टेलीविजन : दूरियां मिटाई, खुशियां बढ़ाई
किसी समय पूरे परिवार को एक सूत्र में पिराने वाला टीवी यानी टेलीविजन अब नए रूपों में अलग-अलग कमरों की शोभा बन गया है।
मुकेश मेहरा, पालमपुर। किसी समय पूरे परिवार को एक सूत्र में पिराने वाला टीवी यानी टेलीविजन अब नए रूपों में अलग-अलग कमरों की शोभा बन गया है। पहले पूरा परिवार एक कमरे में बैठकर टीवी में आने वाले कार्यक्रमों का आनंद लेता था लेकिन अब ऐसा माहौल नहीं है। पालमपुर निवासी बालकृष्ण मेहरा बताते हैं, 1972 में उन्होंने सबसे पहले टेक्सला कंपनी का टीवी लिया था। उस समय उनके घर के आसपास किसी के पास टीवी नहीं था। बकौल मेहरा, परिवार सहित आसपास के लोग भी कार्यक्रमों को देखने के लिए आते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा है। अब घरों के हर कमरे में अपना-अपना एलईडी टीवी दीवारों पर लटका मिलता है।
वह बताते हैं कि 1970 के दशक से टेलीविजन का क्रेज लोगों के लिए बढ़ा था। उस समय टेक्सला सहित अन्य कंपनियां होती थीं, जबकि आज शोरूम के जमाने में 20 हजार से ढाई लाख रुपये तक आधुनिक तकनीक से लैस एलईडी टीवी बाजार में उपलब्ध हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान करने वाले जितेंद्र बंटा उर्फ जीतू बताते हैं कि बाजार में आए दिन एलईडी टीवी नित आधुनिक रूपों में आ रहे हैं। नए-नए फीचर भी लोगों को पसंद आ रहे हैं। आज बाजार में अढ़ाई लाख से पांच लाख तक की एलईडी टीवी मौजूद हैं। साथ ही ऑनलाइन मार्केट भी इसका खूब व्यापार कर ही है।
आंखों को रखें सुरक्षित
पहले टीवी ब्लैक एंड व्हाइट होते थे और उनका आंखों पर खास असर नहीं पड़ता था। रंगीन टेलीविजन आने के बाद इसकी ब्राइटनेस भी आंखों के लिए परेशानी बन रही है। खासकर बच्चे अक्सर इनके नजदीक बैठकर प्रोग्राम देखते हैं और यह आंखों के लिए हानिकारक होता है। इससे कॉर्निया पर असर पड़ता है।
वर्तमान में एलईडी टीवी की स्क्रीन यदि दो फीट की है तो इसे देखने के लिए पांच गुणा दूर यानी आठ से दस फीट तक दूर बैठें। साथ ही अगर नजदीक हों तो आंखों को झपकते रहें। लगातार बिना पलक झपके टीवी देखने से कॉर्निया के स्वच्छ मंडल पर असर पड़ता है। इससे आंखें लाल रहना आदि दिक्कत बढ़ जाती है। टीवी और कंप्यूटर दोनों को कम से कम 20 मिनट देखने के बाद आंखों को रेस्ट जरूर दें -डॉ. राजीव, एचओडी नेत्र विभाग, टांडा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल