44 साल बाद पहाड़ पर नए इंजन से दौड़ेगी रेल, इसी सप्ताह ताकतवर डीजल इंजन पहुंचेगा पठानकोट
पठानकोट-जोगेंद्रनगर नैरोगेज रेल सेक्शन पर 44 साल बाद छुक-छुक लेकर नया इंजन दौड़ेगा और हिमाचल की हसीन वादियों का दीदार करवाएगा।
पठानकोट, विनोद कुमार। अब बूढ़े हो चुके इंजनों की पहाड़ों पर सांस नहीं फूलेगी। पठानकोट-जोगेंद्रनगर नैरोगेज रेल सेक्शन पर 44 साल बाद छुक-छुक लेकर नया इंजन दौड़ेगा और हिमाचल की हसीन वादियों का दीदार करवाएगा। मुंबई की परेल वर्कशॉप में बने नए इंजन को पठानकोट के लिए रवाना कर दिया गया। इसी हफ्ते नया ताकतवर डीजल इंजन पहुंच जाएगा। इससे पहले पठानकोट लोको को वर्ष 1976 में नया इंजन मिला था।
इंजन नंबर 715 जेडडीएम-3 सुरक्षा के लिहाज से भी अहम है। मौजूदा समय में मौजूद चार इंजनों का कैबिन आगे की ओर ही है। जिससे इसे मोडऩे में बहुत समय लग जाता है। इसके अलावा ड्राइवर के आगे छह से सात मीटर लंबा बोनट होने के कारण ट्रैक साफ दिखाई नहीं देता था। नए इंजन में आगे और पीछे दोनों ओर कैबिन हैं। इसे मोडऩे की जरूरत नहीं है। यह ट्रेन के दोनों ओर जुड़ सकता है। नए इंजन के आगे बोनट नहीं है। ड्राइवर पांच मीटर की दूरी पर साफ देख सकता है।
नैरोगेज पर दौडऩे वाले इंजन की उम्र 36 साल मानी जाती है। मौजूदा समय में दौड़ रहे इंजनों में से तीन उम्र पूरी कर चुके हैं जबकि चौथा फरवरी 2020 में उम्र पूरी कर लेगा। पठानकोट से जोगेंद्रनगर के बीच एक दिन में 14 ट्रेन आवाजाही करती हैं। इसके लिए 12 इंजनों की जरूरत है। अगर कोई इंजन रास्ते में हांफ जाता है तो उसे लाने के लिए लोको इंजन भेजना पड़ता है। इस कारण ट्रेनों का संचालन प्रभावित होता है। रेल सेक्शन को अब भी सात और नए रेल इंजन चाहिए।
आसान होगी पहाड़ की राह
पठानकोट रेलवे के एडीएमई (असिस्टेंट डिविजनल मैकेनिकल इंजीनियर) कुलभूषण कुमार का कहना है कि पठानकोट के लिए ड्यूल कैबिन वाला नया इंजन लोड हो चुका है। इसी हफ्ते यह पहुंच जाएगा। इसे नैरोगेज ट्रैप पर चलाया जाएगा और इस कारण सफर आसान हो जाएगा।