हवा में घुलता जहर, स्वास्थ्य पर ढहाएगा कहर
वाहनों के बढ़ते बोझ से सड़क से उठने वाली धूल हो या पड़ोसी राज्
मुनीष गारिया, धर्मशाला
वाहनों के बढ़ते बोझ से सड़क से उठने वाली धूल हो या पड़ोसी राज्यों में जलाई जाने वाली पराली..जिला कांगड़ा की साफ आबोहवा में लगातार जहर घुल रहा है। अगर इस पर शीघ्र नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाले समय में हालात खतरनाक हो जाएंगे। कोरोना महामारी के बीच उन लोगों को ज्यादा दिक्कतें पेश आएंगी, जो पहले से सांस जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं। ऐसे में सर्दियों में कोरोना और ज्यादा कहर ढहा सकता है।
कांगड़ा जिले में वायु प्रदूषण का स्तर हर साल बढ़ रहा है। हालांकि यह अभी संतोषजनक स्थिति में है, लेकिन अगर यह ऐसे बढ़ता रहा तो छह से सात साल में स्थितियां गंभीर हो जाएंगी। मार्च में कोरोना की वजह से लगे लाकडाउन से प्रदूषण में तीन गुणा कमी आई थी। उससे पहले अनुमानित दैनिक प्रदूषण की दर 30 से 35 यूजी एम3 रहती थी, लेकिन लाकडाउन में यह 13 से 15 यूजी एम3 तक पहुंच गई थी। अब सब कुछ खुलने के बाद यह 60 से ऊपर हो गई है।
अब धान की फसल काटी जा रही है तो पराली जलाने से भी प्रदूषण बढ़ेगा। हालांकि जिले में पराली नहीं जलाई जाती, लेकिन पंजाब में ऐसा किया जाता है। अक्टूबर और नवंबर में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ेगा। जिले में एक लाख तीन हजार हेक्टेयर भूमि में खेती होती है, इसमें से 33 हजार हेक्टेयर भूमि में धान की फसल उगाई जाती है। किसान पराली को पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग करते हैं। 2017 से प्रदूषण का स्तर
वर्ष,स्तर
2017,26-35 यूजी-एम3
2018,35-48 यूजी-एम3
2019,30-45 यूजी-एम3
2020,80-100 यूजी-एम3 सोमवार से अब तक का प्रदूषण स्तर
दिनांक, स्तर
28 सितंबर,60.33 यूजी-एम3
29 सितंबर,90 यूजी-एम3
30 सितंबर,60-100 यूजी-एम3
1 अक्टूबर,70-90 यूजी-एम3
2 अक्टूबर,50 से 90 यूजी-एम3 यह हैं वायु प्रदूषण के मापदंड
वायु गुणवत्ता सूचकांक छह वर्ग में रखा जाता है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) को शून्य से 500 तक रखा जाता है। एक्यूआइ अगर शून्य से 50 के बीच हो तो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक नहीं होता है। 51 से 100 तक संतोषजनक श्रेणी और 101 से 200 तक सामान्य प्रदूषण होता है। 201 से 300 तक खराब, 301 से 400 तक अति खराब और 401 से 500 तक गंभीर श्रेणी का प्रदूषण माना जाता है।
क्या है यूजी-एम3
माइक्रोग्राम प्रति क्यूविक मीटर एक घनत्व माप की विधि है। इसका प्रयोग वायु, जल, ध्वनि और कूड़े के प्रदूषण का पता लगाने के लिए किया जाता है। इससे तत्काल नतीजा निकल जाता है।
पराली जलाने से कार्बन डाइआक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा पर्यावरण के बढ़ जाती है। इससे सर्दी में धुंध बढ़ जाती है, जो सड़क हादसों का कारण बनती है। कृषि अवशेष जलाने से हवा में धुआं फैसले से सांस लेने में दिक्कत आती है। पराली जलाना प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन सरकार को अधिक गंभीर होना पड़ेगा।
-डा. अंजन कालिया, पर्यावरणविद। अगर वातावरण के प्रदूषण की मात्रा अधिक हो तो इससे सांस और त्वचा के रोग बढ़ते हैं। ऐसे दिनों में लोग ध्यान रखें कि जरूरत से ज्यादा घर से बाहर न निकलें। जरूरी जाना हो तो मास्क पहनकर निकलें। सुबह सैर करना बंद कर दें। योग घर पर ही करें। गर्म पानी पीएं, सुबह व शाम भाप लें। खाने में हल्की, काली मिर्च व दान चीनी का इस्तेमाल करें।
डा. चंद्रशेखर, एमडी मेडिसिन, आयुर्वेदिक।
प्रदूषण तो बढ़ा है, लेकिन हमारे यहां अभी इसका स्तर संतोषजनक है। सर्दियों में धुंध पड़ने से थोड़ी दिक्कत आती है। अपने स्वास्थ्य की दृष्टि से लोगों को खुद भी जागरूक होना चाहिए।
वरुण गुप्ता, सहायक पर्यावरण अभियंता, धर्मशाला।