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मंडी संसदीय क्षेत्र: यहां ठाकुर और ब्राह्मणों पर लगता है दांव, जानिए कुछ रोचक तथ्‍य

Mandi Parliamentary Constituency मंडी संसदीय क्षेत्र में भाजपा व कांग्रेस ठाकुर व ब्राह्मणों पर ही दांव लगाती आई है। हालांकि यहां अनुसूचित जाति की आबादी ब्राह्मणों से अधिक है लेकिन 1952 के बाद किसी भी राजनीतिक दल ने अनुसूचित जाति के नेता पर विश्वास नहीं जताया है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Sat, 02 Oct 2021 11:13 AM (IST)Updated: Sat, 02 Oct 2021 11:13 AM (IST)
मंडी संसदीय क्षेत्र: यहां ठाकुर और ब्राह्मणों पर लगता है दांव, जानिए कुछ रोचक तथ्‍य
मंडी संसदीय क्षेत्र में भाजपा व कांग्रेस ठाकुर व ब्राह्मणों पर ही दांव लगाती आई है।

मंडी, हंसराज सैनी। Mandi Parliamentary Constituency, मंडी संसदीय क्षेत्र में भाजपा व कांग्रेस ठाकुर व ब्राह्मणों पर ही दांव लगाती आई है। हालांकि यहां अनुसूचित जाति की आबादी ब्राह्मणों से अधिक है, लेकिन 1952 के बाद किसी भी राजनीतिक दल ने अनुसूचित जाति के नेता पर विश्वास नहीं जताया है। संसदीय क्षेत्र के 69 साल के इतिहास में सिर्फ एक बार अनुसूचित जाति के नेता को यहां से सांसद बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वह भी उस दौरान जब यहां से दो सांसद चुने जाते थे। एक सीट सामान्य व एक अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी। 1952 के लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के गोपी राम सांसद चुने गए थे। वह अनुसूचित जाति से संबंध रखते थे। इसके बाद दो सांसद चुनने का नियम समाप्त कर दिया था।

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1957 के चुनाव में गोपी राम को मैदान में उतारने के बजाय इंडियन नेशनल कांग्रेस (आइएनसी) ने तत्कालीन मंडी रिसायत के राजा विजय सेन को मैदान में उतारा था। यहां अनुसूचित जाति की 29.85, ब्राह्मणों की 21.4 व ठाकुरों की 33.6 फीसद आबादी है। यह संसदीय क्षेत्र छह जिलों के 17 विधानसभा क्षेत्रों में फैला है। इनमें पांच विधानसभा क्षेत्र रामपुर, आनी, बल्ह, नाचन व करसोग अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 1962 व 1967 में यहां से आइएनसी ने तत्कालीन सुकेत रियासत के राजा ललित सेन को मैदान में उतारा था। 1971 के चुनाव में कांग्रेस की तरफ से वीरभद्र सिंह प्रत्याशी थे।

1977 में जनता पार्टी ने पहली बार यहां लोकसभा का चुनाव लड़ा। जनता पार्टी की तरफ से ठाकुर गंगा सिंह प्रत्याशी थे। इस चुनाव में पहली बार आइएनसी को हार का मुंह देखना पड़ा था। तीन बाद 1980 में हुए चुनाव में वीरभद्र सिंह दोबारा विजयी हुए थे। वीरभद्र सिंह के 1983 में मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस ने पहली बार किसी ठाकुर नेता के बजाय ब्राह्मण नेता को टिकट दिया था। 1984 के चुनाव में पंडित सुखराम सांसद चुने गए थे। भाजपा की तरफ से कर्मचारी नेता मधुकर सिंह प्रत्याशी थे। 1989 के चुनाव में भाजपा ने कुल्लू के तत्कालीन राजा महेश्वर सिंह को प्रत्याशी बनाया था।

वह पहली बार सांसद चुने गए। दो साल बाद हुए चुनाव में उन्हें पंडित सुखराम के हाथ हार का सामना करना पड़ा था। 1996 में भाजपा ने यहां से कर्मचारी नेता अदन सिंह को मैदान में उतारा था। 1998 के चुनाव में भाजपा के महेश्वर सिंह व कांंग्रेस की ओर से प्रतिभा सिंह उम्मीदवार थी। 1999 में मुकाबला दो ठाकुरों महेश्वर सिंह व कौल सिंह के बीच हुआ था। 2004 के चुनाव में प्रतिभा सिंह व महेश्वर सिंह आमने सामने थे।

2009 में वीरभद्र सिंह व महेश्वर सिंह कांग्रेस भाजपा के प्रत्याशी थे। 2013 के उपचुनाव में कांग्रेस की प्रतिभा सिंह का मुकाबला भाजपा के जयराम ठाकुर से हुआ था। 2014 के चुनाव में भाजपा ने यहां पहली बार ब्राह्मण नेता रामस्वरूप शर्मा को मैदान में उतारा था। प्रतिभा सिंह का पराजित कर वह पहली बार सांसद बने थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों दलों के उम्मीदवार ब्राह्मण थे। भाजपा ने दोबारा रामस्वरूप शर्मा के को मैदान में उतारा था। कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय पंडित सुखराम के पोते आश्रय शर्मा को उम्मीदवार बनाया था।


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