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चीड़ की पत्तियों से दिखाई स्वरोजगार की राह

ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं घर से बाहर निकल कर न केवल आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ा रही हैं बल्कि दूसरों को स्वावलंबी बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। ऐसा ही एक नाम है सोलन की अनीता ठाकुर।

By Neeraj Kumar AzadEdited By: Published: Wed, 25 Aug 2021 09:17 PM (IST)Updated: Wed, 25 Aug 2021 09:17 PM (IST)
चीड़ की पत्तियों से दिखाई स्वरोजगार की राह
चीड़ की पत्तियों से उत्पाद तैयार करती अनिता ठाकुर। जागरण

शिमला, रामेश्वरी ठाकुर। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं घर से बाहर निकल कर न केवल आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ा रही हैं बल्कि दूसरों को स्वावलंबी बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। ऐसा ही एक नाम है सोलन की अनीता ठाकुर। महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी अनीता ने महिलाओं को चील की पत्तियों की मदद से रोजगार की राह दिखाई है। अभी तक वह करीब 500 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से चीड़ की पत्तियों से विभिन्न उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दे चुकी हैंै। चील की पत्तियों से बने सजावट व रोजमर्रा की ङ्क्षजदगी में इस्तेमाल होने वाले सामान के दर्जनों उत्पाद तैयार करके देश-विदेश सहित प्रदेश भर में बेचकर वे अपना व परिवार का नाम रोशन कर रही हैं। अभी तक उन्होंने सोलन के अलावा शिमला की कई पंचायतों में महिलाओं को चीड़ की पत्तियों से उत्पाद बनाना सिखाए हैं। वह पांच से सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में महिलाओं को इन उत्पाद को बनाने की बारीकियां सिखाती हैं।

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जरूरत है छुपी प्रतिभा को निखारने की

अनीता ठाकुर का कहना है कि खेतीबाड़ी करने वाले परिवार में एक साधारण पहचान के साथ जीवन व्यतीत कर रही थी। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत साल 2018 में उन्होंने चीड़ की पत्तियों से उत्पाद बनाने की कला सीखी। बेहद कम खर्चे के साथ उत्पाद बनाने शुरू किए और धीरे-धीरे उत्पादों को काफी सराहना मिलने लगी। पर्यटन विभाग के सहयोग से उत्पादों को पहचान मिलने लगी और विभिन्न प्रदर्शनी में उत्पाद भेजने शुरू किए। इसके बाद पर्यटन के तहत इजराइल सहित देश के कोने-कोने में चीड़ की पत्तियों से बने उत्पाद बिके। उनका कहना है कि ऐसा करते हुए उन्होंने घर की जिम्मेदारियों को नहीं भूला। उन्होंने महिलाओं से अपील करते हुए कहा कि घर के कामों के साथ अलग पहचान बनाई जा सकती है, जरूरत है बस अपने भीतर छुपी प्रतिभा को निखारने की।

पर्यावरण संरक्षण का दे रही संदेश

इस बार राखी के डिजाइन के बीच छायादार पेड़ों के बीज डालकर उन्होंने पर्यावरण को बचाने संदेश दिया। कुछ दिन बाद खराब होने पर जब राखी को फेंक दिया जाता है तो इससे बीज के गिरने से जमीन पर पौधा उग जाता है। राखियां बनाने में बान, गुलाल और सरसों के बीज इस्तेमाल किए जाते हैं। अनीता का कहना है कि जंगलों में चीड़ के पेड़ों से गिरी हुई पत्तियों को इक_ा किया जाता है और रंग-बिरंगे धागे से राखियों सहित घर के सजावट के सामान बनाए जाते हैं। जंगलों से सूखी पत्तियां उठाई जाती हैं तो बदले में पेड़ लगाने का संदेश देना हमारी जिम्मेदारी बनती है। इसके अलावा जंगल मेें सूख कर जमीन पर पड़ी इन पत्तियों से कई बार आग लगने का डर रहता है। अब यह पत्तियां उत्पाद बनाने के काम आती हैं तो यह खतरा भी कम होता है।


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