Move to Jagran APP

श्री चिंतपूर्णी मंदिर: रंग ला सकती है अव्यवस्था रोकने की कारगर पहल

Mata Chintpurni Temple Himachal Pradesh उत्तर भारत खासतौर पर पंजाब हरियाणा और दिल्ली के श्रद्धालुओं की मंजिल प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री चिंतपूर्णी के दरबार में मंदिर के सह आयुक्त और उपमंडल अम्ब के मजिस्ट्रेट मंदिर की व्यवस्था जानने पहुंचे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 11 Mar 2021 01:18 PM (IST)Updated: Thu, 11 Mar 2021 01:37 PM (IST)
श्री चिंतपूर्णी मंदिर: रंग ला सकती है अव्यवस्था रोकने की कारगर पहल
श्री चिंतपूर्णी मंदिर: रंग ला सकती है अव्यवस्था रोकने की कारगर पहल। जागरण आर्काइव

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। Mata Chintpurni Temple Himachal Pradesh बीरबल और अकबर की कई कहानियां सुनने-पढ़ने में आती हैं। एक ऐसी ही कहानी आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा अकबर में भी है। बीरबल अकबर के दरबार में अपनी समस्या लेकर जाना चाहते हैं। द्वारपाल ने रोक लिया। द्वारपाल सबसे कुछ न कुछ वसूल करने के बाद उन्हें प्रवेश दे रहा था। बीरबल ने उसे कुछ नहीं दिया सिवाय इस वचन के कि अंदर जो भी राशि पारितोषिक के रूप में मिलेगी, उसका आधा हिस्सा वह द्वारपाल को दे देंगे। अंदर पहुंचे तो अकबर ने पूछा कि क्या चाहते हो।

prime article banner

बीरबल ने जवाब दिया, हुजूर 50 कोड़े मेरी पीठ पर मारे जाएं। दरबारियों ने समझाया कि अकबर के दरबार में कुछ बेहतर मांगो। लेकिन बीरबल अड़े रहे कि 50 कोड़े मारे जाएं। अकबर ने कारण पूछा तो बीरबल ने सारी बात कह सुनाई और कहा कि इस पुरस्कार की आधी राशि यानी 25 कोड़े द्वारपाल को मारे जाएं। जाहिर है, व्यवस्था का एक बड़ा सुराख बीरबल की चतुराई से सम्राट को दिख गया। पुरस्कार की सारी राशि रिश्वतखोर द्वारपाल को मिली। एक उदाहरण प्रस्तुत हो गया। समझा जाता है कि व्यवस्था ठीक रही।

इधर, उत्तर भारत खासतौर पर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के श्रद्धालुओं की मंजिल प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री चिंतपूर्णी के दरबार में मंदिर के सह आयुक्त और उपमंडल अम्ब के मजिस्ट्रेट मंदिर की व्यवस्था जानने पहुंचे। उन्हें कहा गया कि आपको चोर रास्ते से या लिफ्ट से ले चलते हैं आप 1,100 रुपये दें। ऊपर पहुंच कर होमगार्ड ने कतार में शामिल करने के 500 रुपये मांग लिए। जाहिर है व्यवस्था के सुराख दिखाई दे गए और होमगार्ड पर कार्रवाई हुई। लोगों को छोटा रास्ता बताने वाले दुकानदारों पर भी कार्रवाई हुई।

दूसरा मामला शिमला जिले के ठियोग का है जहां शराब की बोतल का मूल्य वह है जो सेल्समैन चाहे। अधिकतम खुदरा मूल्य से भी ऊपर। न कोई बिल, न दलील, न अपील। एसडीएम मास्क पहन कर गए और व्यक्ति को धर लिया। जाहिर है, दोनों उपमंडल दंडाधिकारियों ने अपना फर्ज निभाया और अपेक्षित सक्रियता दिखाई। क्यों दिखाई? इस पर कई पक्ष हो सकते हैं, लेकिन यही माना जाए कि यह व्यवस्था को जांचने और सुधार करने के लिए था। अब इससे बड़ा सवाल यह है कि करीब 34 वर्षो से चिंतपूर्णी मंदिर पर सरकारी नियंत्रण है। कई बार हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय डांट चुका है, व्यवस्थाएं बदली गई हैं। लेकिन आमूल चूल परिवर्तन नहीं हुआ। सवाल एक होमगार्ड के रिश्वत मांगने का नहीं है, सवाल तो यह है कि संस्था ने कई बार की फजीहत के बावजूद सुधार को व्यवस्थागत आकार क्यों नहीं दिया? क्या कारण हैं कि पंक्ति में मुंह अंधेरे से खड़े लोग दोपहर या शाम को भी ढलता देखें और जो पांच सौ रुपये दे सके, वह आशीर्वाद लेकर निकल जाए? क्यों हर बार एक ही संस्था के लिए किसी उत्साही एसडीएम की जरूरत पड़ती है?

यह अच्छी बात है कि कुछ योजना चिंतपूर्णी मंदिर न्यास की आगामी बैठक में पारित की जाएगी। दुकानदार जिन पतली गलियों के माध्यम से श्रद्धालुओं को मुख्य कतार तक पहुंचाने का पैसा लेते हैं, प्रशासन को उनका ध्यान भी है। जो लिफ्ट गर्भवतियों, बुजुर्गो और दिव्यांग लोगों के लिए हैं, वे पैसे देकर कुछ लोग इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। लिफ्ट तक पहुंचाने के अलग पैसे लिए जाते हैं और ऊपर पहुंच कर कतार में शामिल करवाने के अलग, यह भी रुकेगा। होमगार्ड की तैनाती की जगह बदलेगी। सब अच्छा है। लेकिन फिर कोई दुकानदार या होमगार्ड उठ कर वही सब करने लगेंगे, इसकी जमानत कौन दे सका या दे सकेगा? कुछ इस चीज को पकड़ लेते हैं, कुछ अधिकारी नहीं पकड़ पाते, क्योंकि उन्हें यह सब पता होता है, लेकिन अज्ञात कारणों से सब जारी रहता है। शायद यह नियम भी बन जाए कि किसी को वीआइपी दर्शन करने हैं तो कुछ पैसे देने होंगे। पर्ची मिलेगी। सोच यह है कि जो पैसा अभी इधर-उधर जा रहा है, वह न्यास को मिले।

यही सूरत शराब की दुकानों पर अधिक वसूली की है। शराब की बोतल का कितना दाम वसूला जाता है, क्या यह प्रशासन की जानकारी में नहीं होता? शराब की नीति बदलने की बात हो जाए, पिछली सरकार के कार्यकाल में शराब निगम भी बन गया, लेकिन व्यवस्था के गम तो जस के तस रहे। हिमाचल प्रदेश जैसे कम संसाधनों वाले राज्य में आबकारी विभाग का महत्व रहस्य नहीं है। विषय शराब बिक्री को नैतिक दायरे में लाने का नहीं है, अपितु व्यवस्था में जो सुराख हो रहे हैं, उन्हें भरने का है। इकाई बड़ी हो या छोटी, व्यवस्था सुचारू हो तो न कोई मजबूरी आड़े आती है और न कोई व्यक्ति। मजबूरी के भी कई प्रकार हो गए हैं। एक मजबूरी का रहस्योद्घाटन मंगलवार को जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ने सदन में किया। उन्होंने कहा कि कई सरकारें देख चुकी हैं कि निगम और बोर्ड घाटे में हैं। लेकिन इनमें अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की तैनाती हर सरकार के लिए राजनीतिक मजबूरी होती है। यह निर्णय करना कठिन है कि उनके ईमानदार कथन की प्रशंसा की जाए या फिर उनसे यह कहा जाए कि मजबूरी से बाहर आकर लाभ को घाटे के निगमों-बोर्डो तक लाने से कौन रोक रहा है। आखिर दो एसडीएम भी तो सुराख रोक ही रहे हैं।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.