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पढि़ए कैसे गेयटी थियेटर में 'आदमी जैसा नाच' के जरिए कुरीतियों पर की करारी चोट

गेयटी थियेटर में नाट्य संस्था संकल्प रंगमंडल शिमला की ओर से आदमी जैसा नाच नाटक का मंचन हुआ। इसका आयोजन गेयटी ड्रामेटिक सोसायटी सप्ताहांत थियेटर पहल के तहत किया गया। इस नाटक के लेखक महेश दत्तानी हैं। पौने दो घंटे तक चले नाटक को देखने के लिए खूब भीड़ उमड़ी।

By Virender KumarEdited By: Published: Fri, 31 Dec 2021 06:56 PM (IST)Updated: Fri, 31 Dec 2021 06:56 PM (IST)
पढि़ए कैसे गेयटी थियेटर में 'आदमी जैसा नाच' के जरिए कुरीतियों पर की करारी चोट
शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में आदमी जैसा नाच नाटक का मंचन करते कलाकार। जागरण

शिमला, जागरण संवाददाता। ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में नाट्य संस्था संकल्प रंगमंडल शिमला की ओर से 'आदमी जैसा नाच' नाटक का मंचन हुआ। इसका आयोजन गेयटी ड्रामेटिक सोसायटी सप्ताहांत थियेटर पहल के तहत किया गया। इस नाटक के लेखक महेश दत्तानी हैं। पौने दो घंटे तक चले नाटक को देखने के लिए खूब भीड़ उमड़ी।

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आदमी जैसा नाच आजादी के बाद के सामाजिक परिवेश का नाटक है। इसमें दिखाया गया है कि समाज कितना भी शिक्षित हो जाए या उसका बौद्धिक विकास क्यों न हो, फिर भी कुरीतियां ज्यों की त्यों हैं। नाटक दो पीढिय़ों के परस्पर विरोध, मानसिकता में अंतर और शौक व पेशे को लेकर विचारों की प्रतिकूलता दर्शाता है। यह एक मध्यम वर्गीय दक्षिण भारतीय जोड़ी की आकांक्षाओं की कहानी है, जो अपने पेशे व शौक भरतनाट््यम के संदर्भ में अतीत और वर्तमान भारतीय संस्कृति से जुड़ी पहचान और ङ्क्षलग भूमिकाओं की समस्याओं को दर्शाती है।

नाटक का प्रधान पात्र एवं मुख्य नायक जयराज है। जयराज को नृत्य का शौक है। उसकी सहधर्मिणी रत्ना भी नर्तकी है परंतु अमृत लाल का कहना सही है कि उसकी मां के देहांत के बाद उसने जयराज को अकेले पालन-पोषण कर बड़ा किया। अमृत लाल चाहता है कि जयराज इस लायक हो जाए कि परिवार का भरणपोषण कर सके। जयराज की इच्छा देवताओं को अपने नृत्य से प्रसन्न करने की थी।

नाटक लता और विश्वास के शादी की संभावना पर चर्चा से शुरू हुआ। जयराज और रत्ना घर में नहीं हैं और एक वादक जो अस्पताल में भर्ती किया गया, को देखने के लिए चले गए। लता के दादा अमृतलाल उसके पिता की कैरियर की पसंद से नाखुश थे। रत्ना और जयराज की वापसी के बाद उनमें लता के भविष्य व आगामी प्रदर्शन को लेकर गंभीर चर्चा होती है जिसके बाद रत्ना जयराज को एक अति दुर्बल लड़का 'बिना रीढ़ की हड्डी का पुरुषÓ के रूप में संबोधित करती है। शर्मिंदा विश्वास बाहर निकलने लगता है पर जयराज उसे पीने के लिए रोक लेता है और शादी में उसे अपने पसंदीदा शॉल देने का वादा करता है। पुरानी जोड़ी एक बार फिर अपने कड़वे अतीत में चली जाती है, जिसमें वह रत्ना के चाचा के अश्लील व्यवहार और शंकर के संदर्भ को याद करते हैं।

युवा जयराज और रत्ना को अपने नृत्य के जुनून के लिए अमृतलाल पारेख के विरोध का सामना करना पड़ता है और अमृतलाल के साथ जयराज की गरम बहस के बाद जयराज और रत्ना घर छोड़ कर चले जाते हैं। लेकिन दोनों 48 घंटे के भीतर ही घर लौट आते हैं। अमृतलाल उनकी लाचारी का फायदा उठाते हुए रत्ना के साथ एक सौदा करता है वह रत्ना को नाचने से नहीं रोकता पर जयराज के जुनून को रत्ना की महत्वाकांक्षा के बल पर खरीदता है और रत्ना जानबूझकर जयराज के एक कलाकार के रूप में आत्मसम्मान को कम करते हुए नष्ट कर देती है। जयराज के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचने से वह एक शराबी बन जाता है, जबकि रत्ना शानदार नृत्य प्रदर्शन करती है जो अक्सर खुद अमृतलाल द्वारा प्रायोजित होता है। नाटक के अंत में जयराज और रत्ना संगीत पर नृत्य की मुद्राओं में नाचते दिखाए गए हैं। जयराज मानता है कि मानव रूप में उनमें अनुग्रह, प्रतिभा और जादू का अभाव है। सभागार में उपस्थित दर्शकों की तालियों की गडग़ड़ाहट से सभी कलाकार प्रफुल्लित हो गए। इस दौरान दर्शकों ने नाटक का खूब आनंद लिया।


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