अब आइजीएमसी अस्पताल रेफर नहीं होंगे गंभीर मरीज, कोविड की तीसरी लहर की तैयारियां जोरों पर
IGMC Hospital Shimla शिमला के क्षेत्रीय अस्पताल रिपन से अब गंभीर अवस्था वाले मरीजों को आइजीएमसी रेफर नहीं किया जाएगा। मरीजों को वेंटिलेटर की सुविधा रिपन में भी उपलब्ध हो सकेगी। अस्पताल में कोरोना की तीसरी लहर को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं।
शिमला, जागरण संवाददाता। IGMC Hospital Shimla, शिमला के क्षेत्रीय अस्पताल रिपन से अब गंभीर अवस्था वाले मरीजों को आइजीएमसी रेफर नहीं किया जाएगा। मरीजों को वेंटिलेटर की सुविधा रिपन में भी उपलब्ध हो सकेगी। अस्पताल में कोरोना की तीसरी लहर को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। अस्पताल के नए भवन में मरीजों के लिए मेडिसिन वार्ड में करीब 19 वेंटिलेटर स्थापित किए जा चुके हैं। साथ ही स्टाफ को वेंटिलेटर चलाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अस्पताल में पहली बार वेंटिलेटर की सुविधा दी जा रही है, इससे पहले मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत होने पर आइजीएमसी शिफ्ट किया जाता था।
अस्पताल एमएस डॉक्टर रविंद्र मोक्टा का कहना है कि अस्पताल के नए भवन में नए वेंटिलेटर स्थापित किए जा चुके हैं। अभी तक सांस की दिक्कत वाले गंभीर मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत पडऩे पर आइजीएमसी शिफ्ट करना पड़ता था, ऐसे में मरीज का समय बर्बाद होता था। अब यह सुविधा रिपन में शुरू होने से मरीजों को समय पर वेंटिलेटर की सुविधा मिलेगी और समय बचेगा। तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए तैयारियां की जा रही हैं। अस्पताल में दवाइयों सहित जरूरी उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में रिपन में कोविड सेवाएं बंद हैं लेकिन आने वाले समय में संक्रमण फैलने की आशंका को देखते हुए खतरे से निपटने के इंतजाम किए जा रहे हैं। इससे पहले रिपन दो बार कोविड समर्पित अस्पताल के तौर पर हजारों मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं दे चुका है।
कैसे काम करते हैं वेंटिलेटर
फेफड़े जब काम करना बंद कर दें तब शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और ना ही शरीर के अंदर मौजूद कार्बन डायऑक्साइड बाहर निकल पाती है। साथ ही फेफड़ों में लिक्विड भर जाता है। ऐसे में कुछ ही देर में हृदय भी काम करना बंद कर देता है और मरीज की मौत होने की आशंका बढ़ जाती है। वेंटिलेटर के जरिए शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है। यह ऑक्सीजन फेफड़ों में वहां पहुंचती है जहां बीमारी के कारण तरल भर चुका होता है। वेंटिलेटर सांस की नली और फेफड़ों की कोशिकाओं के बीच कुछ इस तरह से दबाव बनाते हैं कि शरीर में ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन पहुंच सके। जैसे ही सही प्रेशर बनता है शरीर से कार्बन डायऑक्साइड निकलने लगती है और इसकी मदद से इंसान सांस लेने लगता है।