दायरा बढ़ा पर सुविधाएं सिकुड़ीं
Municipal corporation palampur कहने को पालमपुर नगर परिषद मौल और भिरल दो खड्डों के बीच में बसा है। मगर अब साथ लगती पंचायतें भी पालमपुर के नाम से ही जानी जाती है।
पालमपुर, शारदा आनंद गौतम। कहने को पालमपुर नगर परिषद मौल और भिरल दो खड्डों के बीच में बसा है पर अब साथ लगती पंचायतें भी पालमपुर के नाम से ही जानी जाती हैं। इतना ही नहीं इन पंचायतों के लोग भी सुविधाओं के नाम पर पालमपुर नगर परिषद पर ही निर्भर हो गए हैं। बात चाहे पार्किंग की हो या फिर कूड़े की व्यवस्था की। सभी की निगाहें नगर परिषद की ओर ही उठती हैं। हालात ये बन गए हैं कि नगर परिषद ने अपने अधिकार क्षेत्र में कूड़े के डंपर उठा दिए हैं और परेशानी साथ लगती पंचायतों के बाशिंदों को हो रही है।
काम करवाने के लिए आने वाले लोगों को गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह नहीं मिलती है तो वे नगर परिषद के नाम पर हायतौबा मचा देते हैं जबकि नगर परिषद की अपनी व्यवस्था और जनसंख्या के लिए सुविधाएं पर्याप्त हैं। हैरानी की बात है कि जो अपेक्षाएं साथ लगती पंचायतों के लोगों ने पाल ली हैं उसका खामियाजा नगर परिषद को उठाना पड़ रहा है। बहरहाल इस सारे प्रकरण को लेकर करीब तीन दशक से नगर परिषद के विस्तार को लेकर बात उठती है पर आपसी खींचतान से विस्तारीकरण की मुहिम आगे नहीं बढ़ पाती है।
आईमा, घुग्घर, लोहना, बंदला, चौकी, खलेट, ¨बद्रावन, बनूरी, राजपुर व बनघियार 15 पंचायतों के क्षेत्रों को नगर परिषद पालमपुर में मिलाकर नगर निगम बनाए जाने का मामला प्रस्तावित था। पूर्व भाजपा सरकार के दौरान मंत्री र¨वद्र ¨सह रवि इसे लेकर प्रयासरत भी थे मगर बात सिरे नही चढ़ी। इसके बाद कांग्रेस सरकार के समय में भी मुख्यमंत्री वीरभद्र ¨सह ने इसे लेकर गेंद स्थानीय विधायक के पाले में डाल दी थी मगर पंचायतों के विरोध के कारण बात नहीं बनी। अब एक बार फिर से नगर निगम या फिर इसे विस्तार को लेकर बात उठ रही है। घुग्घर, लोहना, राजपुर व साथ लगती पंचायतों को मिलाकर नगर परिषद का विस्तार किया जा सकता है पर यह कब होगा यह भी सामने नहीं है।
एशिया की सबसे छोटी नगर परिषद है पालमपुर
एशिया की सबसे छोटी नगर परिषद पालमपुर को माना जाता है। यह मात्र 0.750 स्कवेयर किलोमीटर है। 1948 में पंचायत से नगर परिषद बनी मगर उसके बाद न तो दायरा बढ़ा और न ही सुविधाओं में इजाफा हुआ। साल का करीब डेढ़ करोड़ खर्च है। कर्मचारियों को वेतन देने में ही अधिकांश पैसा लग जाता है। विकास के काम करवाने के लिए विधायक और सांसद के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं। जहां तक आमदनी की बात करें तो गृहकर और दुकानों से मिलने वाले किराये के बाद प्रदेश सरकार से मिलने वाला अनुदान है। इससे नगर परिषद अपना काम जैसे-तैसे चलाए हुए है। नगर की आबादी साढ़े तीन हजार है और इसे सात वार्डो में बांटा गया है।
पालमपुर नगर निगम बनना चाहिए। इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। मैंने खुद इसे लेकर पूर्व में प्रयास किए हैं। निकटवर्ती पंचायतों के प्रधानों से मिलकर बात करनी जरूरी है। -शांता कुमार, सांसद।
नगर परिषद के विस्तार के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र सरकार को दे दिया है। अब सरकार पर निर्भर है कि वह इसका विस्तार करती है या फिर नगर निगम का दर्जा दिलवाती है। राधा सूद, चेयरपर्सन नगर परिषद।
नगर परिषद पालमपुर का विस्तार होना चाहिए। साथ लगती पंचायतों में जनता से मिलकर एक आम राय बनाने के लिए प्रयास हों। एक ऐसा मंच हो जिस पर लोगों को इसके लाभ व हानि के बारे में जानकारी देने के बाद निर्णय उन पर छोड़ना चाहिए। -डॉ. मनोहर लाल अवस्थी।
नगर परिषद का विस्तार सरकार के हाथ में है। जिस प्रकार धर्मशाला को सरकार ने नगर निगम बनाया है, वैसे ही पालमपुर में भी होना चाहिए। -सचिन मल्होत्रा।
युवा पालमपुर नगर परिषद का दायरा बढ़ना समय की मांग है। लिहाजा सरकार को चाहिए कि इस बारे जल्द निर्णय ले ताकि लोगों को यहां किसी प्रकार की दिक्कत न हो। साथ ही विकास के लिए विभिन्न योजनाओं को भी लाया जा सके। प्रदीप कुमार पालमपुर।
अब बड़े नगर का रूप ले रहा है। अब यह दो खडडों के बीच बसा छोटा सा नगर नहीं है बल्कि आस-पास की पंचायतो के लोग भी खुद को पालमपुर का नागरिक बताते हैं। लिहाजा इसका विस्तार होना जरूरी है। -रमेश कुमार, टिक्का निहंग निवासी।