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Himachal Budget Session: बजट सत्र पर भारी रहा राज्यपाल से दुर्व्‍यवहार मामला, प्रस्‍तावित बैठकों से कम हुईं

Himachal Pradesh Budget Session हिमाचल प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र इस बार कई मायनों में चर्चा में रहा। कोरोना काल में उम्मीद थी कि विपक्षी कांग्रेस मुद्दों की बौछार कर प्रदेश के आमजन के मानस पटल पर अपनत्व की छाप छोड़ेगी।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Sun, 21 Mar 2021 10:02 AM (IST)Updated: Sun, 21 Mar 2021 10:02 AM (IST)
Himachal Budget Session: बजट सत्र पर भारी रहा राज्यपाल से दुर्व्‍यवहार मामला, प्रस्‍तावित बैठकों से कम हुईं
हिमाचल प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र इस बार कई मायनों में चर्चा में रहा।

शिमला, प्रकाश भारद्वाज। Himachal Pradesh Budget Session, हिमाचल प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र इस बार कई मायनों में चर्चा में रहा। कोरोना काल में उम्मीद थी कि विपक्षी कांग्रेस मुद्दों की बौछार कर प्रदेश के आमजन के मानस पटल पर अपनत्व की छाप छोड़ेगी। लेकिन शुरुआत में ही राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय से दुव्र्यवहार का मामला बजट सत्र पर भारी रहा। 13वीं विधानसभा का बजट सत्र राज्यपाल के साथ दुव्र्यवहार के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। इस घटना के बाद कांग्रेस में बिखराव दिखा।

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इस बार 17 बैठकों के प्रस्तावित सत्र में 15 बैठकें ही हुईं। सत्ता पक्ष भाजपा ने बजट सत्र के हर दिन पूरे होमवर्क के साथ विपक्ष को हावी नहीं होने दिया। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कई बार राजनीतिक दृढ़ता दिखाई। इसका नतीजा यह रहा कि विपक्ष तीखे तेवर नहीं दिखा सका। मंत्रियों ने पूर्व कांग्रेस सरकार की कारगुजारियों को सदन में घटनाक्रम के साथ जोड़कर पेश किया। इसका विरोध करने का कोई रास्ता विपक्ष के पास नहीं था।

कर्ज लेने का मुद्दा हो या सरकारी तंत्र में सेवारत 20 हजार से अधिक आउटसोर्स कर्मियों के शोषण का मामला, भाजपा सरकार के चौथे वर्ष के बजट सत्र में कांग्रेस राजनीतिक धरातल पर अपेक्षानुरूप नजर नहीं आई। कर्ज लेने की परंपरा कांग्रेस ने ही डाली थी। आउटसोर्स का विचार पूर्व कांग्रेस सरकार का ही था। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कर्ज के मुद्दे को सदन में इस तरह पेश किया कि कर्ज के चक्रव्यूह में विपक्ष घिरता रहा।

यह बजट सत्र सियासी बढ़त लेने की दृष्टि से महत्वपूर्ण था। पिछला पूरा साल कोरोना के साये में गुजरा और किसी न किसी रूप से हर आदमी प्रभावित हुआ। अगला वर्ष चुनावी साल रहेगा। जिस तरह कोरोना संक्रमण फैल रहा है, ऐसे में विपक्ष को राजनीति करने का बजट सत्र की तरह उपयुक्त मौका मिलना संभव नहीं था। निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली से लोग परेशान हैं। बजट सत्र में निजी स्कूल फीस नियंत्रण बिल पहुंच नहीं पाया।

राजस्व के पेचीदा तंत्र से लोगों को राहत का संशोधन विधेयक अपरिहार्य कारणों से लटक गया। वहीं, भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष रमेश धवाला सरकार की नब्ज दबाने में सफल रहे। उनके सवालों ने जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर को एक-दो मौकों पर असहज कर दिया था। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक कामरेड राकेश सिंघा ने अकेले दम पर लगभग हर दिन सरकार को कसौटी पर कसा।


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