Move to Jagran APP

सत्ता के गलियारे से: अपनों पे सितम और गैरों पे करम, क्‍या यह हार मंत्रियों की भी हुई, पढ़ें हिमाचल के रोचक तथ्‍य

Himachal Pradesh Politics धर्मशाला नगर निगम में कई लोग उम्मीदें लगा बैठे थे लेकिन जिसके माथे पर राजयोग हो उसे कोई छीन नहीं सकता है। लेकिन इसके लिए जनता के साथ ही नेताओं का आशीर्वाद भी जरूरी है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Mon, 12 Apr 2021 01:02 PM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 01:02 PM (IST)
सत्ता के गलियारे से: अपनों पे सितम और गैरों पे करम, क्‍या यह हार मंत्रियों की भी हुई, पढ़ें हिमाचल के रोचक तथ्‍य
नगर निगम में कई लोग उम्मीदें लगाए थे, लेकिन जिसके माथे पर राजयोग हो उसे कोई छीन नहीं सकता है।

धर्मशाला, जागरण टीम। धर्मशाला नगर निगम में कई लोग उम्मीदें लगा बैठे थे, लेकिन जिसके माथे पर राजयोग हो उसे कोई छीन नहीं सकता है। लेकिन इसके लिए जनता के साथ ही नेताओं का आशीर्वाद भी जरूरी है। क्षेत्रफल के लिहाज से कभी एशिया की सबसे बड़ी पंचायत दाड़ी का वार्ड अब बेशक छोटा हो गया हो लेकिन यहां की राजनीति बड़ी गजब की है। यहां पार्टी से अधिक चिंता अपनों की रही है। यह कहानी सिर्फ कांग्रेस की नहीं है बल्कि भाजपा में भी ऐसा ही देखने को मिला। यहां मतदान के दिन एक युवा नेता जी पार्टी प्रत्याशी के बूथ पर न बैठ कर प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी के बूथ पर काफी देर तक बैठे रहे। इसी बीच सेल्फी लेने का दौर भी चला। अब मतदाता भी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर माजरा क्या है। लोग एक-दूसरे की ओर मुंह ताककर कह रहे थे कि यह तो अपनों पे सितम और गैरों पे करम वाली बात लग रही है। मतदान के दौरान प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी के बूथ पर बैठना बेशक 'विशाल' हृदय का परिचायक हो लेकिन जनता भी 'किशन' से कम तो नहीं, सारी लीलाएं जानती है।

loksabha election banner

क्या यह हार मंत्रियों की भी हुई

मंडी व धर्मशाला नगर निगमों को छोड़ दें तो पालमपुर व सोलन नगर में हार किस की हुई? अभी दोनों नगर निगमों की जिम्मेदारी निभाने वाले मंत्री चुप्पी साधे हुए हैं, मगर भाजपा के भीतर चर्चा शुरू हो गई है। सोलन नगर निगम स्वास्थ्य मंत्री डा. राजीव सैजल व ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी के जिम्मे था। पालमपुर नगर निगम उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह व वीरेंद्र कंवर के हवाले। पार्टी समर्थकों के साथ-साथ राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले दोनों नगर निगमों में हार का ठीकरा मंत्रियों के सिर फोड़ रहे हैं। इसी तरह से भाजपा में राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी डा. राजीव बिंदल की भी आलोचना हो रही है कि क्या सोलन में उनका जादू खत्म हो गया है। पालमपुर के मैदान से राजनीति की लंबी उड़ान लगाने के लिए तैयार बैठे त्रिलोक कपूर तो आलोचनाओं के केंद्र ङ्क्षबदु बने हैं।

क्वार्टर फाइनल कहें या सेमीफाइनल

एक के बाद एक चुनाव जीत रही सत्तारूढ़ भाजपा के विजयी रथ को नगर निगम चुनाव में आकर लगाम लगी है। अब सवाल उठ रहा है कि नगर निगम चुनाव को सेमीफाइनल कहा जाए या फिर क्वार्टर फाइनल। क्योंकि मंडी संसदीय सीट पर उपचुनाव होना है। इसी तरह फतेहपुर के विधायक सुजान ङ्क्षसह पठानिया के निधन को दो महीने से अधिक हो चले हैं, वहां भी उपचुनाव होना है। सही मायनों में सेमीफाइनल वही चुनाव होगा। प्रदेश की राजनीति पर कर्मचारी वर्ग के अतिरिक्त छात्र और महिलाएं भी ठीक रुचि लेती हैं। इन दो सीटों पर चुनाव प्रदेश की मौजूदा सियासत की दिशा तय करेंगे।

स्कूल बंद, जनमंच इसलिए जरूरी

कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए स्कूलों को 21 अप्रैल तक बंद रखने का निर्णय लिया गया है। इसके साथ-साथ कोरोना टेस्ट करवाने और वैक्सीन में तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं। मंत्रिमंडल की बैठक में जब इन सब पर चर्चा हो रही थी तो जनमंच पर चर्चा की बारी आई। बैठक में सुझाव आया कि जनमंच अगले माह रख लेते हैं। कोरोना के कारण एक तरफ स्कूल बंद करना और दूसरी तरफ जनमंच करवाना ठीक नहीं रहेगा। दलील दी गई जनमंच में लोगों की समस्याओं का हल होगा और इस कारण इसका विरोध नहीं होगा। पर लोग तो सवाल उठा ही रहे हैं कि स्कूल बंद कर रहे हैं तो जनमंच क्यों करवा रहे?

छोटे ठाकुर की बात में कितना दम

छोटे ठाकुर यानी सरकार में दूसरे पायदान पर बैठे मंत्री महेंद्र सिंह हंसते हुए कह चुके हैं कि राजनीति में सुखराम परिवार अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। अच्छा रहेगा, अब पूरा परिवार मुंबई जाकर फिल्मों में काम करे। विरोधी सुर में आक्रामक तेवर दिखा रहे भाजपा विधायक अनिल शर्मा ने सार्वजनिक तौर पर कहा था, मैं महेंद्र सिंह से डरता नहीं हूं। छोटे ठाकुर को यह बात इतनी चुभ गई कि उन्होंने इतना कह दिया कि मंडी शहर के दो वार्डों में इनके घर हैं। दोनों वार्डों में सुखराम परिवार को हार का मुंह देखना पड़ा है। ऐसे में अब विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीतना तो भूल ही जाएं। सियासत पर बहस ठोकने वाले कहां बख्शते हैं। बोलते हैं कि दूरसंचार घोटाले के कारण कांग्रेस से बाहर किए गए सुखराम ने 1998 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था। सियासत में औंधे मुंह गिरे भी जिंदा होते रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.