जहरीली शराब कांड: काम आबकारी विभाग का और जांच का जिम्मा संभाल रही पुलिस, कमाऊ पूत के पास नहीं पुख्ता तंत्र
Poisonous Liquor Case राज्य सरकार को वैध शराब के कारोबार से ही डेढ़ हजार करोड़ से अधिक की कमाई करने वाला आबकारी एवं कराधान विभाग अवैध शराब बनाने वालों के खिलाफ पुख्ता कार्रवाई नहीं कर पाता है। कार्रवाई करने का मूल कार्य इस विभाग का है।
शिमला, रमेश सिंगटा। Poisonous Liquor Case, राज्य सरकार को वैध शराब के कारोबार से ही डेढ़ हजार करोड़ से अधिक की कमाई करने वाला आबकारी एवं कराधान विभाग अवैध शराब बनाने वालों के खिलाफ पुख्ता कार्रवाई नहीं कर पाता है। कार्रवाई करने का मूल कार्य इस विभाग का है। लेकिन कानूनी कार्रवाई और जांच का जिम्मा पुलिस महकमे को निभाना पड़ता है। वर्ष 2011 में पंजाब के आबकारी एवं कराधान अधिनियम से से तो निजात मिली। हिमाचल का अपना अलग आबकारी एवं कराधान अधिनियम लागू हुआ, पर हालात कमोबेश पहले जैसे ही हैं। जब भी अवैध शराब के बड़े मामले पकड़ने की बारी आती है अथवा पकड़े जाते हैं, तब तब सवाल यही उठता है कि आखिर कार्रवाई करना किस महकमे की जिम्मेवारी है।
मंडी के सुंदरनगर से सामने आए जहरीली शराब कांड से एक बार दोनों महकमें आमने-सामने हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार दोनों के बीच बड़ी लाइन क्यों नहीं खींच पाई है। प्रदेश में कई सरकारें आई और चली गईं,लेकिन अलग आबकारी पुलिस की व्यवस्था नहीं हो पाई है। अलग अधिनियम भी है लेकिन आबकारी एवं कराधान विभाग के पास न अलग से अपने थाने हैं नही माल खाने और हवालात की व्यवस्था। विभाग के अधिकारी अगर कहीं अवैध शराब कारोबारियों या तस्करों के खिलाफ कार्रवाई करती भी है तो सारा मामला पुलिस थाने के हवाले करना होता है। आबकारी महकमे के पास न तो जांच विंग है और न ही तस्करों से कब्जे में ली गई अवैध शराब को रखने की जगह ।तकनीकी तौर पर इसे केस प्रॉपर्टी कहा जाता है।
कितनी है मैन पावर
आबकारी विभाग के पास शराब के लाइसेंस ,परमिट आदि को रेगुलेट करने के लिए पूरे प्रदेश भर में करीब 130 ईटीओ और करीब 300 इंस्पेक्टर कार्यरत हैं।इसके अलावा परवाणु, धर्मशाला ,पालमपुर और ऊना में फ्लाइंग स्क्वायड है। इनके अधीन पूरा प्रदेश आता है, इनमें भी स्टाफ की काफी कमी रहती है।
रूटीन के कार्यों के लिए भी स्टाफ की कमी
आबकारी एवं कराधान विभाग ने पूरे मामले की छानबीन के लिए अलग से स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम यानी एसआईटी गठित नहीं की है। इसकी वजह यह है कि विभाग के पास स्टाफ की बड़ी कमी बनी हुई है और रूटीन का कार्य निपटाने के लिए ही स्टाफ पूरा नहीं है। फिर जीएसटी और अन्य करो को भी एकत्रित करने का जिम्मा है।
1600 करोड़ का लक्ष्य
आबकारी कराधान विभाग ने मार्च महीने तक शराब के कारोबार से ही सोलह सौ करोड एकत्र करने का लक्ष्य रखा है। इसी कारण इस महकमे को सरकार का कमाऊ पूत कहा जाता है। दावा है कि यह लक्ष्य जल्द ही हासिल किया जाएगा।
कई बड़े मामलों में एसआइटी गठित
डीजीपी संजय कुंडू ने प्रदेश में कई बड़े मामलों में एसआईटी गठित की। विधानसभा में जब फर्जी डिग्री मामला जोरों शोरों के साथ उछल रहा था तब भी उन्होंने एडीजीपी सीआईडी के अध्यक्षता में बड़ी एसआईटी गठित की थी। कई जटिल आपराधिक मामलों की जांच सीआईडी की एसआईटी को सौंपी गई ।उनकी पहल पर ही जहरीली शराब कांड को लेकर भी डीआईजी सेंट्रल रेंज मधुसूदन शर्मा की अगुवाई में एसआईटी गठित की गई है। इसमें कई जिलों के एसपी के अलावा एनआईए में करीब एक दशक तक सेवाएं देने वाले तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी अरविंद दिग्विजय नेगी को भी शामिल किया गया। नेगी ने प्रदेश में एमबीबीएस भर्ती घोटाले में भी जांच की थी।
सवालों के घेरे में कार्यप्रणाली
न केवल आबकारी विभाग बल्कि पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में आ गई है। अब तक की पुलिस जांच के मुताबिक हमीरपुर में आरोपित के घर में ही खोली गई अवैध शराब फैक्ट्री की किसी को क्यों भनक तक नहीं लगी ।यह बड़ा सवाल बना हुआ है। दूसरी वजह यह भी हो सकती है की तस्करों के तार रसूखदार ओं से जुड़े हुए हो ,जिस वजह से खाकी भी यहां तक नहीं पहुंच पाई। शक जताया जा रहा है कि कहीं अवैध शराब प्रदेश के दूसरे हिस्सों में इसी तरह से तो तैयार नहीं हो रही है। इस पर भी खुफिया तौर पर नजर रखे जाने की जरूरत महसूस की जा रही है।