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हिमाचल में पौधों के चयन में खामी व बाहरी प्रजातियों का पड़ा विपरीत असर, जन सहभागिता जरूरी

देवभूमि हिमाचल प्रदेश में हरियाली को बढ़ाने और पौधारोपण की सफलता के लिए मुड़कर देखने और जनसहभागिता जरूरी है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 09:15 AM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 09:15 AM (IST)
हिमाचल में पौधों के चयन में खामी व बाहरी प्रजातियों का पड़ा विपरीत असर, जन सहभागिता जरूरी
हिमाचल में पौधों के चयन में खामी व बाहरी प्रजातियों का पड़ा विपरीत असर, जन सहभागिता जरूरी

शिमला, यादवेन्द्र शर्मा। देवभूमि हिमाचल प्रदेश में हरियाली को बढ़ाने और पौधारोपण की सफलता के लिए मुड़कर देखने और जनसहभागिता जरूरी है। पौधारोपण में लाखों लोग अभियान से जुड़ रहे हैं, लेकिन इसमें शामिल होने वाले ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो मात्र सेल्फी लेने तक सीमित है। प्रदेश की हरियाली पर सबसे बड़ा दाग जंगलों की आग है जो बड़े पौधों के साथ नए लगाए पौधों को भी खाक कर रहे हैं। वन विभाग ने 2030 तक वन के अधिक क्षेत्रफल को तीन फीसद तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है जिसके लिए हर साल एक करोड़ पौधों को रोपा जाएगा।

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प्रदेश में पौधों का सर्वाइवल रेट 69.1 फीसद है। हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में पौधों का सर्वाइवल रेट अलग-अलग है। कुछ स्थानों पर तो पचास से भी कम है। जिसके कई कारण है, इसमें प्रमुख रुप से सूखे और बंजर क्षेत्र हैं। इसके साथ बाहरी प्रजातियों को रोपने के कारण भी अभियान प्रभावित रहे हैं। यही कारण है कि बीते कुछ वर्षों से अब स्थानीय आवश्यकताओं और उस स्थान पर लगने वाले पौधों की प्रजातियों को लगाया जा रहा है। सबसे अधिक चौड़ी पत्ती वाले पौधों का रोपण हो रहा है।

पौधारोपण अभियान में सबसे बड़ा रोड़ा

  • जंगलों की आग।
  • लोगों की सहभागिता की कमी।
  • पौधों की किस्में और क्षमता।
  • देखरेख का अभाव।
  • जंगली जानवरों और बेसहारा पशुओं से खतरा।

घास के लिए जंगलों में आग

'जंगलों में आग लगाने से पालतु पशुओं के लिए घास अच्छा उगेगाÓ इस गलत धारणा के कारण जंगल तबाह हो रहे हैं। साथ ही जंगल की आग बुझाने में स्थानीय  लोगों की सबसे अधिक सहभागिता हो सकती है जो अभी भी बहुत कम है। इसके लिए जागरुकता अभियान और गांव स्तर पर वन समितियों का गठन किया जा रहा है।

800 नर्सरियाें में लाखों पौधे हो रहे तैयार

हिमाचल प्रदेश में 800 के करीब वन विभाग और प्रोजेक्टों के तहत नर्सरियां हैं। इनमें पौधारोपण के लिए हर साल करीब तीन करोड़ पौधे तैयार हो रहे हैं। इसमें वन विभाग की 700 नर्सरियां हैं, जबकि जायका प्रोजेक्ट के तहत 61 और विश्व बैंक के आईडीपी के तहत 44 नर्सरियां हैं।

बड़े पौधों को लगाने से बढ़ा सर्वाइवल रेट

पौधारोपण अभियान के तहत अब बड़े पौधों को लगाने से इनका सर्वाइवल रेट बढ़ा है। तीन से पांच वर्ष तक पौधों की नर्सरियों में देखभाल की जा रही है। उसके बाद उन्हें रोपा जा रहा है। इसके सकारात्मक परिणाम आ रहे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के तहत लग रहे चीड़ के पौधे

पुराने पौधों को काटने की अनुमति के लिए वन विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय से इनको काटने की अनुमति मांगी थी, जिससे नए पौधे लग सकें। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश से सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य आरण्यपाल वीपी मोहन की अध्यक्षता में कमेटी बनाई। इस कमेटी ने अपनी सिफारिशों में चीड़ के जंगलों में चीड़ के ही पौधों को लगाने के लिए कहा है।

प्रदेश में 27 फीसद हरित आवरण हैं और 2030 तक इसे 30 फीसद करना है। पौधारोपण अभियान की सफलता के लिए लोगों का सहयोग जरूरी है। जंगलों की सुरक्षा स्थानीय लोगों की मदद से हो सकती है। अब चौड़ी पत्ती के पौधों को रोपा जा रहा है और लोगों की जरूरत के आधार पर पौधारोपण हो रहा है। -अर्चना शर्मा, पीसीसीएफ वित्त।


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