Landslide Spots in Lahaul: पहाड़ जैसी चुनौती से कम नहीं लाहुल-स्पीति का सफर, ये हैं सबसे खतरनाक स्पाट
Landslide Spots in Lahaul हिमाचल प्रदेश के कबायली जिला लाहुल स्पीति में हिमस्खलन व बादल फटने की घटनाओं के बाद अब दरकते पहाड़ भी लोगों के लिए खतरा बन गए हैं। लोग अब यहां सफर करने से डरने लगे हैं। जगह-जगह भूस्खलन से लोगों में दहशत का माहौल है।
केलंग, जसवंत ठाकुर। Landslide Spots in Lahaul, हिमाचल प्रदेश के कबायली जिला लाहुल स्पीति में हिमस्खलन व बादल फटने की घटनाओं के बाद अब दरकते पहाड़ भी लोगों के लिए खतरा बन गए हैं। लोग अब यहां सफर करने से डरने लगे हैं। जगह-जगह भूस्खलन से लोगों में दहशत का माहौल है। हालांकि इससे पहले बरसात के दिनों में लाहुल स्पीति में नाममात्र बारिश होती थी। हालांकि बादल फटने की घटनाएं होती रहती थीं। लेकिन पहाड़ी गिरने से ढाई घंटे उफनती चंद्रभागा नदी के रुकने की घटना पहली बार हुई है। इस घटना में हालांकि कोई जानी नुकसान नहीं हुआ है। लेकिन तोजिंग नाले में बादल फटने से आई बाढ़ ने 10 लोगों को अपना ग्रास बना लिया।
जनजतीय जिला लाहुल स्पीति में भूस्खलन की तुलना में हिमस्खलन का खतरा अधिक है। लेकिन मनाली लेह मार्ग पर बीआरओ के लिए बरसात में भूस्खलन हमेशा चुनौती देता रहा है। 2009 से शुरू हुए सड़क के डबललेन निर्माण के बाद भूस्खलन से हालात खराब हुए हैं। मनाली लेह मार्ग के गुलाबा, राहलाफाल, मढ़ी, बंता मोड़, राहनीनाला, दोहरनी नाला, ग्राम्फू, दालंग, मुलिंग, छुरपक, बिलिंग, गेमुर, दारचा, पटसेउ, जिंगजिंगबार, सुरजताल, पटसेउ व सरचू के बीच भारी भूस्खलन होता है।
बीआरओ के कमांडर कर्नल उमाशंकर ने कहा भूस्खलन से हालांकि बीआरओ को नुकसान तो होता रहा है, लेकिन जानी नुकसान से बचते रहे हैं। अनुसंधान की सलाह अनुसार कार्य को बेहतर करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
पहली बार भूस्खलन के बाद तैयारी पुख्ता
उपायुक्त लाहुल स्पीति नीरज कुमार का कहना है लाहुल घाटी में बादल फटने के साथ साथ हिमस्खलन की घटनाएं होती रही हैं। लेकिन भारी मात्रा में पहाड़ी गिरने की यह पहली घटना हुई है। घटना के कारणों का पता लगाने व बचाव करने को केंद्रीय जल आयोग और एनडीआरएफ की टीम द्वारा भूस्खलन वाली जगह का निरीक्षण करवाया गया है। सुझाव अनुसार कार्य किए जा रहे हैं। जिला प्रशासन द्वारा एक वैकल्पिक कार्य योजना पहले से ही तैयार की गई है और इसकी ड्रिल भी की जा चुकी है। भूस्खलन व हिमस्खलन होने की स्थिति में रेस्क्यू दल उपकरणों के साथ 24 घंटे तैयार रहता है।
विशेषज्ञ कर रहे अध्ययन
रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन की लैब रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान के अनुसंधान व विकास केंद्र (डीजीआरई व आरडीसी) के प्रशासनिक प्रमुख नीरज शर्मा ने कहा समय-समय पर हिमस्खलन, भूसंरचना व भूस्खलन के प्रति पूर्वानुमान, चेतावनी बुलेटिन देकर तथा भूसंरचना में सुधार व निर्माण कर सुरक्षित करते हैं। सासे से डीजीआरई बनने के बाद प्रतिष्ठान के कार्य क्षेत्र भी बढ़ा है तथा अब हिम एवं हिमस्खलन के अतिरिक्त भू स्खलन व भू संरचनात्मक अध्ययन भी हो रहा है। भारत की उत्तर पश्चिमी दुर्गम और हिमाच्छादित सीमा पर जम्मू कश्मीर, लेह लद्दाख, सियाचिन ग्लेशियर, हिमाचल व उत्तराखंड से लेकर अरुणाचल, सिक्किम व असम आदि पूर्वोत्तर राज्यों तक यह संस्थान कार्यरत है। नागरिकों को हिमस्खलन, भूसंरचना व भूस्खलन के प्रति शिक्षित व प्रशिक्षित करते हैं और पूर्वानुमान, चेतावनी बुलेटिन दे कर तथा भूसंरचना में सुधार व निर्माण कर सुरक्षित करते हैं।