रुलेहड़ में भाई-बहन व पिता का एक साथ अंतिम संस्कार Kangra News
हर आंख नम थी और अपनों के खोने का गम था। बाजार भी बंद रहा और लोग एक- दूसरे को ढांढस बंधाते रहे। चारों ओर तबाही का मंजर था। बेघर हुए लोग सड़क पर थे और एक-दूसरे को हौसला देते रहे कि जो कुछ हुआ वह शायद होना ही था।
जागरण संवाददाता, बोह (शाहपुर)। हर आंख नम थी और अपनों के खोने का गम था। बाजार भी बंद रहा और लोग एक- दूसरे को ढांढस बंधाते रहे। चारों ओर तबाही का मंजर था। बेघर हुए लोग सड़क पर थे और एक-दूसरे को हौसला देते रहे कि जो कुछ हुआ वह शायद होना ही था। रुलेहड़ गांव में बुधवार को मातम था। रुलेहड़ गांव की बराहल खड्ड किनारे शिवप्रसाद, कंचना देवी, भीमसेन, उसकी बेटी लांबी उर्फ ममता देवी व बेटे कार्तिक का अंतिम संस्कार किया गया। घर तो थे नहीं, पोस्टमार्टम स्थल से ही शवों को श्मशानघाट तक स्वजन व गांववासियों ने पहुंचाया। कुछ लोगों को जहां जगह मिली वहां पर रीति रिवाज पूरे किए और उन्हें अंतिम यात्रा के लिए जाया जाएगा। गांव के लोग भी घरों को छोड़कर सड़क पर ही मौजूद रहे।
हर जगह रही सिसकियां
गांव के लोग सड़क पर ही डेरा जमाए रहे। हर कोई एक-दूसरे को हौसला देता रहा। कई जगह सब्र का बांध टूटा लेकिन वे लोग कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं रहे। नम आंसुओं से गांववासियों ने स्वजन को अंतिम विदाई दी। हालात ये रहे कि पार्थिव देह को कंधा देने के लिए कोई भी पीछे नहीं रहा।
ढाई वर्षीय बेटे से पूरी करवाई रस्में
शिवप्रसाद, कंचना देवी, भीमसेन, उसकी बेटी लांबी उर्फ ममता व बेटे कार्तिक का अंतिम संस्कार किया गया। शिवप्रसाद के करीब अढ़ाई वर्षीय बेटे अनु से अंतिम संस्कार की विधि करवाई गई। कंचना देवी को बेटे विनीत कुमार, भीमसेन, उनकी बेटी ममता व बेटे कार्तिक को भीमसेन के भाई के बेटे सूरज ने मुखाग्नि दी।
गांववासियों ने किया लकड़ी का प्रबंध
पांच चिताओं के एक साथ अंतिम संस्कार के लिए गांववासियों ने सहयोग दिया। स्थानीय लोगों ने पहले से ही लकड़ी का प्रबंध कर लिया था।