला गया था।

मुफ्त होता था टीबी मरीजों का इलाज

सदरपुर निवासी एवं सेवानिवृत्त चिकित्सा अधिकारी डा. एमके गुप्ता ने बताया कि टीबी सेनिटोरियम टांडा में मरीजों का मुफ्त इलाज होता था। सारी जांच के साथ-साथ मरीजों की जांच भी मुफ्त थी। तब मरीजों का इलाज साल-साल तक भी चलता था, लेकिन उन्हें इसके लिए कोई पैसा नहीं देना पड़ता था। यहां पंजाब से सटे क्षेत्रों के अलावा अब के हिमाचल के कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, चंबा, मंडी व कुल्लू इत्यादि क्षेत्रों के टीबी मरीजों का इलाज होता था।

युद्धबंदी कैंप था टांडा

डा. एमके गुप्ता बताते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान टांडा युद्धबंदी कैंप हुआ करता था। यहां कैदियों को रखा जाता था। जहां टीबी सेनिटोरियम का प्रशासनिक ब्लॉक बनाया गया था वहां हेलीपैड हुआ करता था।

डॉट व डॉट प्लस सेंटर भी हैं यहां संचालित

टीबी सेनिटोरियम अब टांडा मेडिकल कॉलेज का हिस्सा है। इसे पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के अधीन चलाया जा रहा है। टीबी मरीजों की सभी तरह की जांच यहां मुफ्त की जाती है।


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