संसदीय क्षेत्र मुद्दा : पौंग विस्थापितों की तीसरी पीढ़ी ताक रही राहत
No land given to pong Dam displaced पौंग बांध विस्थापितों की तीसरी पीढ़ी हक हासिल करने के लिए संघर्षरत है।
दिनेश कटोच, धर्मशाला। पौंग बांध विस्थापितों का दर्द नासूर बन गया है। चुनाव आते ही वोट बैंक की खातिर पुनर्वास का मामला गर्माता है और नेता भी आश्वासन देते हैं, लेकिन परिणाम फिर ढाक के तीन पात ही रहता है। यही वजह है कि आज दिन तक भी विस्थापित पुनर्वास न होने का दर्द झेल रहे हैं। विस्थापितों की तीसरी पीढ़ी हक हासिल करने के लिए संघर्षरत है। वर्ष 1960 में देश की खुशहाली व दूसरे राज्यों को रोशन करने के लिए 360 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना के निर्माण के लिए ब्यास नदी पर पौंग बांध की आधारशिला रखी थी और एकत्रित पानी राजस्थान की भूमि को तर करने के लिए दिया जाना था। बांध निर्माण के बाद 1972 में शुरू हुए जलभराव के कारण कांगड़ा जिले की तहसील देहरा के 339 गांवों के करीब 30 हजार परिवार बेघर हो गए थे। विस्थापितों के पुनर्वास के लिए राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में 2.20 हजार एकड़ भूमि आरक्षित की गई थी। इसके अलावा 30 हजार एकड़ भूमि केंद्र सरकार ने केंद्रीय राज्य फार्म जेतसर राजस्थान में दी थी। कुल 20,722 पौंग विस्थापितों में से 16,352 को राजस्थान सरकार ने 1966 से 1980 तक श्रीगंगानगर की आरक्षित भूमि में आवंटन किए। इसके अलावा 5418 विस्थापितों को अभी तक भूमि नहीं मिल पाई है। इसके अलावा जहां कुछ लोगों को मुरब्बे आवंटित हुए हैं तो वहां मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। विस्थापन के 46 साल बीतने के बाद भी विस्थापित पुनर्वास के लिए हिमाचल व राजस्थान के न्यायालयों व कार्यालयों का चक्कर काटने के लिए मजबूर हैं। हक के लिए कई आंदोलन भी लोग कर चुके हैं, लेकिन अब तक कुछ भी हासिल नहीं हुआ है।
क्या किया राजनेताओं ने
विस्थापितों के पुनर्वास के लिए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व केंद्र सरकार के बीच समझौता हुआ था। इसके तहत राजस्थान को पौंग बांध का पानी देने के बदले विस्थापित परिवारों के लिए राजस्थान में कमांद भूमि आरक्षित करने की बात कही गई थी। भूमि तो श्रीगंगानगर में आरक्षित की गई, लेकिन वहां आज दिन तक पुनर्वास नहीं हो पाया है। जो क्षेत्र पौंग बांध में डूबा था उसमें समाहित हल्दून घाटी का क्षेत्र पहले पंजाब में था और हल्दून मंगवाल विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था। 1966 में राज्य पुनर्गठन के तहत हल्दून क्षेत्र को हिमाचल से जोड़ दिया गया। 1973 में जब पौंग बांध बनकर तैयार हुआ तो उस समय यशवंत ङ्क्षसह परमार हिमाचल के मुख्यमंत्री थे। 1973 से लेकर अब तक प्रदेश में 12 मुख्यमंत्री रह चुके हैं लेकिन विस्थापितों को समझौते के अनुसार किसी ने भी पुनर्वास के लिए गंभीरता नहीं दिखाई है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने इसे सिर्फ चुुनावी मुद्दा बनाया है लेकिन राजस्थान सरकार पर विस्थापितों को भूमि देने के लिए दबाव नहीं बनाया है।
कब क्या हुआ
-1960 में 360 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना व ब्यास नदी पर पौंग बांध की आधारशिला रखी गई।
-1964 में हुआ था पौंग बांध निर्माण के लिए समझौता और हिमाचल की ओर से केंद्र ने किए थे हस्ताक्षर।
-3 व 4 सितंबर, 1970 को भारत सरकार की अध्यक्षता में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व हिमाचल के मुख्यमंत्रियों की सहमति पर एग्रीमेंट के तहत विस्थापितों के पुनर्वास के लिए श्रीगंगानगर में 2.20 लाख एकड़ भूमि आरक्षित की गई।
-1973 में हुआ था पौंग बांध निर्माण कार्य पूरा।
-सितंबर 1973 में हुआ था जलभराव शुरू।
-20,722 में से 16352 घोषित हैं पात्र विस्थापित।
-1980 तक 9196 को हुआ भूमि आवंटन।
-1981 के एमओयू के तहत 2000-2001 में 1388 मुरब्बों का आवंटन हुआ।
-2014 से 2017 तक हुए 350 आवंटन।
-5418 आवंटन अब भी शेष।
-24 जून, 2018 को नगरोटा सूरियां में देहरा के विधायक होशियार ङ्क्षसह के नेतृत्व में हुआ मुंडन समारोह।
-जनवरी 2019 से विस्थापितों की समस्याओं के लिए सुनवाई शुरू हुई पर नतीजा शून्य।
विस्थापितों को हक दिलाने के लिए मामला राजस्थान सरकार से उठाया है। प्रदेश सरकार भी राजस्थान सरकार से बात कर रही है। विस्थापितों को उनका हक मिलना चाहिए। राजस्थान सरकार को यह भी कहा गया है कि जो लोग अब भी अधिकारों से वंचित हैं, उन्हें न्याय दिलाया जाए। अगर राजस्थान में जमीन नहीं है तो सरकार उन्हें पैसा दे। -शांता कुमार, सांसद
जो भी राजनीतिक दल पौंग विस्थापितों की समस्याओं का समाधान करेगा, उसे ही समर्थन दिया जाएगा। राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के अनूपगढ़ व जैतसर फार्म में 2.20 लाख एकड़ भूमि आरक्षित है। -तीर्थराम शर्मा, अध्यक्ष पौंग बांध विस्थापित संघर्ष समिति।
वंचित विस्थापितों के दस्तावेज पूरे करने के लिए अभियान चलाया गया है। दस्तावेज पूरे होते ही राजस्थान में भूमि आवंटन प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। -विनय मोदी, उपयुक्त राहत एवं पुनर्वास कार्यालय राजा का तालाब।