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Muharram Guidelines: कोविड महामारी के कारण बड़े आयोजन की अनुमति नहीं, घरों में ही हाेगी नमाज

Muharram Guidelines इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम साल का पहला माह होता है। मुहर्रम का माह शुरू होने के 10वें दिन आशुरा होता है। इस दिन मुहर्रम मनाया जाता है। इस साल 20 अगस्त यानी शुक्रवार को मनाया जा रहा है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Thu, 19 Aug 2021 11:39 AM (IST)Updated: Thu, 19 Aug 2021 12:00 PM (IST)
Muharram Guidelines: कोविड महामारी के कारण बड़े आयोजन की अनुमति नहीं, घरों में ही हाेगी नमाज
जामा मस्जिद धर्मशाला के मौलवी मोहम्मद कामिल जामिई

धर्मशाला, जागरण संवाददाता। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम साल का पहला माह होता है। मुहर्रम का माह शुरू होने के 10वें दिन आशुरा होता है। इस दिन मुहर्रम मनाया जाता है। इस साल 20 अगस्त यानी शुक्रवार को मनाया जा रहा है। इस्लामिक सिया समुदाय के लिए यह मातम का माह होता है। हिमाचल प्रदेश के नाहन और शिमला में मुहर्रम का खास महत्व है। दोनों ही स्थानों पर बड़े स्तर पर आयोजन होता है। कोरोना काल से पूर्व तक प्रदेश के सभी मस्जिदों में काफी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर नमाज अदा करते थे, लेकिन कोरोना काल के चलते दो सालों से मुहर्रम पर न तो मातम होता है और न ही मस्जिदों में भीड़ एकत्रित की जाती है।

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जिला कांगड़ा में मुहर्रम के दिन मीठे पानी की छबीलें लगाई जाती थीं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जिला प्रशासन के निर्देशों के अनुसार छबील पर प्रतिबंध रहेगा। जानकारी के मुताबिक जिला कांगड़ा में जामा मस्जिद धर्मशाला, फतेहपुर, योल, पालमपुर 67 स्थानों पर सामूहिक नजाम पड़ी पढ़ी जाती है। वहीं 31 बड़ी मस्जिदों में काफी बड़े स्तर की नमाज होती हैं। लेकिन इस बार कोविड महामारी के कारण बड़े आयोजन की अनुमति नहीं है।

जामा मस्जिद धर्मशाला के मौलवी मोहम्मद कामिल जामिई ने बताया कोरोना काल के चलते इस बार भी कहीं बड़े स्तर या सामूहिक नवाज अदायगी नहीं होगी। समुदाय के लोगों से पहले ही आग्रह कर दिया है कि वह अपने अपने स्तर पर घरों में रहकर ही नजाम अदा करें। मस्जिदों में बहुत कम संख्या में लोगों को बुलाकर नजाम अदा की जाएगी।

हज़रत इमाम हुसैन की शहादत से जुड़ा है मुहर्रम

कर्बला की जंग बादशाह यज़ीद की सेना और हज़रत इमाम हुसैन के बीच लड़ी गई थी। इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने परिवार और दोस्तों के साथ सर्वोच्च कुर्बानी दी थी। उनकी शहादत मुहर्रम के 10वें दिन हुई थी। इस दिन को आशूरा कहा जाता है। उन शहीदों की याद में हर साल ताजिए बनाए जाते हैं और जुलूस निकाले जाते हैं। यह ताजिए उन शहीदों के प्रतीक होते हैं। मातम मनाने के बाद उन ताजिए को कर्बला में दफनाया जाता है। इराक में आज भी इमाम हुसैन का मकबरा है।

मातम में कहते हैं खास बात

मुहर्रम के दिन जब मातम मनाया जाता है तो शिया समुदाय के लोग कहते हैं कि 'या हुसैन, हम न हुए।' इसका एक विशेष महत्व है। मातम मनाने वाले लोग कहते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन हम बहुत दुखी हैं क्योंकि आपके सा​थ कर्बला की जंग में नहीं रहे। हम भी इस्लाम की रक्षा के लिए आपके साथ शहादत देते।


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