बिना लिपि के पहाड़ी को राज्य भाषा घोषित नहीं किया जा सकता : हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकार को पहाड़ी को राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में घोषित करने के लिए निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है ।जब तक कि यह स्थापित नहीं हो जाता कि पहाड़ी (हिमाचली) भाषा की अपनी लिपि है ।
शिमला, विधि संवाददाता। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकार को पहाड़ी को राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में घोषित करने के लिए निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है ।जब तक कि यह स्थापित नहीं हो जाता कि पहाड़ी (हिमाचली) भाषा की अपनी लिपि है । एक सामान्य पहाड़ी बोली है जो कि पूरे राज्य में बोली जाती है। हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए यह बात कही है। याचिका में राज्य सरकार पहाड़ी भाषा को राज्य की आधिकारिक भाषा घोषित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। अदालत ने याचिकाकर्ता को एक सामान्य पहाड़ी (हिमाचली) भाषा संरचना और टंकरी लिपि को बढ़ावा देने के लिए एकल तौर पर एक शोध करने की मांग के साथ हिमाचल प्रदेश के भाषा कला और संस्कृति विभाग से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी है।. मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायमूर्ति सबीना की खंडपीठ ने हाल के एक आदेश में कहा कि अगर याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में की गई प्रार्थना के लिए अपने अतिरिक्त मुख्य सचिव (भाषा, कला और संस्कृति) के माध्यम से प्रतिवादियों या राज्य से संपर्क किया तो उक्त प्राधिकारी कानून के अनुसार उस पर विचार करना होगा। यह याचिका इस प्रार्थना के साथ दायर की गई थी कि राज्य सरकार को किसी भी लिपि में पहाड़ी को हिमाचल प्रदेश की आधिकारिक भाषाओं में से एक घोषित करने का निर्देश दिया जाए। उन्हें एक दीर्घकालिक औपचारिक पहाड़ी (हिमाचली) परमाणु भाषा संरचना और परमाणु की दिशा में अनुसंधान को बढ़ावा देने का निर्देश दिया जाए। अदालत द्वारा बताए गए प्रश्न के उत्तर में याचिकाकर्ता के वकील ने इस बात पर विवाद नहीं किया कि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली पहाड़ी की बोली एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न है। अतिरिक्त महाधिवक्ता विकास राठौर की सहायता से महाधिवक्ता अशोक शर्मा ने भी प्रस्तुत किया कि न केवल पहाड़ी भाषा की बोलियां राज्य के एक जिले से दूसरे जिले में भिन्न होंगी। राज्य के एक जिले में विभिन्न क्षेत्रों में भी भिन्न होंगी।