Jagran Special बर्फ मुसीबत नहीं तोहफा है प्रकृति को धन्यवाद दें
प्रदेश की हसीन वादियों में खुशनुमा रोमांस के वक्त रोमांच की शोखियां भी शामिल हैं। बर्फ के खरबों फाहों की बहुत जरूरत है। इतना कष्ट सहने के बावजूद प्रकृति कितनी मेहरबान है। विकास और सुविधाओं के बीजों से विनाश और असुविधाओं के फल भी हमें पचाने होंगे।
प्रभात कुमार। कुछ साल पहले रोहतांग से बस में लौट रहा था। अनुभवी चालक बर्फ की ऊंची दीवारों के बीच पूरे आत्मविश्वास से बस चला रहा था। स्थानीय यात्रियों को छोड़ दें तो देश के दूसरे हिस्सों से आए कई पर्यटक कभी आंखों पर उंगलियां रखकर डर रहे थे, 'उई बाबा मर गएÓ कह रहे, कभी खिड़की से बाहर खाइयों में बिछी बर्फ को देखकर रोमांचित होकर, 'ओ माई गॉड, सो डीप, बट ब्यूटीफुलÓ कहकर मुस्कुराने की कोशिश कर रहे थे। उनके चेहरों पर रोहतांग जाकर मस्ती कर लौटने की संतुष्टि धूप की मानिंद खिली हुई थी। सामने एक खतरनाक मोड़ आ गया, स्मार्ट चालक फिर अनुभव प्रयोग करता और पहले बस पीछे लाकर, फिर मोड़कर, आगे घुमाकर आराम से बस निकालता। कई पर्यटक फिर हैरान होते। बर्फ में बस के सफर में उनकी बस हो गई थी, लेकिन मन निर्मल आनंद से लबालब था।
हजारों किलोमीटर दूर से उड़कर, रेल या अपने वाहन से हजारों पर्यटक हर साल प्रदेश के अनेक हिस्सों में पहुंचते हैं। बर्फ पडऩे के इंतजार में कई दिन-रात आसमान निहारते रहते हैं लेकिन बर्फ के फाहे आसमान में टिके रहते हैं। वे लौट रहे होते हैं तो संयोग से बर्फ गिरने लगती है। कुदरत की बैठक में कोई राजनीतिज्ञ होता नहीं कि क्रिसमस या नए दिन या किसी विशिष्ट जन के उत्सव में बर्फ गिरवा दे। कितनी बार तो मौसम विभाग के अनुमान विमान हो जाते हैं। बर्फीले इलाकों में रहने वालों के अनुमान ज्यादा सटीक रहते हैं क्योंकि उनके अनुमान कोई यंत्र नहीं लगाता बल्कि अनुभव और पर्यावरण उन्हें यह बताता है। हर बरस बर्फीले मौसम के लिए वे समय रहते खुद को तैयार कर लेते हैं और अन्य मौसमों की तरह इसे भी खूब जीते हैं। बर्फ प्रदेश के लिए सिर्फ बर्फ नहीं करोड़ों के सेबों के लिए खाद और पर्यटन उद्योग के लिए मुफ्त कच्चा माल है, होने वाला पानी भी तो बर्फ ही है। बर्फ न पड़े या कम पड़े तो जिंदगी पिघलने लगती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो अब पहले की तरह प्राकृतिक प्रारूप में न बारिश होती है और न बर्फ पड़ती है। असंतुलित विकास के साथ हमारी गाढ़ी दोस्ती ने मौसमी समन्वय को बुरी तरह से रौंद कर रख दिया है। इतने स्वार्थी हो गए हैं हम कि चाहते हैं, बर्फ पड़े तो इस तरह से पड़े सड़कें बंद न हों, गाडिय़ां न फिसलें, बसें न फंसें सब कुछ सुचारू रूप से चलता रहे। बारिश भी जब हम चाहें तब हो, चाहे न हो लेकिन पानी 24 घंटे उपलब्ध होता रहे और व्यर्थ भी बहता रहे। कल्पना कीजिए बर्फ नहीं है तो क्या होगा। यह बताने की जरूरत नहीं, हम समझदार लोग हैं। जब बर्फ पड़ती है तो उसे ठंडी आफत, सफेद कफ्र्यू कहा जा रहा है। पहाड़ों के लिए बहुत कुछ दायिनी बर्फ से पैदा हुई स्थितियों से परेशानी फैली हुई है। संपन्न लोगों के लिए बर्फ हमेशा मनरंजन होती रही है। बर्फ से लकदक पहाड़, रेल ट्रैक, खेलते पर्यटक व मूर्तियां बनाते बच्चे सब मजा देते हैं। गरीबों के लिए तो दिक्कतें हमेशा बढ़ती ही हैं, चाहे कोई भी मौसम हो।
पहले रास्ते कम और कच्चे होते थे, बिजली सबके पास नहीं थी, उत्पाद कम होते थे इसलिए जरूरतें कम रहती थीं। सब कुछ कम था, इसलिए ज्यादा बर्फ पडऩे का गम नहीं होता था। अब अपेक्षाएं बढ़ गई हैं, अभी पहुंचना है, इस बर्फ ने आज ही पडऩा था, ओह वो सौदा रद हो गया। बर्फ जब भी गिरे दुखी होने लगते हैं। एक बार ज्यादा बर्फ पड़ जाए तो सैकड़ों सड़कें बंद हो जातीं, उससे भी ज्यादा बसें उन सड़कों पर फंस जातीं लेकिन पर्यटक जमकर मस्ती करते रहते हैं। यातायात ठप होना स्वाभाविक है पहले भी होता था। पहले ट्रैफिक भी तो कम होता था। अब बर्फ है तो बर्फ की तरह ही व्यवहार करेगी। बिजली-पानी की आपूॢत प्रभावित, मरीज परेशान, रोजमर्रा की चीजों का मिलना देर से होगा। करीब आधे प्रदेश का जनजीवन थम जाता है। सेब और अन्य फसलों के लिए वरदान मानी जाने वाली बर्फ, कुदरत का इंसान के लिए अनूठा तोहफा है लेकिन जब यह तोहफा मिलता है तो खुले मन से स्वीकार नहीं किया जाता। आंकड़े जारी किए जाते हैं चार सौ इतनी सड़कें अभी भी बंद हैं, चार सौ उतने रूट बाधित हैं और हाईवे उदास व सैकड़ों बसें फंसी हुई हैं। कुछ दिन बाद यह आंकड़ा भी आएगा कि प्रदेश की सड़कों का उतने करोड़ का नुकसान हो गया है लेकिन जो फायदा बर्फ के कारण हुआ उसका क्या। क्या हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बर्फ क्रिसमस और नए वर्ष पर जरूर पड़े लेकिन ज्यादा ठंड न हो, बर्फ गिरकर जमे नहीं ताकि उस पर कोई फिसले नहीं और फिसल भी जाए तो हड्डियां न टूटें। मनमाना ट्रैफिक चलता रहे, बिजली न जाए, पानी न जमे। बर्फ को इंसान फ्रेंडली हो जाना चाहिए ताकि हमारी आरामतलब जिंदगी में खलल न पड़े। कितना संतोषप्रद हो कि जहां हम चाहें वहां बर्फ पड़े जो हमेशा नर्म रहे, खास लोगों की इच्छा हो तो रंगीन बर्फ भी हो। ऐसा होने से कई तरह की बचत हो सकती है। बर्फ पडऩे से पहले भारी भरकम तैयारी के लिए बैठकें नहीं करनी पड़ेंगी। जब पता रहेगा कि बर्फ परेशान नहीं करेगी तो तैयारियां उतनी नहीं करनी पड़ेंगी जितनी वास्तव में की जानी चाहिए। फिलहाल जनता, सड़कें और बसें यानी सब कुछ ज्यादा है तो तैयारी वाकई करनी होगी, मिटटी और रेत भी ज्यादा जगह डालनी पड़ेगी। मशीनों को भी खुश रखना पड़ेगा।
शहरों की स्मार्टनेस बढ़ाई जा रही है, जिसमें कभी बिजली न जाने जैसे प्रबंधों को लेकर उचित बदलाव लाने के बारे में चुस्ती चाहिए। बर्फ के संदर्भ में हमारा नजरिया मां कुदरत को दिली शुक्रिया अदा करने का होना चाहिए। वास्तव में प्रदेश की हसीन वादियों में खुशनुमा रोमांस का वक्त आया है जिसमें रोमांच की शोखियां भी शामिल हैं। बर्फ के खरबों फाहों की बहुत जरूरत है। इतना कष्ट सहने के बावजूद प्रकृति कितनी मेहरबान है। विकास और सुविधाओं के बीजों से विनाश और असुविधाएं जो हमारी अपनी उगाई हुई हैं उनके फल भी हमें हजम करने ही होंगे। बर्फ को पतझड़ मान लें तो क्या, नई कोंपलों के लिए पतझड़ ही तो चाहिए।
(हिमाचल प्रदेश से जुड़े लेखक व्यंग्यकार हैं)