शहीद के घर की राहें फांक रही धूल, शहादत के 21 साल बाद भी नहीं बना लखबीर सिंह के नाम का द्वार, पढ़ें खबर
Martyr Lakhbir Singh शहादत के समय सरकारों ने भी दरियादिली दिखाते हुए अनेक घोषणाएं की थी। जिनमें से कुछ पूरी भी हुईं लेकिन कुछ अधूरी भी रहीं।
जसूर, अश्वनी शर्मा। कारगिल सेक्टर की ऊंची पहाडिय़ों पर 1999 में दुश्मन ने कब्जा कर भारतीय सेना को युद्ध के लिए ललकारा था चुनौती बहुत कठिन थी, दुश्मन सेना ने ऊंचाई पर डेरा डाल रखा था। भारतीय सेना को दुश्मन सेना तक पहुंचना बहुत ही कठिन था। लेकिन दुश्मन के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद करने के लिए विपरीत परिस्थितियों में भारतीय सेना ने पूरे जज्बा दिखाया। सेना ने दुश्मन को करारी शिकस्त देकर कारगिल की चोटियों को फतह कर तिरंगे को पुन: लहराया था। इस दौरान अनेक वीर सैनिकों ने सीने पर बारूद झेलते हुए शहादत का जाम पिया था।
उन्हीं रणबांकुरों में से उपमंडल नूरपुर की पंचायत रिट के गांव दुधार के पैरा रेजीमेंट के सिपाही लखबीर सिंह ने दुश्मन सेना से बहादुरी से लड़ते हुए पहली जुलाई 1999 को अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। शहादत के समय सरकारों ने भी दरियादिली दिखाते हुए अनेक घोषणाएं की थी। जिनमें से कुछ पूरी भी हुईं लेकिन कुछ अधूरी भी रहीं। आज भी शहीद के घर तक का रास्ता कच्चा है। न ही शहीद के नाम का द्वार लग पाया।
यह थे लखवीर सिंह
मात्र 18 साल की आयु में लखवीर सिंह 1993 में सेना में भर्ती हुए थे। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान सिपाही लखवीर सिंह ने दुश्मन सेना का डटकर मुकाबला करते हुए पहली जुलाई 1999 को वीरगति पाई थी। शहादत के बाद सरकार की ओर से छोटे भाई रणधीर सिंह को वन विभाग में सरकारी नौकरी तो मिली, स्कूल का नामकरण भी शहीद के नाम पर हुआ। लेकिन शहीद की याद में बनने वाला यादगारी गेट आज दिन तक भी नहीं बन पाया। शहीद के स्वजनों अनुसार उनके घर तक जाने वाला करीब 400 मीटर का रास्ता आज भी कच्चा है। इन अनदेखियों के चलते कहीं न कहीं शहीद के परिजनों में अब भी एक टीस है कि या तो वादा करना नहीं चाहिए या फिर उसे पूरा करना चाहिए।
रास्ते को जल्द पक्का किया जाएगा : प्रधान
रिट पंचायत प्रधान बविता रानी का कहना है पंचायत द्वारा 15वें वित्त आयोग में उक्त रास्ते के निर्माण कार्य का सेल्फ डालकर रास्ते को पक्का किया जाएगा। कच्चे रास्ते को लेकर कोई भी असुविधा स्वजनों को न हो इसका पूरा ख्याल रखा जाएगा।
क्या कहते हैं ग्रामीण
- शहीदों का ऋण कभी नहीं चुकाया जा सकता न ही उनके स्वजनों के बलिदान को नकारा जा सकता है। इतनी अवधि बीतने के बाद भी व्यवस्था को इस पर गौर करना चाहिए कि शहादत के सम्मान में कमी क्यों है । -सेवानिवृत्त सूबेदार सुरेश पठानिया।
- शहीद लखबीर सिंह की याद में बनने वाला यादगारी गेट तो क्या बनना था जो हमारे घर को करीब 400 मीटर कच्चा रास्ता है वो भी पक्का नहीं हो पाया जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि असल में शहादत का क्या सम्मान है। -जसबीर सिंह शहीद के बड़े भाई।
- शहीदों के घरों को जाने वाले जहां कहीं रास्ते अभी तक भी कच्चे हैं और सही नहीं हो पाएं हैं, उन्हें लेकर कदम उठाए जाएंगे। जहां भी कहीं ऐसी दिक्कतें कच्चे रास्तों को लेकर हैं वहां पर उचित कदम उठाकर सुविधा प्रदान होगी। -राकेश प्रजापति, उपायुक्त, कांगड़ा।