सैनिटाइजर घोटाला: विजिलेंस जांच में नपेंगे खरीद की स्वीकृति देने वाले, छह अधिकारियाें की भूमिका की जांच
Sainitizer Scam राज्य सचिवालय में बिना वैध लाइसेंस के सैनिटाइजर खरीद के आदेश देने वाले विजिलेंस जांच में नप सकते हैं।
शिमला, जेएनएन। राज्य सचिवालय में बिना वैध लाइसेंस के सैनिटाइजर खरीद के आदेश देने वाले विजिलेंस जांच में नप सकते हैं। फाइलों में जिस भी अधिकारी या कर्मचारी के स्वीकृति देने में हस्ताक्षर हुए हैं, उनकी भूमिका संदेह के घेरे में आ गई है। विभागीय जांच में बेशक अधिकांश को क्लीनचिट दे दी हो, लेेकिन विजिलेंस जांच में एक भी कर्मचारी को अब तक क्लीनचिट नहीं मिल पाई है।
जांच एजेंसी सचिवालय के छह अधिकारियों, कर्मचारियों की भूमिका की गहनता से जांच कर रही है। इसमें सरकार के आदेश पर ही मई में विजिलेंस ने एफआइआर दर्ज की गई थी। इसमें सप्लायर और एक अधीक्षक के बीच सांठगांठ होने का भी आरोप है।
सीसीटीवी फुटैज से भी इसका खुलासा हो चुका है कि कैसे अवकाश के दिन सरकारी वाहन में सप्लायर को घुमाया जा रहा है। दोनों उसी दिन स्टोर में भी गए। इसमें भाजपा के ही एक नेता का भी नाम सामने आ रहा है। वह अधीक्षक का काफी करीबी माना जाता है। सप्लायर की इन दोनों से अच्छी पहचान है। सरकार ने इस मामले में एक अधीक्षक को सस्पेंड किया था, वह चार्जशीट की कार्यवाही झेल रहा है।
ऐसे हुआ विवाद
सैनिटाइजर की एक बोतल का टेंडर के माध्यम से रेट 130 रुपये तय हुआ था, लेकिन सप्लायर ने एमआरपी रेट का मार्का 150 रुपये का लगाया। हालांकि बिल 130 रुपये के ही बनाए गए। पहले तीन हजार की खरीद हुई और फिर इतने के ही सप्लाई और देने के आदेश दिए। जांच से पता चला है कि पुरानी राशि खर्च किए गए बिना दस लाख सरकार से और मांगे गए। जबकि पहले से आवंटित राशि में से भी सात- आठ लाख खर्च होने बाकी थे।
लाइसेंस क्यों नहीं देखा
सचिवालय के कर्मचारियों, अधिकारियों ने सैनिटाइजर की खरीद के लिए टेंडर कॉल किए। ठेका भी अवार्ड कर दिया, पर ठेकेदार का लाइसेंस चेक नहीं किया। इसके पास इस आइटम की सप्लाई करने के लिए वैध लाइसेंस नहीं था। इसी आधार पर ठेकेदार ललित कुमार के खिलाफ केस दर्ज किया गया। हालांकि आरोपित का दावा है कि खरीद में कोई घोटाला नहीं हुआ है।