सख्त सजा, बेहतर तकनीक...माफिया फिर भी बेलगाम
Liquor Mafia in Himachal हिमाचल में संगीन अपराधों में ही नहीं बल्कि आबकारी एवं कराधान अधिनियम मेें भी सख्त सजा का प्रविधान है। सुंदरनगर जहरीली शराब केस की तरह ही ऐसी शराब के सेवन से मौत हो जाए तो आरोपितों को मृत्य़ुदंड जैसी कठोर सजा का प्रविधान है।
शिमला, रमेश सिंगटा।
Liquor Mafia in Himachal, हिमाचल में संगीन अपराधों में ही नहीं बल्कि आबकारी एवं कराधान अधिनियम मेें भी सख्त सजा का प्रविधान है, लेकिन माफिया फिर भी बेलगाम है।
सुंदरनगर जहरीली शराब केस की तरह ही ऐसी शराब के सेवन से मौत हो जाए तो आरोपितों को मृत्य़ुदंड जैसी कठोर सजा देने की प्रविधान है। 2011 के नए आबकारी अधिनियम की सेक्शन 41 में कहा गया है कि अगर मिलावटी या जहरीली शराब के गैर कानूनी, अमानवीय कार्य से किसी की मौत हो जाए तो आरोपित को अदालत से मौत तक की सजा हो सकती है। साथ ही दस लाख तक का जुर्माना हो सकता है। कड़े कानून के बावजूद इसका कड़ाई से पालन नहीं हो पा रहा है।
हिमाचल पुलिस देश-दुनिया के साथ आइटी के साथ कदमताल कर रही है। तकनीक की मदद से तस्करों की पहचान करना पहले से आसान हो गया है, फिर भी अवैध शराब की तस्करी धड़ल्ले से होती है। अब तो जहरीली शराब के घर में ही कारखाने स्थापित किए जा रहे हैं। हमीरपुर में ऐसा ही हुआ। ऊंची पहुंच वाले एवं रसूखदारों से संंबंध बनाने वाले आरोपित के इंटरनेट मीडिया पर फोटो खूब वायरल हो रहे हैं। ऐसा अपने कारनामों पर पहुंच के माध्यम से पर्दा डालने के मकसद से किया गया होगा। उधर, ताजा घटना के बाद पुलिस अपने खुफिया तंत्र, मुखबिरों के तंत्र को और मजबूत करेगी। इस संबंध में सभी थाना प्रभारियों समेत जिलों के एसपी को निर्देश जारी किए गए हैं।
मुआवजे की भी व्यवस्था
आबकारी अधिनियम की धारा 42 में मुआवजे को परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि जहरीली शराब या मिलावटी शराब के सेवन करने से मौत पर मृतक के कानूनी वारिस को कम से कम तीन लाख मुआवजा देना होगा। ऐसी शराब के सेवन से गंभीर चोट आने पर पीडि़त को कम से कम दो लाख मुआवजा देना होगा। मामूली जख्म होने पर कम से कम बीस हजार रुपये मुआवजा मिलेगा। कोर्ट से आदेश पारित होने के बाद प्रभावित परिवार 90 दिन के अंदर हाईकोर्ट में अपील कर सकता है।
अवैध कार्य पुलिस की मिलीभगत के संभव नहीं
इंटरनेट मीडिया में लोग कई तरह की टिप्पणियां कर रहे हैं। इनमें कहा जा रहा है स्थानीय पुलिस की मिलीभगत के बिना कोई भी अवैध कार्य संभव नहीं हो पाता है। आइटी के इस जमाने में तो ऐसा करना और भी कठिन होता है, जब शहर दर शहर तीसरी आंख का पहरा यानी सीसीटीवी कैमरे लगे हों।