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तीन दशक से महिलाओं के लिए समानता की लड़ाई लड़ रही रीना तंवर, समता संगठन के बैनर तले छेड़ी मुहिम

Swatantrata ke sarathi तीन दशक से महिलाओं के लिए समानता की लड़ाई लडऩे वालीं शिमला की डॉ. रीना तंवर के अंदर आज भी आधी आबादी को पूरे हक दिलाने का जुनून कायम है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 01:25 PM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 01:25 PM (IST)
तीन दशक से महिलाओं के लिए समानता की लड़ाई लड़ रही रीना तंवर, समता संगठन के बैनर तले छेड़ी मुहिम
तीन दशक से महिलाओं के लिए समानता की लड़ाई लड़ रही रीना तंवर, समता संगठन के बैनर तले छेड़ी मुहिम

शिमला, रमेश सिंगटा। तीन दशक से महिलाओं के लिए समानता की लड़ाई लडऩे वालीं शिमला की डॉ. रीना तंवर के अंदर आज भी आधी आबादी को पूरे हक दिलाने का जुनून कायम है। समता संगठन के बैनर तले अब तक असाधारण कार्य किया है। सबसे पहले निरक्षरता के खिलाफ शिमला में आंदोलन छेड़ा था। तब शिमला के आसपास की 18 पंचायतों को एक्शन रिसर्च मॉडल के नाम से पुकारते थे। इस मॉडल को उत्तर भारत का केरल कहा जाता था। निरक्षर महिलाओं को एकत्र कर उन्हें साक्षरता का ककहरा सिखाया। यह अभियान स्वयंसेवी भावना के आधार पर हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति ने चलाया।

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समता इसी के अधीन गठित किया गया। इसके सार्थक नतीजे आने के बाद 14 जून, 1992 को सरकार ने पूरे हिमाचल में आंदोलन चलाया था। उसी आंदोलन से निकली महिलाओं को रीना तंवर ने समता के साथ जोड़ा। इन्हें कानूनी अधिकारियों के बारे में जागरूक किया। राजनीतिक, आर्थिक तौर पर सशक्त किया। स्वयं सहायता समूह गठित करने की सोच यहीं से आई। आज पूरे हिमाचल में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएं आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रही हैं। गैर सरकारी प्रयासों का असर यह हुआ कि सरकार ने भी इसे सरकारी स्तर पर अपनाया।

चंदू को पढ़ाया, बनी थी साक्षरता की ब्रांड एंबेसडर

डॉ. रीना एवं अन्य महिलाओं ने 1990 में शिमला के आसपास स्वयंसेवी आधार पर निरक्षर महिलाओं को साक्षर करने का बीड़ा उठाया। शोधी की चंदू देवी हिमाचल की पहली ऐसी महिला थी, जिसने साक्षरता में पढऩा सीखा। वह पहाड़ की निरक्षर महिलाओं के लिए मिसाल बनी थी। दिल्ली में आयोजित एक समागम में उन्होंने धाक जमाई थी। बाद में वह वार्ड पंच भी चुनी गई थी।

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मुहिम छेड़ी

समता संगठन ने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ राज्यभर में मुहिम छेड़ी। अभी भी इस बारे में लोगों को जागरूक किया जा रहा है। इसके अलावा महिला अत्याचारों की रोकथाम के लिए कानूनी साक्षरता का पाठ पढ़ाया। आंदोलन का ही नतीजा है कि आज प्रदेश में साक्षरता दर 83 फीसद हैं। डॉ. रीना राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का भी हिस्सा रहीं। उन्होंने निरक्षरों के लिए प्राइमर लिखने में भी मदद की।

जागरूकता से राजनीति में आई महिलाएं

डॉ. रानी कहती हैं कि जागरूकता के कारण महिलाएं राजनीति में आगे आईं। साक्षरता आंदोलन की वजह से इनमें आत्मविश्वास बढ़ा। ये पंचायती राज संस्थाओं में निरंतर चुनी जाने लगी। यह कॉलेज की ङ्क्षप्रसिपल पद से रिटायर हो चुकी हैं, लेकिन समाज सेवा का कार्य जारी रखा है।

इसी संगठन से जुड़ी थीं रतन मंजरी

रतन मंजरी, प्रेमकुमारी ठाकुर, अंशुमाला गुप्ता जैसी महिलाएं समता से जुड़ी रहीं। बाद में इन्होंने नया मुकाम हासिल किया। रतन मंजरी ने तो किन्नौर की महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकारी दिलाने की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी, इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली थी। प्रेम कुमारी ठाकुर ने अलग से संस्था बनाई है। वह इसके जरिये महिलाओं में अधिकारों की लौ जगा रही हैं।


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